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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHAH आयुर्वेद शास्त्र का ग्रंथ है, और गुण-संग्रह चिकित्सा-ग्रंथ है। सोठ्ठल ने अपने "गुण-संग्रह" में स्वयं को वैद्यनंदन का पुत्र व सर्वदयालु का शिष्य बतलाया है। "गद-निग्रह" का हिंदी अनुवाद सहित (दो भागों में) प्रकाशन, चौखंबा विद्या-भवन से हो चुका है। सोल - ई. 11 वीं शती का पूर्वार्ध। वलभी (गुजरात) के कायस्थ-वंश में जन्मे सोठ्ठल का पालनपोषण, पिता की मृत्यु के बाद लाटाधिपति गंगाधर नामक चालुक्य राजपुत्र के आश्रय में हुआ। बीच के कालखंड में सोठ्ठल शिलाहार-वंश के चित्त राजा के आश्रय में रहे, जहां उन्हें "कविप्रदीप" की उपाधि से विभूषित किया गया। आगे चलकर लाटनृपति वत्सराज के निमंत्रण पर वे पुनः उनके आश्रय लौट आये तथा उनकी प्रेरणा से बाण के उपन्यास का आदर्श सामने रखकर उदयसुंदरी नामक गद्य-पद्यात्मक ग्रंथ की रचना की। संस्कृतकाव्य के इतिहास में इनके ग्रंथ को विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान इस लिए प्राप्त है कि इसमें उन्होंने वैदर्भी, गौडी व पांचाली इन तीनों रीतियों का उपयोग किया है। सौभरी - ऋग्वेद के 8 वें मंडल के 19, 22 व 103 वें सूक्तों के द्रष्टा। इनके सूक्तों में इनके पिता तथा परिवार का अनेक बार उल्लेख आया है। सूक्तों की देवता है अग्नि, अश्विनौ और अग्नि -मरुत।। सोमकीर्ति - काष्ठासंघ के नन्दीतट गच्छ के रामसेनान्वयी भट्टारक लक्ष्मीसेन के प्रशिष्य और भीमसेन के शिष्य । समय-ई. 16 वीं शती। रचनाएं- सप्तव्यसन-कथा-समुच्चय (2067 श्लोक), प्रद्युम्नचरित (4850 श्लोक) तथा यशोधर-चरित्र (1018 श्लोक)। सोमदेव - (1) ई. 11 वीं शती। काश्मीर के राजा अनंत की सभा में राजकवि। पिता-राम। सोमदेव ने गुणाढ्य की बृहत्कथा के आधार पर "कथासरित्सागर" नामक ग्रंथ की रचना की। सुनीलचन्द्र राय के मतानुसार इन्होंने यह ग्रंथ काश्मीर के राजा कलश की माता सूर्यमति के मनोरंजन हेतु लिखा। इन्होंने "क्रियानीतिवाक्यामृत" नामक एक ओर ग्रंथ भी लिखा है। (2) शाकंभरी के राजा वीसलदेव विग्रहराज की सभा में सोमदेव नामक कवि हो गये जिन्होंने ई. 12 वीं शती के पूर्वार्ध में राजा की प्रशस्ति में "ललितविग्रहराज" नामक नाटक लिखा। (3) व्याकरण शास्त्र के विद्वान। शिलाहारवंश के राजा भोजदेव (द्वितीय) के समकालीन। समय-ई. 13 वीं शती। ग्रंथ-शब्दचन्द्रिकावृत्ति, जिसे शब्दार्णव (गुणनन्दीकृत) में प्रविष्ट करने की दृष्टि से लिखा गया। कोल्हापुर मंडलान्तर्वर्ती अर्जुरिका नामक ग्राम के त्रिभुवनतिलक जैन मंदिर में इस ग्रंथ का प्रणयन हुआ। सोमदेवसूरि - नेमिदेव के शिष्य, यशोदेव के प्रशिष्य, महेन्द्रदेव के अनुज । देवसंघ के आचार्य। अरिकेसरी नामक चालुक्य राजा के पुत्र वद्दिग सोमदेव के संरक्षक। कान्यकुब्ज नरेश महेन्द्रदेव से संबद्ध। रचनाएं और रचनाकाल- तीन रचनाएं उपलब्ध हैं- नीतिवाक्यामृत, यशस्तिलकचम्पू (ई. 10 शती) और अध्यात्मतरंगिणी। नीतिवाक्यामृत राजनीति का ग्रंथ है। इस पर कवि नेमिनाथ की कन्नड-टीका (ई. 13 वीं शती) उपलब्ध है। यशस्तिलक-चम्पू आठ आश्वासों में विभक्ता है। इसकी गद्यशैली बाण की कादम्बरी के तुल्य है। इसकी कथावस्तु यशोधर का चरित है। इसके पूर्वार्ध पर ब्रह्म श्रुतसार की संस्कृत टीका है। अध्यात्मरंगणी में चालीस श्लोक हैं। इस पर गणधरकीर्ति की संस्कृत टीका (ई. 12 वीं शती) उपलब्ध है। इसमें ध्यानविधि का वर्णन है। सोमदेव कवि और दार्शनिक विद्वान हैं। औरंगाबाद के समीप परभणी नामक स्थान से प्राप्त एक ताम्रपत्र में चालुक्य सामंत अरिकेसरी (ई. 10 वीं शती) द्वारा निर्मित शुभ धाम नामक जिनालय के जीर्णोद्धारणार्थ सोमदेव को एक गांव देने का उल्लेख है। यह जिनालय लेंबुल पाटण नाम की राजधानी में वद्दिग सोमदेव ने बनवाया था। सोमनाथ - आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी जिले के निवासी। रचना- रागविबोध (ई.स. 1609) नामक संगीतविषयक ग्रंथ । सोमनाथ - 12 वीं शती। पिता- गुरुसिंग। वीरशैव सम्प्रदाय । रचनाएं- पाण्डिताराध्यचरितम् (2) बसवपुराणम् (3) बसवगद्यम्। सोमशेखर - ई. 18 वीं शती। आंध्र निवासी। इन्होंने 'राम कृष्णार्जुनरूपं नारायणीयम्' नामक श्लिष्ट काव्य की रचना की। इसकी विशेषता यह है कि यह तीन-अर्थो वाला है अर्थात् इसका प्रत्येक श्लोक राम, कृष्ण व अर्जुन इन तीनों के लिये लागू पडता है। सोमशेखर - गोदावरी जिलान्तर्गत पेरूर ग्रामवासी। अपरनाम राजशेखर । रचना- भागवतचम्पू। अतिरिक्त रचना-साहित्यकल्पद्रुम (साहित्यशास्त्र विषयक ग्रंथ)। माधवराव पेशवा ने अपनी राज्यसभा में इनका बडा सत्कार किया था। सोमसेन - ई. 17 वीं शती। जैनधर्मीय सेनगण और पुष्करगच्छ के प्रतिष्ठाचार्य गुणभद्र (गुणसेन) के शिष्य। ग्रंथ-रामपुराण (33 अधिकार), शब्दरत्नप्रदीप (संस्कृत कोश) और धर्मरसिकत्रिवर्णाचार। सोमानंद - ई. 9 वीं शती का उत्तरार्ध । इनका "शिवदृष्टि" नामक ग्रंथ, काश्मीर में प्रत्यभिज्ञा-दर्शन का आधारभूत ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ के सात अध्यायों में कुल सात सौ श्लोक हैं। अपने इसी ग्रंथ पर इन्होंने 'विवृत्ति' नामक टीका लिखी है। सोमानन्द पुत्र - कठ-मन्त्रपाठ के भाष्यकर्ता। निवास-स्थान विजयेश्वर। इनका भाष्य ग्रंथ खण्डरूप में उपलब्ध है। 488 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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