SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अनूदित कृतियां- शेक्सपियर के ओथल्लो और मर्चेण्ट द्वारा "श्रीविद्या' की उपाधि से विभूषित । आफ् वेनिस के संस्कृत अनुवाद। सम्पादित ग्रंथ- भ्रमरदूत, कृतिया- विजयलहरी (गीतिकाव्य)। प्रतापविजय, चन्द्रदूत, हंसदूत, पान्थदूत, वाङ्मण्डनगुणदूत, घटकर्पर, पदांकदूत संयोगिता-स्वयंवर तथा छत्रपति-साम्राज्यम्, ये तीन नाटक। आदि काव्य। अब्दुल्लाचित, सुरजन-चरित, वीरभद्र (चम्पू), सप्तर्षिद एवेद-सर्वस्व (भाष्य)। इनके अतिरिक्त मेवाडप्रतिष्ठा, जामविजय (काव्य) आदि ऐतिहासिक रचनाएं। हर्षदिग्विजय आदि पांच गुजराती पुस्तकें। इनके अतिरिक्त पालि में एक नाटक जो रंगून में सन् यादव - भेदाभेदवादी एक वेदांताचार्य। ये, यदि रामानुज के 1960 में अभिनीत हुआ। गुरु यादवप्रकाश से अभिन्न हों, तो इनका समय ई. 11 वीं याज्ञवल्क्य . इनके द्वारा लिखित याज्ञवल्क्यस्मृति, शताब्दी का अंतिम भाग होना। रामानुज ने "वेदार्थसंग्रह" में योगयाज्ञवल्क्य और बृहद्योगी-याज्ञवल्क्य नामक तीन ग्रंथ माने वेदांतदेशिक ने “परमत-भंग" में और व्यासतीर्थ ने तात्पर्यजाते हैं। धर्मशास्त्र इतिहास के लेखक भारतरत्न काणे, स्मृतिकार चंद्रिका" में इनके मत का उल्लेख किया है। इन्होंने ब्रह्मसूत्र और योगशास्त्रकार याज्ञवल्क्य को भिन्न मानते हैं। उसका और गीता पर भेदाभेदसम्मत भाष्य का निर्माण किया है। ये कारण यह है कि याज्ञवल्क्य कृत स्मृति और योग विषयक निर्गुण ब्रह्म तथा मायावाद नहीं मानते। इनके मत के अनुसार ग्रंथों में दस यमों एवं दस नियमों का उल्लेख है किन्तु दोनों ज्ञान-कर्मसमुच्चय मोक्ष का साधन है। ब्रह्म भिन्नाभिन्न है। ग्रंथ नामोल्लेख में मेल नहीं खाते। बृहदारण्यक उपनिषद् में। इनके पूर्ववर्ती वेदांताचार्य भास्कर भेद को औपाधिक मानते हैं याज्ञवल्क्य की मैत्रेयी और कात्यायनी नामक दो पत्नियों का पर यादव उपाधिवाद नहीं मानते। ये परिणामवादी हैं तथा निर्देश है। मैत्रेयी अध्यात्मप्रवण और कात्यायनी संसाराभिमुख जीवन्मुक्ति को अस्वीकार करते हैं। थी। जनक की राजसभा में उपस्थित अश्वल, आर्तभाग, भुज्यु, यादवेन्द्र राय - समय- ई. 20 वीं शती। बंगाली। कतियांलाह्यायनि, उषस्त, चाक्रायण, कहोड के समान गार्गी वाचक्नवी । आरण्यकविलास तथा मङ्गलोत्सव खण्डकाव्य। नाटकका याज्ञवल्क्य से संवाद हुआ था। वहां गार्गी अन्य लोगों स्वर्गीयप्रहसन के समान याज्ञवल्क्य के ब्रह्मनिष्ठ होने के अधिकार पर विरोध यादवेश्वर तर्करन - समय ई. 19-20 शती। बंगाली। प्रकट करती है। तब याज्ञवल्क्य उसकी भर्त्सना करते हैं और कृतियां- राज्याभिषेक काव्य (1902) और अश्रुविसर्जन खण्डकाव्य कहते हैं कि यदि वह उसी प्रकार तर्क का आश्रय लेती (1900)। चलेगी तो उसका सिर भ्रमित हो जायेगा। योगीयाज्ञवल्क्य के यामुनाचार्य (आलवंदार) - समय- ई. 10 वीं शती सम्पादक पी.सी. दीवाणजी ने गार्गी को याज्ञवल्क्य की पत्नी का अंतिम-चरण। विशिष्टाद्वैत मुनि (नाथमुनि) के पौत्र । ये कहा है। बृहदारण्यक उपनिषद् में "याज्ञवल्क्यस्य द्वे भायें नाथमुनि के समान ही अध्यात्म-निष्णात विद्वान् थे किन्तु इनकी बभूवतुः । मैत्रेयी च कात्यायनी च" कहा गया है। इस वाक्य प्रवृत्ति राजसी वैभव में ही दिन बिताने की होने से नाथमुनि में केवल दो पत्नियों का स्पष्ट निर्देश होने से वाचक्नवी गार्गी के पश्चात् आचार्य-पद पर पुंडरीकाक्ष तथा राममिश्र आरूढ का ही अपरनाम मैत्रेयी माना जाता है। हुए थे। राममिश्र को यामुनाचार्य की राजसी प्रवृत्ति से बडा श्वेताश्चतर उपनिषद् के भाष्य में शंकराचार्य ने योगियाज्ञवल्क्य दुःख हुआ। अतः उन्होंने इन्हें समझा-बुझाकर इनमें अध्यात्मविद्या ग्रंथ से साढे चार श्लोक उद्धत किये हैं। अपरार्क एवं की अभिरुचि उत्पन्न की और भक्तिशास्त्र का उपदेश देकर स्मृतिचन्द्रिका ने लगभग 100 श्लोक बृहद् योगियाज्ञवल्क्य से अपना शिष्य बनाया। राममिश्र के वैकुंठवासी होने के पश्चात् उद्धृत किये है। ये सन् 973 में श्रीरंगम् के आचार्यपीठ पर आसीन हुए और कत्यकल्पतरु ने लगभग 70 श्लोक बृहद्योगि-याज्ञवल्क्य वैष्णव मंडली का नेतत्व करने लगे। ये अपने तामिल नाम से उद्धृत किये हैं। बंगाल के राजा बल्लालसेन (ई. 1152-79) "आलवंदार" के नाम से विशेष प्रख्यात हैं। इन्होंने प्राचीन ने अपने दानसागर में बृहद्योगि-याज्ञवल्क्य से बहुत से उद्धरण आलवार-काव्यों के प्रचार, प्रसार तथा अध्यापन के साथ ही लिए हैं। नवीन ग्रंथों का प्रणयन भी किया। इनके प्रमुख ग्रंथों के नाम याज्ञिक, मूलशंकर माणिकलाल - जन्म नडियाद (गुजरात) है- गीतार्थसंग्रह, श्रीचतुःश्लोकी, सिद्धितंत्र, महापुरुषनिर्णय, में दि. 31-1-1886 को। मृत्यु दि. 13-11-1965 को। आगमप्रामाण्य तथा आलवंदारस्तोत्र। यामुनाचार्य के ग्रंथों में पिता-माणिकलाल। माता-अतिलक्ष्मी। आरम्भिक शिक्षा नडियाद यहा सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथ है और "स्तोत्ररत्न" के में। उच्च शिक्षा बडोदा में। बी.ए. के बाद बैंक में कार्यरत । नाम से वैष्णव समाज में विख्यात है। आलवंदारस्तोत्र के 70 सन् 1924 में शिनोर में शिक्षक। बाद में बडोदा के संस्कृत श्लोकों में आत्मसमर्पण के सिद्धान्त का सुंदर वर्णन है। कॉलेज के प्राचार्य। सेवानिवृत्त होने पर नडियाद में निवास । यामुनाचार्य ने काव्य एवं दर्शन दोनों ही प्रकार के ग्रंथों का वाराणसी विद्वत परिषद् द्वारा “साहित्यमणि" तथा शंकराचार्य प्रणयन किया। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/419 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy