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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कष्ट न पहुंचायें, चोरी न करें, परस्त्री से संग न करें, यथाशक्ति सीरदेव - ई. 13 वीं शती का पूर्वार्ध । बंगाली के वैयाकरण। गरीबों को दान दें। जो इस रास्ते पर चलेगा उसका ही अन्त ___"परिभाषावृत्ति" (पाणिनि-कृत पारिभाषिक शब्दावली पर वृत्ति) में उद्धार होगा। उस ग्वाले को यह गीत बहुत अच्छा लगा। के रचयिता। यह ग्रंथ "बृहत्परिभाषावृत्ति" के नाम से भी उसने गीत समाप्त होते ही वृद्धवादी के चरणों में सिर झुका जाना जाता है। इस पर अनेक टीकाएं लिखी गई, किंतु उनमें कर कहा- आपकी बात मुझे आसानी से समझ में आ गई से केवल तीन टीकाएं हस्तलिखित स्वरूप में उपलब्ध हैं। और इन सिद्धसेन महाराज की बात मेरे पल्ले नहीं पडी। संदरदास - ई. 20 वीं शती। पिता-रामानुज। रचनाएंजय तो आपकी ही हुई। कोमलाम्बाकुचशतक, हनुमविलास और अष्टप्रास।। सिद्धसेन इस घटना का वास्तविक अर्थ समझ गये। उनका सुंदरदेव - ई. 17 वीं शती। इन्होंने 20 से अधिक तत्कालीन घमंड चूर हो गया और उन्होंने जैन आचार्य वृद्धवादी को कवियों के सुभाषित प्रभूत मात्रा में संकलित किये। अकबर, गुरु मान कर उनसे दीक्षा ली। निजामशाह, शाहजहां जैसे यवन शासकों की स्तुति के श्लोक सिद्धसेन दिवाकर ने कुल 32 ग्रंथों की रचना की है भी संग्रहित करना एक विशेषता है। कहीं-कहीं उर्दू शब्दों जिनमें से 21 ग्रंथ आज भी उपलब्ध हैं। इनमें न्यायावतार, का प्रयोग भी संस्कृत के साथ इन्होंने किया है। ग्रंथनामसन्मतितर्कसूत्र, तत्त्वार्थटीका, कल्याण-मंदिर-स्तोत्र तथा सुनीतिसुंदरम्। द्वात्रिंशिका-स्तोत्र विशेष प्रसिद्ध हैं। इन्हें जैन न्यायशास्त्र का सुंदर भट्टाचार्य - इन्होंने अपने गुरु देवाचार्य के "सिद्धांत-जाह्नवी" प्रणेता माना जाता है। प्रमाण के स्वरूप का व्यवस्थित विवचेन नामक ग्रंथ पर "सेतु" नामक विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किया। और नयवाद के रूप में जैन-तर्कशास्त्र का विस्तृत विवेचन व्याख्यान की प्रथम तरंग, (चतुःसूत्री तक) प्राप्त तथा मुद्रित । उनके मौलिक कार्य हैं। डा. विद्याभूषण के अनुसार सिद्धसेन शेष भाग अभी तक अनुपलब्ध हैं। देवाचार्य तक निंबार्क-संप्रदाय दिवाकर 5 वीं शताब्दी के अंत में मालवा के राजा यशोधर्म की एक ही शिष्य-परंपरा रही। पश्चात् दो शाखाएं हुईं। प्रधान देव के आश्रित थे, वहीं उन्होंने अपने सभी ग्रंथों की रचना की। शाखा में सुंदर भट्टाचार्य तथा दूसरी शाखा में व्रजभूषण नित्यानन्द - सिद्धान्तराज नामक ग्रंथ के रचयिता। रचना देवाचार्य प्रसिद्ध हैं। काल- 1639 ई.। यह ग्रंथ ग्रह-गणित विषयक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सुंदरराज (सुंदरराजाचार्य) - केरल-निवासी। कुल वैखानस । कृति है। इसमें वर्णित विषयों के शीर्षक इस प्रकार हैं- रामानुज सम्प्रदायी। जन्म-सन 1841 में, इलत्तुर अग्रहार में। मीमांसाध्याय, मध्यमाधिकार, स्पष्टाधिकार, भू-ग्रहयूत्यधिकार, मृत्यु सन् 1905 में। पिता-वरदराज। गुरु-रामस्वामी शास्त्री तथा उन्नतांश-साधना-धिकार, भुवनकोश, गोलबंधाधिकार और स्वामी दीक्षित। एट्टियपुरम् तथा त्रावणकोर के राजाओं द्वारा यात्राधिकार। सम्मनित। सिद्धेश्वर चट्टोपाध्याय - जन्म-सन् 1918 में, पूर्व बंगाल कृतियां- रामभद्रचम्पू, रामभद्रस्तुतिशतक, कृष्णार्याशतक, में। शिक्षा-दीक्षा कलकत्ते में। एम्.ए., डी.लिट. तथा काव्यतीर्थ । नीति-रामायण काव्य तथा पांच नाटक-स्नुषा-विजय, हनुमद्विजय, संस्कृत साहित्य परिषद के सचिव। वर्धमान वि.वि. में संस्कृत रसिकरंजन, वैदर्भी-वासुदेव तथा पद्मिनी-परिणय । के प्रध्यापक। सुंदरवल्ली - ई. 19 वीं शती। मैसूर निवासी नरसिंह अय्यंगार कृतियां :- धरित्रीपति-निर्वाचनम्, अथ किम्, ननाविताडन की कन्या तथा कस्तूरी रंगाचार्य की शिष्या। रचना-रामायणचम्पू: और स्वर्गीय प्रहसनम्। इनके अतिरिक्त कुछ अंग्रेजी, बंगला (6 सर्गों का काव्य)। तथा संस्कृत में कई अनुसंधानात्मक कृतियां भी इनके नाम हैं। सुन्दरवीरराघव - तिरुवल्लूर के कस्तूरी रंगनाथ का पुत्र । सिस्टर बालम्बाल - मद्रास निवासी। इन्होंने सरल-सुगम रचनाएं- (1) भोजराजाङ्कम, (2) अभिनवराघवम् (3) शैली में बालों के लिये "आर्यारामायणम्" की रचना की है। रम्भारावणीयम्। सीताराम आचार्य - ई. 20 वीं शती। "भैमीनैषधीय" नामक सुंदरेश शर्मा - ई. 20 वीं शती। तंजौर-निवासी। रामभक्त । रूपक के रचयिता। तंजौर में संस्कृत एकेडेमी के प्रवर्तक। कृतियां- त्यागराज-चरित सीताराम शास्त्री - काकरपारती (आंध्र) के निवासी। रचनाएं- (महाकाव्य), रामामृत-तरंगिणी (स्तोत्र-संग्रह), शृंगार-शेखर (1) चम्पूरामायणम् (2) सीतारामदयालहरी (खण्ड काव्य) । (भाण) राघव-गुणरत्नाकर और प्रेमविजय (नाटक)। सीताराम सूरि - समय-ई. 1836-1905 । "कविमनोरंजक-चंपू" सुकीर्ति काक्षीवत् - ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 131 वें नामक काव्य के रचयिता । जन्म-तिरुनेलवेलि जिले के तिरुकुरुडिग सूक्त के द्रष्टा । इन्द्र व अश्विनीकुमार इस सूक्त की देवता है। नामक ग्राम में। ग्रंथ का रचना काल- 1870 ई.। इसका सुखमय गंगोपाध्याय - ई. 20 वीं शती। बंगाल-निवासी। प्रकाशन 1950 ई. में हुआ। एम.ए.,बी.एड्. काव्यतीर्थ, व्याकरणतीर्थ व स्मृतितीर्थ । “पातिव्रत्य" संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 485 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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