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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कराते समय, व्रतबंध के मेधाजनन संस्कार में, ये सूक्त कहा जाता है। मेघासूक्त, श्रद्धासूक्त के अंत में आने वाला खिलसूक्त है। श्रीकांत गणक - अठारहवीं शती का मध्य । मिथिलानिवासी। "श्रीकृष्णजन्म-रहस्य" नामक दो अंकी नाटक के प्रणेता। श्रीकुमार - समय-ई. 11 वीं शती। नयनन्दि द्वारा उल्लिखित । धारा-निवासी। भोज राजा के समकालीन । रचना- आत्मप्रबोध (149 श्लोक)। अध्यात्म-विषयक ग्रंथ। कवि को "सरस्वती-कुमार" भी कहा जाता था। श्रीकृष्ण कवि - समय- 16-17 वीं शती। मंदार-मरंदचंपू के प्रणेता। इस चंपू-काव्य की रचना लक्षण ग्रंथ के रूप में हुई है और इसका प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस मुंबई से सन् 1924 में हुआ है। ग्रंथ के उपसंहार में इन्होंने अपना जो परिचय दिया है, उसके अनुसार इनका जन्म गुहपुर नामक ग्राम में हुआ था और इनके गुरु का नाम वासुदेव योगीश्वर था। श्रीकृष्ण जोशी - जन्म-1882 ई. मृत्यु-1965 ई.। नैनीताल-निवासी। प्रयाग के म्योर सेन्ट्रल कालेज में अध्ययन।। कुछ समय तक कुमाऊं में अधिवक्ता । बंग-भंग-आन्दोलन में सक्रिय सहभाग । तत्पश्चात् पं. मदनमोहन मालवीयजी के अनुरोध पर हिन्दू वि.वि. में अध्यापन। “विद्या-विभूषण' तथा "कवि-सुधांशु' की उपाधियों से विभूषित । कृतियां- रामरसायन (महाकाव्य), अखण्डभारत, स्यमन्तक (महाकाव्य), काव्यमीमांसा, सर्व-दर्शन-मंजूषा, अद्वैत-वेदांत-दर्शन, अन्तरंग-मीमांसा (उ.प्र. शासन द्वारा पुरस्कृत), कृतार्थ-कौशिक (नाटक), सत्य-सावित्र (नाटक) और परशुराम-चरित। श्रीकृष्ण तर्कालंकार - ई. 18 वीं शती। बंगाल के निवासी। "चंद्रदूत' के रचयिता। श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी - ई. 20 वीं शती। देवरिया (पूर्वी उत्तर-प्रदेश) के निवासी। एम.ए. एवं साहित्यरत्न । हरिहर संस्कृत पाठशाला में प्रधानाध्यापक । संस्कृत वि.वि. में प्राध्यापक। गुरु-रामयश त्रिपाठी। कृतियां-योगदर्शन-समीक्षा, सांख्यकारिका, पुराणतत्त्वमीमांसा, अष्टादश-पुराणपरिचय, सावित्री-नाटक (एकांकी) तथा अनेक हिन्दी रचनाएं। उ.प्र. शासन द्वारा सम्मानित। श्रीकृष्ण न्यायालंकार - ई. 17 वीं शती। रचना- भावदीपिका (न्याय-सिद्धान्तमंजरी की टीका)। श्रीकृष्ण ब्रह्मतन्त्र - परकाल स्वामी, ई. 19 वीं शती। आपने । 60 से अधिक ग्रंथों की रचना की है जिनमें प्रमुख हैंचपेटाहतिस्तुति, उत्तरंगमाहात्म्य, रामेश्वरविजय, नृसिंहविलासं, मदनगोपाल-माहात्म्य, अलंकार-मणिहार आदि। श्रीकृष्ण भट्ट - जन्म 1870 ई. में। जयपुर के महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह के आश्रित। इनकी मुख्य रचनाएं हैं- 1) ईश्वरविलास (इस महाकाव्य में जयपर की स्थापना, अश्वमेध यज्ञ एवं नगर की व्यवस्था का सुंदर वर्णन है), 2) सुन्दरीस्तवराजः (स्तोत्र काव्य, 103 पद्य)। श्रीकृष्ण मिश्र - "प्रबोधचंद्रोदय" नामक एक सुप्रसिद्ध प्रतीक नाटक के रचयिता। आप जैजाकभुक्त के राजा कीर्तिवर्मा के शासनकाल में विद्यमान थे। कीर्तिवर्मा का एक शिलालेख 1098 ई. का प्राप्त हुआ है। उससे ज्ञात होता है कि श्रीकृष्ण मिश्र का समय 1100 ई. के आसपास था। अपने "प्रबोधचंद्रोदय" नाटक में मिश्रजी ने श्रद्धा, भक्ति, विद्या, ज्ञान, मोह, विवेक, दंभ, बुद्धि आदि अमूर्त भावमय पदार्थों को नर-नारी के रूप में प्रस्तुत करते हुए वेदांत व वैष्णव-भक्ति का अतीव सुंदर प्रतिपादन किया है। श्रीकृष्णराम शर्मा - जयपुर में आयुर्वेद के अध्यापक। इनका विनोदप्रचुर काव्य है : “पलाण्डुशतक' (पलाण्डु = प्याज)। अन्य रचनाएं-सारशतक, आर्यालङ्कारशतक, मुक्तावली-मुक्तक और होलिमहोत्सव। श्रीचंद सूरि - समय-ई. 12-13 वीं शती। अपरनाम-पार्श्वदेव गणि। शीलभद्रसूरि के शिष्य। निशीष्य सूत्र की विशेष चूर्णि के बीसवें उद्देशक की दुर्गपद व्याख्या, कल्यावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूला और वृष्णिदशा उपांगों पर वृत्ति और जीतकल्पबृहच्चूर्णि-विषमपद व्याख्या। इसमें प्राकृत गाथाएं भी उदधृत हैं। श्रीचन्द - लाल बागड संघ और बलात्कारगण के आचार्य श्रीनन्दी के शिष्य। ग्रंथ-पुराणसार (सन् 1023), रविषेण के पद्मचरित की टीका (सन् 1030), पुष्पदन्त के उत्तरपुराण का टिप्पण (सन् 1030) और शिवकोटि की भगवती आराधना का टिप्पण। ये ग्रंथ राजा भोजदेव के राज्यकाल में धारानगरी में रचे गये। श्रीधर - अम्पलप्पुल (त्रावणकोर) के राजा देवनारायण (अठारहवीं शती) द्वारा सम्मानिक कवि। रचना'लक्ष्मी-देवनाराणीय" (नाटक)। श्रीधरदास - ई. 12 वीं शती। बंगाल के लक्ष्मण सेन के महामाण्डलिक। पिता- बटुदास महासामंत । 'सदुक्तिकर्णामृत' के संकलनकर्ता। श्रीधर वेंकटेश (अय्यावल) - तंजौर के भोसले-वंशीय शहाजी महाराज के आश्रित। इन्होंने अपने आश्रयदाता का चरित्र, अपने 6 सर्गयुक्त महाकाव्य "शाहेन्द्र-विलासकाव्यम्" में ग्रंथित किया है। कवि की अन्य रचनाएं- (1) दयाशतक, (2) मातृभूशतक, (3) तारावतीशतक और (4) आर्तिहरस्तोत्र आदि लघु काव्य। सभी काव्य हैं। कुम्भकोणम् के वैद्य मुद्रणालय में मुद्रित)। श्रीधर सेन - गुरु- मुनिसेन। सेन संघ के आचार्य । ग्रंथ-विश्वलोचन - कोश (मुक्तावली कोश)। शैली की दृष्टि 476 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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