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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इससे पता चलता है, कि पतंजलि का आविर्भाव कालिदास के पूर्व व पुष्यमित्र के राज्य-काल में हुआ था। "मत्स्य-पुराण" के अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक राज्य किया था। पुष्यमित्र के सिंहासनासीन होने का समय 185 ई. पू. है, और 36 वर्ष कम कर देने पर उसके शासन की सीमा 149 ई. पू. निश्चित होती है। गोल्डस्टुकर ने "महाभाष्य" का काल 140 से 120 ई. पू. माना है। डॉ. भांडारकर के अनुसार पतंजलि का समय 158 ई. पू. के लगभग है पर प्रो. बेबर के अनुसार इनका समय कनिष्क के बाद अर्थात् ई. पू. 25 वर्ष होना चाहिये। डा. भांडारकर ने प्रो. बेबर के इस कथन का खंडन कर दिया है। बोथलिंक के मतानुसार पतंजलि का समय 200 ई. पू. है (पाणिनीज् ग्रामेटिक)। इस मत का समर्थन मेक्समूलर ने भी किया है। कीथ के अनुसार पतंजलि का समय 140-150 ई. पू. है।। पद्मगुप्त (परिमल)- ई. 11 वीं शती। पिता-मृगांकगुप्त । धारा नगरी के सिंधुराज के ज्येष्ठ भ्राता राजा मुंज के आश्रित कवि। इन्होंने संस्कृत साहित्य के सर्वप्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य की रचना की। इस महाकाव्य का नाम है "नवसाहसाङ्कचरित"। यह इतिहास एवं काव्य दोनों ही दृष्टियों से मान्यता प्राप्त है। इस महाकाव्य के 18 सर्ग हैं, और इसमें सिंधुराज के पूर्वजों अर्थात् परमारवंशीय राजाओं का वर्णन किया गया है। इस कृति पर महाकवि कालिदास के काव्य का प्रभाव परिलक्षित होता है। इसकी रचना सन 1005 के आसपास हुई थी। इसका, हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन चौखम्बा-विद्याभवन से हो चुका है। पद्मगुप्त, “परिमल कालिदास" कहलाते थे। धनिक व मम्मट ने इन्हें उद्धृत किया है। पद्मनंदि- इस नाम के अनेक सत्पुरुष जैन संप्रदाय में हए। वे सभी संमानित है परंतु उन में संस्कृत ग्रंथकार के रूप में पद्मनंदि द्वितीय विशिष्ट उल्लेखनीय हैं। गुरुनाम-वीरनन्दि । समय ई. 11 वीं शती। रचनाएं-1. पद्मनन्दि पंचविंशतिका। इसमें धर्मोपदेशामृत (198 पद्य), दानोपदेशन (54 पद्य), उपासकसंस्कार (12 पद्य), देशव्रतोद्योतन (27 पद्य), सद्बोधचन्द्रोदय (50 पद्य) आदि 26 विषयों का सुंदर वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ के कन्नड टीकाकार भी पद्मनंदि हैं। कार्यक्षेत्र कोल्हापूर तथा मिरज रहा है। पद्मनंदि भट्टारक प्रभाचन्द्र के शिष्य । जाति-ब्राह्मण । मूलसंघ स्थित नन्दिसंघ बलात्कारगण और सरस्वती गच्छ के आचार्य। शिष्यनाम- मदनदेव, नयनन्दि और मदनकीर्ति। ई. 13 वीं शताब्दी। प्रतिष्ठाचार्य। रचनाएं:- 1. जीरापल्ली-पार्श्वनाथ स्तवन (10 पद्य), 2. भावना-पद्धति (34 पद्य), 3. श्रावकाचारसारोद्धार (तीन परिच्छेद), 4. अनन्तव्रतकथा (85 पद्य) और 5. वदमानचरित (300 पद्य)। पद्मनाभ- ई. 15 वीं शती (पूर्वार्ध)। जन्मतः कायस्थ थे, बाद में गुणकीर्ति भट्टारक के उपदेश से जैन धर्म स्वीकार किया। ग्वालियर के आसपास के निवासी। ग्रंथः यशोधरचरित (9 सर्ग)। यह ग्रंथ पद्मनाभ ने ग्वालियर के तोमरवंशी राजा वीरमदेव के मंत्री कुशराज के आग्रह से लिखा था। पद्मनाभ- कामशास्त्री के पुत्र। ई. 19 वीं शती। गोदावरी के तट पर कोटिपल्ली में जन्म। आन्ध्र के कोटिपल्ली गावं के महोत्सव में प्रदर्शन हेतु लिखित रचना "त्रिपुरविजय-व्यायोग"। पद्मनाभ- मूलतः आन्धनिवासी। तदनन्तर काशी-वास्तव्य में रचना- लीलादर्पणभाणः (शृंगारिक)। पद्मनाभ दत्त- वि. सं. 1400। “सुपद्म" नामक व्याकरण की रचना। पिता-दामोदरदत्त। पितामह-श्रीदत्त। अन्य रचनाएं-सुपाम-पंजिका, प्रयोगदीपिका, उणादिवृत्ति, धातुकौमुदी, यङ्लुङ्वृत्ति, गोपालचरित, आनन्दलहरी (माघटीका), छन्दोरत्न, आचारचन्द्रिका, भूरिप्रयोगकोश और परिभाषावृत्ति। टीकाएं-विष्णुमिश्र (सुपद्ममकरन्द), रामचंद्र, श्रीधर चक्रवर्ती, काशीश्वर प्रभृति ने "सुपद्म' पर टीकाएं लिखी हैं। इस व्याकरण का प्रचार बंगाल के कुछ जिलों तक ही सीमित रहा। इनके अतिरिक्त सुपद्मव्याकरण विषयक ग्रन्थकारों की व्याकरण-रचना अल्पमात्रा में प्रचलित है:- शुभचन्द्र कृत-चिन्तामणि व्याकरण। भरतसेनकृत-द्रुतबोध व्याकरण और रामकिंकरकृत-आशुबोध व्याकरण । रामेश्वर-शुद्धाशुबोध व्याकरण । शिवप्रसाद-शीघ्रबोध व्याकरण। काशीश्वर-ज्ञानामृत व्याकरण । रूपगोस्वामी-हरिनामामृत। जीवगोस्वामी-हरिनामामृत। बालराम पंचानन- प्रबोधप्रकाश व्याकरण । विज्जल भूपति- प्रबोध-चंद्रिका व्याकरण। विनायक - भावसिंहप्रक्रिया। चिद्रूपाश्रम - दीपव्याकरण । नारायण सुरनन्द - कारिकावली व्याकरण। नरहरि - बालबोध व्याकरण। पद्मनाभ मिश्र (प्रद्योतन भट्टाचार्य)- समय - ई. 16 वीं शती। पिता-बलभद्र मिश्र । माता-विजयश्री। मूलतः बंगाली। काशी में निवास । “वीरभद्रसेन चंपू' सहित अनेक ग्रंथों के प्रणेता, जिनमें काव्य के अतिरिक्त दर्शन-ग्रंथों का भी समावेश है। इस चंपू के साथ ही इनकी दूसरी प्रमुख कृति जयदेव कृत "चंद्रालोक" की शरदागम टीका है। ___ "वीरभद्रसेन चंपू' का रचना-काल 1577 ई. है (7-7), जिसे इन्होंने रीवानरेश रामचंद्र के पुत्र वीरभद्रदेव के आग्रह पर लिखा था। इस चंपू-काव्य का प्रकाशन प्राच्यवाणी-मंदिर, 3, फेडरेशन स्ट्रीट कलकत्ता-9 से हुआ है। पद्मनाभ शास्त्री- व्ही. जी. श्रीरंगनिवासी। रचना-जार्ज-देवचरितम् जो राजभक्तिप्रदीप के नाम से भी प्रसिद्ध है अन्य रचना-पवनदूतम् (खण्ड काव्य)। जार्ज देवचरितम् में आंग्लनृप पंचम जार्ज का चरित्र वर्णित है। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 363 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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