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अन्य प्रकाशित कृतियां - छात्रोपयोगी लघुरामचरित, महिम भट्ट : इन्होंने "व्यक्ति-विवेक" नामक काव्यशास्त्र के उपक्रम पाठावली, मध्यमपाठावली, प्रौढ पाठावली, प्रवेशपाठावली युगप्रवर्तक ग्रंथ की रचना की है जिसमें व्यंजना या ध्वनि तथा संस्कृत-लाघव । महाविद्यालयों के लिए भासकथासार (तीन का खंडन कर उसके सभी भेदों का अंतर्भाव अनुमान में खण्डों में) गद्य कथानककोश, संकथासन्दोह, कवि-काव्यनिकष । किया गया है। इनकी उपाधि "राजानक" थी आर ये काश्मीर इसके अतिरिक्त संस्कृत में कीर्तन तथा रागमालिकाएं में रागोचित के निवासी थे। स्वर-निर्देशन।
समय- ई. 11 वीं शती का मध्य। पिता-श्रीधैर्य व गुरु अप्रकाशित कृतियां . मणिमाला (काव्य), श्यामल। इन्होंने अपने ग्रंथ में कुंतक का उल्लेख किया है, प्रशस्ति-प्रगुणमालिका, किंकिणीमाला (द्वितीय खण्ड), और अलंकारसर्वस्वकार रुय्यक ने इनके ग्रंथ 'व्यक्तिविवेक' व्याजोक्तिरत्नावली (द्वितीय खण्ड), प्रकीर्ण काव्य, भारतीविषाद, की व्याख्या लिखी है। इससे इनका समय ई. 11 वीं शती महामहिषसप्तति, लघुपाण्डवचरितम्, शृंगाररसमंजरी, __का मध्य ही निश्चित होता है। महिमभट्ट नैयायिक हैं। इन्होंने श्रीवल्लभ-सुभाषितानि, उत्तरकाण्ड (लघु रामचरित का पूरक)। न्याय की पद्धति से ध्वनि का खंडन का उसके सभी भेदों महावीर प्रसाद जोशी - जन्म- 1914 ई. में। काव्यतीर्थ व
को अनुमान में गतार्थ किया है और ध्वनिकार द्वारा प्रस्तुत साहित्यायुर्वेदाचार्य महावीरप्रसाद जोशी का जन्म डूंडलोद (झुंझुन,
किये गये उदाहरणों में अत्यंत सूक्ष्मता के साथ दोषान्वेषण राजस्थान) में हुआ था। इनकी रचना है प्रतापचरितम्।
कर उन्हें अनुमान का उदाहरण सिद्ध किया है। इन्होंने संस्कृत-रत्नाकर, सुप्रभात तथा सूर्योदय आदि संस्कृत-पत्रिकाओं
ध्वन्यालोक में प्रस्तुत किये गये ध्वनि के लक्षण में 10 दोष में भी आपकी अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।
ढूंढ निकाले हैं जिससे इनका प्रौढ पांडित्य झलकता है। इनके महावीरप्रसाद द्विवेदी - हिन्दी साहित्य के महान् सेवक।
समान ध्वनि-सिद्धांत का विरोधी कोई नहीं हुआ। इनका प्रौढ
पांडित्य व सूक्ष्म विवेचन संस्कृत काव्यशास्त्र में अद्वितीय है। संस्कृत में विनोदपरक रचना- 'कान्यकुब्जलीलामृतम्'।
इन्होंने व्यंग्यार्थ को अनुमेय स्वीकार करते हुए ध्वनि का नाम महावीराचार्य - समय ई. 9 वीं शती। रेखागणित, बीजगणित
'काव्यानुमिति' दिया है। इनके अनुसार काव्यानुमिति वहां होती व पाटीगणित के प्रसिद्ध आचार्य । कन्नड-भाषी। जैनमतावलंबी।
है जहां वाच्य या उसके द्वारा अनुमित अर्थ, दूसरे अर्थ को इन्होंने गणित व ज्योतिष पर दो ग्रंथों की रचना की है
किसी संबंध से प्रकाशित करे (व्य.वि. 1-25)। 'गणितसारसंग्रह' और 'ज्योतिषपटल' । ये जैनधर्मी राजा अमोघवर्ष
महिमभट्ट - रचना- नटाङ्कुशम्। (अभिनय और रस संबंधी)। (राष्ट्रकूट-वंश) के आश्रित थे। इनका 'ज्योतिषपटल' नामक ग्रंथ अधूरा ही प्राप्त हुआ है। अपने "गणितसार-संग्रह"
प्रथम श्लोक में महिम शब्द के प्रयोग से यह तर्क किया
जाता है, कि रचना महिमभट्ट की हो। नामक ग्रंथ के प्रारंभ में इन्होंने गणित की प्रंशसा की है। इनका 'जातकतिलक' ग्रंथ भी उल्लेखनीय है।
महिमोदय - ज्योतिषशास्त्र के आचार्य। समय- ई. 18 वीं
शती। गुरु-जैन विद्वान् लब्धिविजय सूरि। महिमोदय ने महासेन - लाङवागड संघ के जैन आचार्य। गुणाकरसेन के
'ज्योतिष-रत्नाकर' नामक फलित ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ शिष्य और पर्णट के गुरु । परमारवंशी राजा मुंज (समय- 10
लिखा है जिसमें संहिता, मुहूर्त तथा जातक तीनों ही अंगों वीं शताब्दी का उत्तरार्ध) द्वारा पूजित । ग्रंथ-प्रद्युम्नचरित महाकाव्य,
का विवेचन किया गया है। ये फलित व गणित दोनों के जिसमें 14 सर्गों में भगवान् श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र
ही मर्मज्ञ थे। इन्होंने 'गणित साठ सौ' तथा 'पंचांगानयनविधि' प्रद्युम्न की गौरव गाथा वर्णित है। यह गाथा श्रीमद्भागवत
नामक गणित 'ज्योतिष-विषयक दो ग्रंथों की रचना की है। तथा विष्णुपुराण में भी मिलती है पर जैन साहित्य में
महीधर - ई. 17 वीं शती। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन हरिवंशपुराण के आधार पर उनके चरित को सुविधानुसार
संहिता के भाष्यकार। निवासस्थान- काशी। 'मन्त्रमहोदधि' परिवर्तित किया है। कथानक श्रृंखलाबद्ध एवं सुगठित है।
नामक तंत्र ग्रंथ और उस पर टीका भी महीधराचार्य ने लिखी। महासेन पण्डितदेव - दक्षिणवासी। समय-ई. 12 वीं शती।
मन्त्रमहोदधि में जो काल-निर्देश है, उससे महीधराचार्य का नवसेन पण्डितदेव के शिष्य। पद्मप्रभ मलधारी देव द्वारा
समय निःसंदिग्ध हो जाता है। उवट और माधव इन दोनों वादी-विजेता के रूप में उल्लिखित । ग्रंथ-स्वरूपसंबोधन तथा
के भाष्य का अभ्यास करते हुए अपने वेददीप नामक यजुर्भाष्य प्रमाण-निर्णय।
की रचना महीधर आचार्य ने की। कई विद्वानों के मतानुसार महास्वामी : सामसंहिता और भाषिकसूत्र के भाष्यकार । यह निर्दिष्ट माधव, वेंकट-माधव हैं, सायण-माधव नहीं किन्तु अनन्ताचार्य का भाषिक सूत्रभाष्य इनके ग्रन्थ की छायामात्र है। इस मत का खण्डन भी हो चुका है। महीधराचार्य का भाषिकसूत्रभाष्य और सामवेद-भाष्य इन दो कृतियों के कर्ता वेददीपभाष्य-उवटाचार्य के माध्यंदिनभाष्य से प्रभावित है। उवट एक ही हैं या भिन्न यह निश्चित कहना कठिन हैं।
संक्षेप के, और महीधर विस्तार के प्रेमी हैं। महीधराचार्य ने
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 411
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