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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HEATRE ध्यानेश नारायण चक्रवर्ती - ई. 20 वीं शती। रवीन्द्रभारती वि.वि. में प्राध्यापक। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के नाटकों, गीतों के संस्कृत अनुवाद किये। विश्वेश्वर विद्याभूषण के साथ "दस्युरत्नाकर" नामक नाटक की रचना की। नंदराज शेखर - शैव तत्त्वज्ञान विषयक 18 ग्रंथों के रचयिता। मैसूर के कृष्णराज द्वितीय के सर्वाधिकारी। रचना- संगीतगंगाधरम् नंदकुमार शर्मा - नवद्वीप के नरेशचन्द्र (1639 ईसवी) का समाश्रय प्राप्त। "राधा-मान-तरंगिणी" के रचयिता। नंदपंडित - समय 1595-16301 विनायक पंडित के शुभनाम से प्रसिद्ध एक काशीनिवासी धर्मशास्त्रकार। भारत के विभिन्न भागों के धनिकों की ओर से नंदपंडित को आश्रय प्राप्त था। लोग इन्हें धर्माधिकारी मानते थे। ग्रंथरचना - विद्वन्मनोहरा (पाराशरस्मृति पर टीका), प्रमिताक्षरा व प्रतीताक्षरा (मिताक्षरा पर टीका), श्राद्धकल्पलता, स्मृतिसिंधु (इसकी रचना महेंद्र घराने के मंगो राजा के पुत्र हरिवंश वर्मा के निर्देशानुसार), तत्त्वमुक्तावलि, केशववैजयंती (अथवा वैजयंती), इसमें कर्नाटक स्थित विजयपुर के ब्राह्मण राजवंश की जानकारी है। (यह ग्रंथ कोडप नायक के पुत्र केशव नायक के नाम पर है) नवरात्रप्रदीप, हरिवंशविलास, काशीप्रकाश, तीर्थकल्पलता, शुद्धिचंद्रिका, कालनिर्णयकौतुक, ज्योतिःसारसमुच्चय, स्मार्तसमुच्चय और दत्तकमीमांसा। नंदलाल विद्याविनोद - सन 1885 ई. में प्रकाशित "गर्वपरिणति" नामक नाटक के लेखक। बंगाल के निवासी। नंदिकेश्वर - "अभिनयदर्पण' नामक नृत्य कला विषयक ग्रंथ के प्रणेता। राजशेखर ने अपनी "काव्यमीमांसा" में काव्य विद्या की उत्पत्ति पर विचार करते हुए काव्यपुरुष के 18 स्नातकों का उल्लेख किया है। उनमें नंदिकेश्वर का भी नाम है। इन्होंने रस विषय पर ग्रंथ लिखा था, ऐसा राजशेखर का मत है । ___"रसाधिकारिकं नंदिकेश्वरः'। बहुत दिनों तक भरत व नंदिकेश्वर को एक ही व्यक्ति माना जाता रहा, किंतु "अभिनय दर्पण" के प्रकाशित हो जाने से यह भ्रम दूर हो गया। नंदिकेश्वर ने अपने ग्रंथ में भरत द्वारा निर्मित "नाट्यशास्त्र" का उल्लेख किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि दोनों ही व्यक्ति भिन्न थे और नंदिकेश्वर भरत के परवर्ती थे। डॉ. मनमोहन घोष ने "अभिनयदर्पण" के आंग्लानुवाद की भूमिका में सिद्ध किया है कि नंदिकेश्वर का समय 5 वीं शताब्दी है, पर अनेक विद्वान इन्हें 12 वीं व 13 वीं शताब्दी के बीच का मानते हैं। नंदिपति - ई. 18 वीं शती का उत्तरार्ध । पुगौली (मिथिला) निवासी। कृतियां- कृष्णकेलिमाला तथा दो अप्राप्त नाटककदम्बकेलिमाला और रुक्मिणीस्वयंवर नंदी - नन्दी अथवा तण्डु या नन्दिकेश्वर नामों को अभिनवगुप्त ने पर्यायवाचक माना है। अभिनवभारती के चतुर्थ अध्याय में नन्दिमत का उल्लेख है। भरतमुनि के ताण्डव शिक्षक होने की बात तण्डु नाम से ही प्रमाणित हो जाती है। यह ताण्डव नृत्य साक्षात् शिव से नन्दी ने पाया था। वास्तव में तण्डु तथा नन्दी दो भिन्न आचार्य हैं ऐसा वाचस्पति गैरोला का मत है। नन्दी का सुप्रसिद्ध ग्रंथ "अभिनयदर्पण" है जो अत्यंत लोकप्रिय रहा है। नन्दिकेश्वर का "नन्दिभरतोक्तसंकरहस्ताध्याय" नामक हस्तलिखित ग्रंथ अपूर्ण प्राप्त होता है ऐसा श्री शुक्ल का मत है। भरत के नाट्यशास्त्र की पुष्पिका में "नन्दिप्रणीतं संगीतपुस्तकं" के उल्लेख से नन्दि तथा भरत को एक मानने का उपक्रम भी हुआ है। वास्तव में भरत के शिष्यत्व तथा नंदि के महत्त्व का ही यह संकेत है। राजशेखर ने "रूपक-निरूपणीयं भरतः” तथा “रसाधिकारिकं नन्दिकेश्वरः" लिखकर इस तथ्य का समर्थन किया है। वाचस्पति गैरोला ने मनमोहन घोष, रामकृष्ण कवि आदि विद्वानों के एतद्विषयक विचारों का विवेचन करते हुए “अभिनयदर्पण" के कर्ता नन्दिकेश्वर के समय को तेरहवीं शती के आसपास स्थिर किया है। नंदीश्वर - ई. 12 वीं शती। ये केरली' ब्राह्मण थे। मीमांसा पर लिखे गये इनके ग्रंथ का नाम है प्रभाकरविजय। यह ग्रंथ प्रभाकरमत की प्रवेशिका ही है। नंदीश्वर ने अपने इस ग्रंथ में शालिकनाथ व भवनाथ नामक दो पूर्वसूरियों का सादर उल्लेख किया है। इस ग्रंथ के आज केवल इक्कीस प्रकरण ही उपलब्ध हैं। नभःप्रभेदन- ऋग्वेद का 10-112 यह सूक्त आपके नाम पर है। इस सूक्त का विषय है इन्द्र का पराक्रम और सोमरस की स्तुति । नयचन्द्र सूरि- जैनमतीय कृष्णगच्छ के स्थापक जयसिंहसूरि के शिष्य। प्रसिद्ध नैयायिक। समय-ई. 15 वीं शती। ग्रंथ(1) हम्मीर-महाकाव्य (वि. सं. 1448)- ग्वालियर के तोमर नृपति वीरमदेव की प्रेरणा से निर्मित। रणस्तंभपुर के युद्ध (वि.सं. 1357) में अलाउद्दीन खिलजी के साथ वीरतापूर्वक लड़ने वाला योद्धा हम्मीरदेव इस काव्य का नायक है। 14 सों में 1572 पद्य हैं। यह दुःखान्त महाकाव्य है। (2) रम्भामंजरी- प्राकृत भाषीय सदृक, जिसमें संस्कृत का भी प्रयोग है। हम्मीर महाकाव्य की निर्मिति से संबंधित एक घटना, स्वयं कवि के ही शब्दों में इस प्रकार है__एक बार तोमर वीर की राजसभा में किसी ने कहा कि प्राचीन कवियों के समान काव्य करने की शक्ति अब किसी भी कवि में दिखाई नहीं देती। इन शब्दों से तिलमिलाकर तथा उस आव्हान को स्वीकार करते हुए नयचंद्र सूरि ने श्रृंगार, वीर व अद्भुत रसों युक्त चौदह सर्गो का काव्य प्रस्तुत कर वीर हम्मीर के शौर्यशाली जीवन को अमर कर दिया। नयचंद्र के इस काव्य में जैन कवि अमरचंद्र का लालित्य और श्रीहर्ष की वक्रिमा परिलक्षित होती है। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 345 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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