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पहुंचे थे। उन्होंने उपर्युक्त तीन चरण सुन लिये थे। अतः चौथा चरण स्वयं उन्होंने ही इस प्रकार पूर्ण कर डाला- 'कुचप्रत्यासत्या हृदयमपि ते चण्डि कठिनम्।' चतुर्थ चरण सुनकर बाण को क्रोध हो आया। उन्होंने मयूर को शाप दिया कि वह कुष्ठरोगी होगा। शापनिवृत्ति कलिय मयूर ने सूर्यस्तुतिपरक सौ श्लोक (स्रग्धरा वृत्त में) लिखे। तब उनकी रोग से मुक्ति हुई।
उपयक्त श्लोक का अर्थ है- हे कशांगि रात्रि प्रायः समाप्त होती आयी है। चंद्र फीका पड गया है। यह दीप भी निद्रावश होकर बुझने को है। पति के चरण छूने पर (पत्नी का) मान दूर होता है, परंतु तूने अभी तक क्रोध नहीं छोडा है। हे चण्डि, कठिन स्तनों के
समीप रहने से तेरा हृदय भी कठिन हो गया है। मयूरेश - वैदिक रुद्र सूक्त के भाष्यकार। गुरु का नामकैवल्येन्द्र। भाष्यनिर्मिति का शक 1634। अपने भाष्य को मयूरेश 'अतिगूढ' बताते हैं। यह भाष्य चैत्र शुक्ल चतुर्थी शक 'विकृत्' में उन्होंने पूर्ण किया। मलयगिरि - गुजरात-निवासी मंत्रशास्त्रज्ञ। समय- ई. 11-12 वीं शती। हेमचन्द्रसूरि तथा देवेन्द्रसूरि के समकालीन। ग्रंथ-1. भगवतीसूत्र- द्वितीय शतक-वृत्ति, 2. राजप्रश्नीयोपांग टीका, 3. जीवाभिगमोपांग टीका, 4. प्रज्ञापनोपांग टीका, 5. चन्द्रप्रज्ञप्त्युपांग टीका, 6. सूर्यप्रज्ञप्त्युपांग टीका, 7. नंदिसूत्रटीका, 8. व्यवहारसूत्र वृत्ति, 9. ब्रह्मकल्प पीठिकावृत्ति (अपूर्ण), 10. आवश्यक-वृत्ति (अपूर्ण) 11. पिण्डनियुक्ति टीका, 12. ज्योतिष्करण्डकटीका, 13. धर्मसंग्रहणी वृत्ति, 14. कर्मप्रकृत्ति, 15. पंचसंग्रहवृत्ति, 16. षडशीतिवृत्ति, 17. सप्ततिकावृत्ति, 18. बृहत्संग्रहणीवृत्ति, 19. बृहत्क्षेत्रसमासवृत्ति और 20. मलयगिरि-शब्दानुशासन । सूत्र गाथा आदि का स्पष्टीकरण प्राकृत-संस्कृत उद्धरणों के साथ। मलयकवि- रचनाएं- (1) 'मीनाक्षी-परिणय' (अठारह सर्ग) (2) 'कामाक्षी-विलास' और (3) 'तारकासुर वध' मल्लय यज्वा - महाभाष्यप्रदीप पर टिप्पणी के लेखक। इनके पुत्र तिरुमल यज्वा ने अपने दर्शपूर्णमासमन्त्र भाष्य में इस टिप्पणी का उल्लेख किया है। राज,-हस्त,-पुस्त, मद्रास में उपलब्ध। तिरुमल ने भी एक भाष्य 'प्रदीप' पर लिखा जो अप्राप्य है। मल्लिनाथ - सुप्रसिद्ध पंच महाकाव्यों तथा मेघदूत के टीकाकार तथा न्यासद्योत नाम्नी शास्त्रीय टीका के लेखक। समय- ई. की 14 वीं शती। निवासस्थान- कोलाचलम् (जि.-मेदक, आंध्रप्रदेश) के तेलंग ब्राह्मण। मल्लिनाथ की टीकाएं साहित्यक्षेत्र में आदर्श मानी जाती हैं। "नामूलं लिख्यते किंचित् नानपेक्षितमुच्यते" अर्थात् मेरी टीका में निराधार तथा अनेपेक्षित कुछ भी लिखा नही है- यह इनकी प्रतिज्ञा थी। मल्लिनाथ की टीकाओं में उनका सर्वकष पांडित्य दिखाई देता है। इनके
पिता का नाम कपर्दी था और राजा सिंगभूपाल ने अपने 16 वें यज्ञ के अवसर पर इनका स्वर्ण-मौक्तिकों से अभिषेक किया था। मल्लिषेण - समय- ई. 11 वीं शती। कवि और मठाधिपति भट्टारक । मन्त्र-तन्त्र और रोगोपचार में प्रवृत्त । कार्यक्षेत्र- कर्नाटक के धारवाड जिले का मूलगुन्द नामक स्थान। चामुण्डराय के गुरु अजितसेन की परम्परा में दीक्षित। ___ रचनाएं- 1. नागकुमारकाव्य (5 सर्ग) 2. महापुराण (2000 श्लोक), 3. भैरवपद्यावतीकल्प (10 अधिकार और 400 अनुष्टुप), 4. सरस्वती-मन्त्रकल्प (75 पद्य तथा कुछ गद्य), 5. ज्वालिनीकल्प और 6. कामचाण्डालीकल्प। मल्लिसेन - ज्योतिष-शास्त्र के एक आचार्य । जन्म- 1043 ई.। इनके पिता जिनसेन सूरि जैन-धर्मावलंबी थे। कर्नाटक के धारवाड जिले में स्थित गदग नामक ग्राम के निवासी। प्राकृत तथा संस्कृत दोनों ही भाषाओं के पंडित। इन्होंने 'आर्यसद्भाव' नामक ज्योतिष शास्त्रीय ग्रंथ की रचना की है। इस ग्रंथ के अंत में इन्होंने बताया है कि ज्योतिष-शास्त्र के द्वारा भूत, भविष्य तथा वर्तमान का ज्ञान प्राप्त होता है। यह विद्या किसी अनधिकारी व्यक्ति को नहीं देनी चाहिये। महादेव - ई. 17 वीं शती। गोत्र-कौण्डिण्य। पिता-कृष्णसूरि तंजावर के निकट कावेरी के तट पर पलमारनेरी के निवासी । गुरु-बालकृष्ण। रामभद्र दीक्षित के सतीर्थ । शाहराज (शहाजी भोसले) के द्वारा दोनों सतीर्थों को 1693 में प्रदत्त अग्रहार में भाग। महादेव को रामभद्र दीक्षित से तिगुना भाग मिला। रचना- अद्भुतदर्पण नामक नौ अंकों का अद्भुतरस प्रधान नाटक। महादेव - रचना- प्रपंचामृतसार। इस का विषय है रामानुज के विशिष्टाद्वैत तथा माध्वद्वैत-सिद्धान्त का खण्डन तथा अद्वैतमत की स्थापना। मराठी अनुवाद उपलब्ध। महाबल - भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण। पिता-राथिदेव । माता-राजियक्का। गुरु- माधवचन्द्र विद्य। कवि के आश्रयदाताराजा केतनायक। समय- ई. 13 वीं शती। ग्रंथ- नेमिनाथ-पुराण (ई. 1254) चम्पू-शैली में लिखित । महालिंग शास्त्री . जन्म तिरुवालंगाड (तंजावर) में जुलाई 1897 में। सुप्रसिद्ध अप्पय दीक्षित के वंशज । पिता-यज्ञस्वामी। शिक्षा- एम.ए., एल.एल.बी. । मद्रास हाईकोर्ट में वकालत । संगीतशास्त्र में निपुण । महालिंग शास्त्री द्वारा लिखित
प्रकाशित काव्यकृतियां - किंकिणीमाला, द्राविडार्या सुभाषित-सप्तति, व्याजोक्ति-रत्नावली, भ्रमरसन्देश, देशिकेन्द्रस्तवांजलि, शम्भुचर्योपदेश, वनलता, स्तुतिपुष्पोपहार (अपर नाम मुक्त-स्तुतिमंजरी)। __प्रकाशित नाट्यकृतियां - कौडिन्य-प्रहसन, प्रतिराजसूय, मर्कटमार्दलिक-भाण, शृंगारनारदीय, उभयरूपक, कलिप्रादुर्भाव, आदिकाष्योदय, उद्गातृदशानन तथा अयोध्याकाण्ड।
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410 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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