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वि.सं. की 13 वीं शती के है। अन्य रचनाएं- क्षीरतरंगिणी, माधवीया धातुवृत्ति, (कातन्त्रगणधातुवृत्ति तथा गणरत्न-महोदधि में उल्लिखित)। वर्धमान की दृष्टि में शिवस्वामी पाणिनि के समान महान् है। शिवाजी महाराज भोसले - तंजौर के महाराज (1883-1855 ई.) । “इन्दुमति-परिणय" नामक यक्षगानात्मक नाटक के रचयिता। शिवादित्य मिश्र - ई. 10 वीं सदी। आपने अपने सप्तपदार्थी ग्रंथ में वैशेषिक सिद्धान्त का नैयायिक सिद्धान्त से समन्वय किया है। "लक्षणमाला" नामक आपका एक और ग्रंथ है। शिवानंदनाथ - ई. 17 या 18 वीं सदी। मूल नाम काशीनाथ भट्ट। वाराणसी में निवास। शिव और शक्ति के उपासक। दक्षिणाचार के पुरस्कर्ता। वामाचार के कट्टर विरोधक। तंत्र
और पुराणों पर अन्यान्य साठ ग्रंथों की रचना की। शिशुमायण - पितामह-मायणसेट्टि। पिता-वोमसेट्टि । माता-नेमांबिका । जन्म-स्थान-होयसल देश के अन्तर्गत नयनापुर । गुरु-काणूरगण के भानुमुनि। समय-ई. 13 वीं शती। ग्रंथ त्रिपुरदहनसांगत्य तथा अंजनाचरित। शीलांक - अपरनाम-शीलाचार्य एवं तत्त्वादित्य। कुशल टीकाकार । समय-ई. नवीं-दसवीं शताब्दी। ग्रंथ-प्रथम 9 आगमों पर टीकाएं (जिनमें आज दो टीकाएं ही उपलब्ध है- (1) आचारांग टीका और (2) सूत्रकृतांग टीका)। इन टीकाओं की लेखनकार्य में शीलांक को विद्वानों का सहयोग मिला था। सांस्कृतिक सामग्री से समन्वित इन टीकाओं को विवरण संज्ञा दी गई है। ये विवरण मूल सूत्र और नियुक्ति पर संस्कृत भाषा में हैं। शब्दार्थ के साथ विषय का विस्तृत विवेचन इनमें है। संस्कृत-प्राकृत के उद्धरणों से वक्तव्य की पुष्टि की है। शीलांक - अपरनाम-सीलंक। निर्वत्तिकुल के आचार्य मानदेव सूरि के शिष्य। आगम टीकाकार शीलांकाचार्य से भिन्न। समकालीन शीलाचार्य (अपरनाम तत्त्वादित्य) से भी भिन्न । ग्रंथ- 1) चंडापन्न महापुरिस चरिय (संस्कृत-प्राकृत मिश्रित भाषाओं में लिखित गद्य-पद्य मिश्रित ग्रंथ)। 10800 श्लोकपरिमाण। पउमचरिय। विमलसूरि तथा वाल्मीकि रामायण से प्रभावित, 2) विबुधानन्द नाटक, 3) देशीनाम-माला। समय-चंडापन्न महापुरिसचरिय की रचना वि.सं. 925 में हुई। शुकदेव - ई. 19 वीं सदी का पूर्वार्ध। भागवत के द्वैताद्वैती व्याख्याकार। सिद्धान्त-प्रदीप नामक भागवत की टीका के लेखक । सांप्रदायिक मान्यता के अनुसार मथुरा के “परशुराम-द्वार" नामक स्थान पर निवास। गुरु-सर्वेश्वरदास, जिनकी वंदना शुकदेव ने अपने सिद्धान्त-प्रदीप के मंगलाचरण में की है। ___ "सर्वेश्वर" पत्र के अनुसार विक्रम सं. 1897 (= 1840 ई.) में सलेमाबाद के जगद्गुरु-पीठ पर आसीन होने के लिये इनसे प्रार्थना की गई थी, किन्तु नितांत विरक्त होने के कारण
इन्होंने यह पद स्वीकार नहीं किया। शुकदेव ने बडी निष्ठा से भागवत की व्याख्या अपने संप्रदायानुसार की है। इस श्रीका-संपत्ति के लिये निबार्क-संप्रदाय इनका सदैव ऋणी रहेगा। शनहोत्र भारद्वाज - भरद्वाज के पुत्र । पुत्र का नाम गृत्समद । ऋग्वेद के छठे मंडल के तैतीस और चौंतीसवें सूक्त के द्रष्टा । इंद्रस्तुति इनका विषय है। शुभंकर - ई. 15 वीं शती। बंगाल के निवासी। "संगीत दामोदर" के कर्ता। यह रचना राजा दामोदर को अर्पित की गई है। इनकी दूसरी रचना है "नारदीय-शिक्षा" की टीका । शुभचन्द्र - शुभचन्द्र नाम के अनेक आचार्य हुए है। प्रस्तुत शुभचन्द्र, ई. 11-12 वीं शती में हुए। कहा जाता है, शुभचन्द्र और भर्तृहरि उज्जयिनी के राजा सिन्धुल के पुत्र थे। दोनों बडे शक्तिशाली थे। उनकी शक्ति को देखकर मुंज राजा ने उन्हें नामशेष करने का षडयन्त्र किया। इसकी जानकारी होने पर दोनों भाइयों ने संन्यास ले लिया। शुभचन्द्र दिगम्बर जैन मुनि हुए और भर्तृहरि कौल तपस्वी। भर्तृहरि ने कुछ विद्याएं सीखीं जिन्हें शुभचन्द्र को भी बताया। पर शुभचन्द्र ने समझाया"यदि यही करना था, तो संन्यासी क्यों हुए।" भर्तृहरि को समझाने के लिए ही शुभचन्द्र ने "ज्ञानार्णव' की रचना की। यह ग्रंथ महाकाव्य के समान सर्गों में विभक्त है। सर्ग 42,
और श्लोक 2107 है। इनमें बारह भावना, पंच महाव्रत, चार ध्यान आदि का विस्तृत विवेचन है। इस ग्रंथ पर पूज्यपाद के समाधितंत्र और इष्टोपदेश का प्रभाव अधिक है। अमृतचन्द्र, अमितगति, जिनसेन हेमचंद्र आदि से भी यह प्रभावित है। शुभचन्द्र - भट्टाकर विजयकीर्ति के शिष्य। जीवनकाल-वि.सं. 1535-1620। बहुभाषाविज्ञ । कार्यक्षेत्र-गुजरात और राजस्थान । रचनाएं-चन्द्रप्रभचरित, करकण्डुचरित, कार्तिकेयानुप्रेक्षा टीका, चन्दनाचरित, जीवन्धरचरित, पाण्डवपुराण, श्रेणिकचरित, सज्जनचित्तवल्लभ, पार्श्वनाथ काव्यपंजिका, प्राकृतलक्षण, अध्यात्मतरंगिणी, अम्बिकाकल्प, अष्टाह्निकी कथा, कर्मदहनपूजा, चन्दनषष्ठीव्रत पूजा, गणधरवलय पूजा, चारित्र्यशुद्धिविधान, पंचकल्याण पूजा, पल्लीव्रतोद्यान, तेरह द्वीपपूजा, पुष्पांजलिव्रतपूजा, सार्द्धद्वयद्वीप पूजा और सिद्धचक्रपूजा। इनके अतिरिक्त शुभचंद्र के कुछ हिन्दी ग्रंथ भी प्राप्य हैं। शुभचन्द्र - कर्नाटकवासी। दासूरगण के विद्वान । बलात्कारगण के शुभचन्द्र से भिन्न व्यक्तित्व। समय-ई. 14 वीं शती। ग्रंथ'षट्दर्शन-प्रमाण-प्रमेय-संग्रह"। शूद्रक - "मृच्छकटिक" नामक प्रख्यात रूपक के कर्ता। उक्त प्रकरण के एक श्लोक के अनुसार शूद्रक एक महान् क्षत्रिय राजा थे। ऋग्वेद, सामवेद, गणितशास्त्र, ललितकला, तथा हाथियों को प्रशिक्षित करने की विद्या उन्हें ज्ञात थी। अश्वमेघ यज्ञ भी आपने किया था। आपकी आयु सौ वर्ष और दस दिन की रही। आखिर स्वयं होकर आपने अग्निप्रवेश किया।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 473
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