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बलात्कार-गण के जैन विद्वान् । भट्टारक मल्लिषेण के शिष्य । अग्रवाल । गोत्र- गोयल । आशानगर (मालव प्रदेश) के निवासी । रचनाएं आराधना-कथा- कोश, नेमिनाथ- पुराण, श्रीपालचरित, सुदर्शनचरित, रात्रिभोजनत्याग कथा प्रीतंकर- महामुनिचरित, धन्यकुमारचरित नेमिनिर्वाण-काव्य, नागकुमार- कथा और धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार इनके अतिरिक्त हिन्दी में भी इनकी रचनाएं उपलब्ध हैं ।
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ब्रह्म शिव- कर्नाटकवासी । वत्सगोत्री ब्राह्मण । पिता अग्गलदेव । गुरुनाम - वीरनन्दी । कीर्तिवर्मा और आहवमल्ल नरेश के समकालीन पहले वैदिक मतानुयायी, बाद में लिंगायती बने। तत्पश्चात् जैन धर्मावलंबी हुए। समय- ई. 12 वीं शती । ग्रंथसमयपरीक्षा ।
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ब्रह्मश्री कपाली - शास्त्री - योगिराज अरविन्द के प्रमुख शिष्य । वेदोपनिषदन्तर्गत गूढ आध्यात्मिक ज्ञान का संशोधन करने में व्यस्त । आधुनिक समय के रमण महर्षि, तथा वसिष्ठ - गणपति-मुि कपाली शास्त्री के प्रेरक तथा स्फूर्तिदायक थे। भारद्वाज गोत्र पिता-विश्वेश्वर । तिरुवोषिपुरि-निवासी । पिता के पास वेदाध्ययन । 20 वर्ष की आयु तक आयुर्वेद तथा ज्योतिषशास्त्र में नैपुण्य प्राप्त । गायत्री साधना । वेदविद्या का गूढ खोजने की अनिवार अभिलाषा । वासिष्ठ गणपति मुनि से संपर्क। उनके द्वारा मन्त्रतंत्रादि साधना में विशेष गति । रमण महर्षि से भेंट । अन्तः प्रेरणा से पाण्डीचेरी में योगिराज अरविन्द का शिष्यत्व ग्रहण कर उनके अंग्रेजी ग्रंथों द्वारा (लाइटस् आन दि उपनिषदाज तथा थॉटस ऑन् दि तन्त्राज) उपनिषदों पर तथा तन्त्रमार्ग पर प्रकाश । योगिराज अरविंद के पूर्णयोग-सिद्धान्त के अनुसार, ऋग्वेद-सिद्धांजनभाष्य । ( भूमिका सहित) 60 वर्ष की आयु में लिखा । वासिष्ठ गणपति मुनि का चरित्र लिखा तथा उनकी रचनाओं पर टीकाएं लिखी। "भारतीस्तवः " लिख कर दशभक्ति का परिचय दिया। ऐसे देशभक्त योगी तथा वेदरहस्यज्ञ महापुरुष का देहावसान, सन् 1953 में हुआ । ब्रह्मतिथि काण्व ऋग्वेद के आठवें मंडल के पांचवे सूक्त के रचियता । इस सूक्त में अश्विनी-देवताओं की स्तुति की गयी है । ब्रह्मानंद सरस्वती - ई. 17 वीं शती । ये गौड ब्रह्मानंद नाम से भी विख्यात हैं। मूलतः बंगाल प्रान्त के निवासी । परंतु काशी - क्षेत्र में रहते थे। इनके नारायणतीर्थ तथा परमानंद सरस्वती दो गुरु थे । इन्होंने ब्रह्मसूत्र पर मुक्तावलि नामक तथा जैमिनि सूत्र पर मीमांसा चंद्रिका नामक टीका ग्रंथ लिखे हैं। इनका, अद्वैतसिद्धि पर अद्वैतचंद्रिका नामक टीकाग्रंथ बहुत प्रसिद्ध है। इस टीका के लघु तथा गुरु दो भेद उपलब्ध हैं। लघुरूप, चंद्रिका नाम से सर्वत्र विख्यात है । इन ग्रंथों के अतिरिक्त, "अद्वैतसिद्धांतविद्योतन" नामक इनका और एक ग्रंथ है। ये भट्ट संप्रदायानुगामी मीमांसक थे। भगवंत कवि ( भगवंतराय गांगाधरि )
समय 1687 से
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1711 ई. के आस पास । ये नरसिंह के शिष्य तथा शाहजी राजा भोसले के पुत्र एकोजी (शिवाजी के सौतेले भाई) के मुख्य सचिव गंगाधरामात्य के पुत्र थे। इन्होंने अपने चंपू काव्य में अपना परिचय दिया है।
अन्य कृतियां राघवाभ्युदय (नाटक) मुकुंदविलास ( काव्य ) और उत्तररामचम्पू (वाल्मीकि रामायण पर आधारित ) भगवत्प्रसाद स्वामिनारायण संप्रदाय के संस्थापक तथा उद्धव के अवतार माने गए ब्रह्मानंद स्वामी (1837 वि. 1866 वि.) के पौत्र । इन्होंने अपने संप्रदाय के अनुसार भागवत की व्याख्या लिखी जिसका 'भक्तरंजनी' नाम है। यह व्याख्या भगवत्प्रसाद के पुत्र बिहारीलाल की आज्ञा से 1940 वि. 1883 ई. में प्रकाशित हुई है। इसका रचना काल 1850 ई. के लगभग माना जा सकता है। I
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भगवदाचार्य स्वामी ई. 20 वीं शती का पूर्वार्ध । आपने "भारतपारिजातम्" नामक 26 सर्ग के महाकाव्य की, लोक-जागृति- हेतु, रचना की। इस महाकाव्य में महात्मा गांधी का चरित्र वर्णित है। स्वामीजी जन्मतः बिहारी थे। अहमदाबाद में आपका दीर्घकाल निवास रहा। भारत पारिजात के अतिरिक्त पारिजातापहार और पारिजातसौरभ नामक गांधी चरित्र से संबंधित रचनाएं तथा ब्रह्मसूत्रवैदिकभाष्य और सामसंस्कारभाष्य नामक आपके ग्रंथ प्रकाशित हैं । हुए
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भगीरथप्रसाद त्रिपाठी - ई. 20 वीं शती । उपनाम - वागीश । जन्मग्राम - विलइया (म.प्र.) के खुरई स्टेशन के समीप, जिला सागर पूरा कुटुम्ब संस्कृत भाषाभाषी संस्कृत वि.वि. वाराणसी से व्याकरणात्मक शोधप्रबन्ध पर "विद्यावाचस्पति" की उपाधि | संस्कृत वि. वि. वाराणसी में अनुसन्धान संचालक । "सारस्वती सुषमा" नामक पत्रिका के प्रधान सम्पादक । हिन्दी तथा संस्कृत में बहुविध रचनाएं। "कृषकाणां नागपाशः " नामक रूपक के प्रणेता ।
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भट्ट अकलङ्क व्याकरण- रचयिता । स्वयं उस पर मंजरी - मकरन्द नाम्नी टीका लिखी। टीका का प्रारंभिक भाग लन्दन में सुरक्षित । समय लगभग वि.सं. 700।
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भट्ट अकलंक जैन दर्शन के एक आचार्य। ये दिगंबर मतावलंबी जैन आचार्य थे। समय- ई. 8 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध । इनके 3 लघु ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। लघीयस्त्र, न्याय-विनिश्चय एवं प्रमाण - संग्रह। तीनों ही ग्रंथों का प्रतिपाद्य विषय जैन-न्याय है। इनके अतिरिक्त भट्ट अकलंक ने कई जैन ग्रंथों के भाष्य भी लिखे है । तत्त्वार्थ सूत्र पर "राजवार्तिक" व आप्तमीमांसा पर " अष्टशती" के नाम से इन्होंने टीका-ग्रंथों की रचना की है। भट्ट गुणविष्णु पिता-दामुकाचार्य समय 16 वीं शती से । पूर्व । रचना - मंत्रब्राह्मण का भाष्य ।
भट्टगोपाल
ई. 9 वीं शती। ये संगीतज्ञ थे। इन्होंने
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 385