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केरल-निवासी ।
नवकृष्णदासअठारहवी शती । "कलावती - कामरूप" नामक नाटक के रचयिता । नवहस्त रघुनाथ गणेश- समय- 1650-1713 ई. । समर्थ रामदास स्वामी के मित्र । तंजौर के राजा एकोजी (व्यंकोजी) भोसले (जो छत्रपति शिवाजी के सौतेले भाई थे) की पत्नी दीपाबाई के आश्रित होकर रहे। इनका "भोजनकुहल" नामक ग्रंथ भारतीय पाकशास्त्रविषयक एक मत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। अन्य ग्रंथ है- साहित्यकुतूहल, प्रायश्चित्तकुतूहल, जनार्दन महोदधि, धर्ममित्र- महोदधि, काशी-मीमांसा मराठी भाषा में “नरकवर्णन” नामक ग्रंथ की रचना रघुनाथ नवहस्त ने की है । अनन्तदेव इनके गुरु थे। भोजनकुतूहल में एकेक भोज्यपदार्थ के कई प्रकार बताए गए हैं। लेखक महाराष्ट्रीय होने के कारण, महाराष्ट्रीय भोजन पदार्थों का वर्णन अधिक मात्रा में मिला है। दाक्षिणात्य इटली का भी वर्णन "भोजनकुतूहल" में है। नागचन्द्र- अपरनाम - अभिनव पम्प सरस्वती और लक्ष्मी का अनूठा समन्वय स्थल । बीजापुर में विशाल मल्लिनाथ जिन मन्दिर
निर्माता । बीजापुर निवासी। गुरु- वक्रगच्छ के विद्वान् मेघचन्द्र के सहाध्यायी बालचन्द्र । समय- ई. 12 वीं शती । ग्रंथमल्लिनाथपुराण (14 आश्वास) और रामायण | नागचन्द्र- मूलसंघ, देशीवगण, पुस्तकगच्छ के विद्वान् ललितकीर्ति तथा देवचन्द्र मुनीन्द्र के शिष्य कर्नाटकवासी विप्रकुल गोत्र श्रीवत्स । पार्श्वनाथ और गुमराम्बा के पुत्र । समय- ई. 16 वीं शती रचना विषापहारस्तोत्र एकीभावस्तोत्र आदि पर टीकाएं। नागदेव ई. 14 वीं शती पिता मल्लुगितू सारस्वत कुल में उत्पन्न । चिकित्साशास्त्र के जानकार हरदेव द्वारा लिखित अपभ्रंश के मथपापराजड ग्रंथ के आधार पर कवि ने संस्कृत में मदनपराजय नामक रूपक काव्य की रचना की। नागवर्म ( प्रथम ) - नागवर्म नाम के दो जैन कवि हैं। प्रथम नागवर्म बेंगीदेश के बेंगीपुर नगर निवासी कौडिण्य गोत्रीय बेनामय्य ब्राह्मण के पुत्र । माता-पोलकच्वे । गुरुनाम - अजितसेनाचार्य । रक्कसगंगराज ( राचमल्ल के भाई) तथा चामुण्डराय ( ई. 984-999) के दरबारी कवि | योद्धा भी थे। समय- ई. 10-11 वीं शती ग्रंथ छन्दोऽम्बुनिधि तथा कादम्बरी का पद्यानुवाद |
नागवर्म (द्वितीय) - नागवर्म द्वितीय जन्मतः ब्राह्मण थे । पिता दामोदर चालुक्यनरेश जगदेकमल्ल के सेनापति और जन कवि के गुरु कन्नड साहित्य में कविता-गुणोदय" नाम से ख्यातिप्राप्त। समय ई. 12 वीं शताब्दी । ग्रंथ-काव्यावलोकन, कर्नाटक भाषाभूषण और वस्तुकोश कर्नाटक भाषाभूषण संस्कृत में कन्नड़ भाषा का उत्कृष्ट व्याकरण है। इसमें मूल सूत्र और वृत्ति संस्कृत में तथा उदाहरण कन्नड में दिये गए हैं। इसी को आदर्श मान कर भट्टाकलंक द्वितीय (सन 1604) ने कन्नड का शब्दानुशासन नामक संस्कृत व्याकरण लिखा ।
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"वस्तुकोश" कवड में प्रयुक्त होने वाले संस्कृत शब्दों का अर्थ बतलाने वाला पद्यमय निघण्टु या कोश है। "काव्यावलोकन " अलंकार शास्त्र का ग्रंथ है।
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नागार्जुन - बौध्द पंडित । समय-134- से 220 ई. 1 रचना- अर्जुनभरतम् नामक (अंशतः प्राप्त) संगीत विषयक ग्रंथ । नागार्जुन समय 166-196 ई. बौध्द-दर्शन के एक सिद्धांतशून्यवाद के प्रवर्तक तथा उसे दार्शनिक रूप देने वाले उच्च श्रेणी के दार्शनिक इन्होंने बौध्द साहित्य को अनेक ग्रंथ दिये हैं। भारत की अपेक्षा तिब्बत, चीन, मंगोलिया आदि बाह्य देशों में अधिक विख्यात हैं। इनके स्थल-कालादि तथा जीवनचरित्र विषयक तथ्य अज्ञात हैं। इतना निश्चित हुआ है कि ये दार्शनिक नागार्जुन, तान्त्रिक नागार्जुन तथा रासायनिक नागार्जुन से भिन्न हैं। चीनी तथा तिब्बती-परम्परा में ये तीनों एक ही व्यक्ति माने गए हैं। आरोग्यमंजरी, योग- शतक, रसरत्नाकर तथा रसेन्द्रभंग आदि ग्रंथों के रचयिता तथा तान्त्रिक नागार्जुन सर्वथा भिन्न है। लोहशास्त्रविद् तृतीय नागार्जुन कल्पनामात्र है। रासायनिक तांत्रिक तथा लोहशास्त्रविद नागार्जुन ई. पू. 2 या 3 री शती के माने जाते हैं। अतः दार्शनिक बौध्द नागार्जुन, उनसे पश्चात ही है। चीनी व तिब्बती भाषा में इनके 20 ग्रंथों के अनुवाद प्राप्त होते हैं ।
प्रख्यात बौध्द भिक्षु तथा संस्कृत ग्रंथों के चीनी रूपान्तरकार कुमारजीव ने नागार्जुन तथा वसुबन्धु का जीवन-वृत्तान्त लिखा है (चीनी अनुवाद ई. 405)। उससे ज्ञात होता है की नागार्जुन दक्षिण कोसल या प्राचीन विदर्भ के निवासी थे । प्रथम ब्राह्मण थे किन्तु श्रीकृष्ण एवं गणेश की प्रेरणा से बौध्दधर्म स्वीकृत । तारनाथ के अनुसार गुरु-राहुलभद्र । वेद-ब्राह्मण के अध्ययन के उपरान्त बौध्द धर्मग्रंथों का परिशीलन किया। व्हेन सांग के अनुसार ये बौद्ध धर्म के चार सूर्या में से एक थे। समय के संबंध में विद्वानों में एकमत नहीं है।
रचनाएं (1) माध्यमिककारिका (2) दशभूमि विभाषाशास्त्र, (3) महायज्ञापारमिता सूत्रकारिका (4) उपायकौशल्य, (5) प्रमाणविध्वंसन, (6) जिमहय्यावर्तिनी (7) चतुःस्तव, (8) युक्तिषष्टिका (9) शून्यतासप्तति (10) प्रतीत्यसमुत्पादहृदय, (11) महायानविंशक, (12) सहृल्लेख, (13) एक श्लोकशास्त्र (14) प्रशादण्ड, (15) निरोपम्यस्तव और ( 16 ) अचिन्त्यस्तव आदि। इनमें से केवल दो ग्रंथ (क्र. 1 और 6) मूल संस्कृत रूप में प्राप्त होते हैं। नागेश पण्डित समय ई. 20 वीं शती मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय के छात्र व्याकरणाचार्य काव्यतीर्थ शालिग्राम द्विवेदी तथा अच्युत पाध्ये के साथ " भ्रान्त - भारत" नाटक की रचना की।
नागेश भट्ट ( महाबल भट्ट) सन् 1741-1782 आपको महाबल भट्ट भी कहा जाता था। कर्नाटक के कारवार
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संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 347