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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्य वैदिक पंडितों को वाद-विवाद में पराभूत किया। इस इत्यादि। विजय के कारण उन्हें तर्कपुंगव यह विरुद एवं "पंडितोष्णीष" इन्होंने बौद्धन्याय को सुव्यवस्थित करने में पूर्ण योग दिया । नामक शिरोभूषण प्राप्त हुए। तथा गौतम और वात्स्यायन के पंचावयव-वाक्य का खण्डन तदुपरांत दिङ्नाग ने महाराष्ट्र और उडीसा-प्रदेशों में संचार कर, अनुमान के लिए तीन अवयव ही पर्याप्त हैं यह प्रमाणित करते हुए अनेक जैन पंडितों को वाद-विवाद में पराजित किया। किया । महाराष्ट्र के आचार्य विहार में वे दीर्घ काल तक रहे थ। दिनकर- ई. 19 वीं शती। पिता-अनन्त (महान् गणितज्ञ)। दिङ्नाग ने न्यायशास्त्र पर न्यायप्रवेश, हेतुचक्रडमरु, रचनाएं- ग्रहविज्ञान-सारिणी, मास-प्रवेश-सारिणी, लग्न-सारिणी, प्रमाणशास्त्र, आलंबनपरीक्षा, प्रमाणसमुच्चय आदि अनेक संस्कृत क्रान्तिसारिणी, दृक्कर्मसारिणी, चन्द्रोदयांकजालम्, ग्रहमानजालम्, ग्रंथों की रचना की। किन्तु केवल "न्यायप्रवेश" के अतिरिक्त पातसारिणी-टीका और यन्त्र-चित्तामणि-टीका। उनका अन्य कोई भी ग्रंथ मूल स्वरूप में उपलब्ध नहीं। दिनकरभट्ट- ई. 17 वीं शती। एक संस्कृत धर्मनिबंधकार । उनके कुछ ग्रंथों के तिब्बती भाषानुवाद दिखाई देते हैं। दिङ्नाग इन्हें दिवाकरभट्ट भी कहते हैं। न्याय, वैशेषिक, मीमांसा एवं का मुख्य ग्रंथ है "प्रमाणसमुच्चय"। छह परिच्छेदों में विभाजित धर्म शास्त्रों के वे प्रकांड पंडित थे। कहा जाता है कि वे यह ग्रंथ, प्रमाणों के संबंध में समय-समय पर रचे गये शिवाजी महाराज के आश्रित थे। उनके भाई लक्ष्मणभट्ट ने श्लोकों का संग्रह है। अपने इस ग्रंथ में दिङ्नाग ने, दो अपने आचाररत्न नामक ग्रंथ में उनकी स्तुति निम्न शब्दों में की हैपूर्वाचार्यों, वात्स्यायन और गौतम का खंडन किया है। डा. ____ "जिस प्रकार आदिवराह ने जल में डूबी हुई पृथ्वी को कीथ, प्रो. मेक्डोनेल प्रभृति के अनुसार इनका समय 400 ई. है। ऊपर निकाला, उसी प्रकार जिसने अपने कुल की प्रतिष्ठा को सन् 557 से 569 तक के कालखंड में, दिङ्नाग के उच्च पद तक पहुंचाया और जिससे गंगा के समान (पवित्र) दो ग्रंथों का अनुवाद चीनी भाषा में किया गया था। विद्या प्रसृत हुई, उस ज्येष्ठ भ्राता की अर्थात् भट्ट दिवाकर प्रमाणसमुच्चय का तिब्बती अनुवाद तिब्बती राजालामा दे-प-शे-ख की, में स्तुति करता हूं।" के सहयोग से हेमवर्मा नामक एक भारतीय बौद्ध पंडित ने __दिनकर भट्ट ने शास्त्रदीपिका पर भट्ट-दिनकरमीमांसा अथवा किया। ग्रंथ का तिब्बती नाम है छे-म-कुंत-ई। भाट्टदिनकरी, शांतिसार, दिनकरोद्योत अथवा भाट्ट दिनकरोद्यांत दिङ्नाग अत्यंत वादनिपुण एवं आक्रमक प्रवृत्ति के पंडित ये ग्रंथ लिखे हैं। किन्तु कहा जाता है कि इनमें से अंतिम थे। उनके पश्चात् हुए उद्योतकर, वाचस्पति मिश्र, कुमारिल ग्रंथ उनके हाथों से पूरा न हो सका था। उसे उनके सुप्रसिद्ध भट्ट, सुरेश्वराचार्य प्रभृति वैदिक पंडितों तथा प्रभाचन्द्र, विद्यानंद पुत्र विश्वेश्वर (गागाभट्ट काशीकर) ने पूरा किया। प्रभृति जैन दार्शनिकों ने दिङ्नाग के मतों का खंडन किया है। इनका निर्वाण उडीसा के एक वन में हुआ। दिलीपकुमार राय- ई. 20 वीं शती। द्विजेन्द्रलाल राय के पुत्र । रचना- पिता की बंगाली कविताओं के संस्कृत-अनुवाद । इन्हें बौद्ध न्याय का संस्थापक माना जाता है। प्राचीन नैयायिकों में दिङ्नाग का स्थान अत्यंत उच्च है। इत्सिंग के दिवाकर- ज्योतिषशास्त्र के एक आचार्य। समय ई. 17 वीं आलेखानुसार, उनके ग्रंथों को भारतीय विद्या-केन्द्रों में पाठ्यग्रंथों शती। इनके चाचा शिव देवज्ञ अत्यंत प्रसिद्ध ज्योतिषी थे। का स्थान प्राप्त था। गंगेश उपाध्याय के काल तक (सन् दिवाकर ने इन्हीं से ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन किया था। 1200) भारतीय न्यायविद्या के क्षेत्र में दिङ्नाग का ही साम्राज्य इन्होंने "जातक-पद्धति" नामक फलित ज्योतिष के ग्रंथ की रचना की है। इसके अतिरिक्त "मकरंद-विवरण" व रहा। केशवीय-पद्धति" नामक टीकाग्रंथों की भी इन्होंने रचना की दिङ्नाग के जीवन के वास्तव्य का अधिकांश काल उडीसा है। इनका दूसरा मौलिक ग्रंथ है "पद्धति-प्रकाश" जिसकी में रहा। ये मंत्रतंत्र-विशेषज्ञ भी थे। उडीसा के अर्थमंत्री सोदाहरण टीका इन्होंने स्वयं ही लिखी है। भद्रपालित (जिसे इन्होंने बौद्ध दीक्षा दी थीं) के सूखे हरीतकी-वृक्ष को आपने प्रयोग से हरा-भारा किया। इनकी दिवाकर- पिता-विश्वेश्वर। रचना-राघवचम्पू । शिष्य-शाखा में धर्मकीर्ति, शान्तरक्षित, कमलशील, शंकरस्वामी दिवेकर, हरि रामचंद्र (डॉ)- समय- ई. 20 वीं शती। जैसे विद्वान थे। ग्वालियर-निवासी। प्रयाग वि.वि. से एम.ए.डी.लिट्. । मध्यभारत रचनाएं- न्यायदर्शन पर इनके द्वारा लगभग सौ ग्रंथ रचित । में सर्वोच्च शैक्षणिक पदों पर राजकीय सेवा में रत रहे। हैं, जिनमें प्रमुख ग्रंथ हैं- (1) प्रमाणसमुच्चय, (2) "कालिदासमहोत्सवम्" नामक नाटक के रचयिता। वैदिक तथा प्रमाणसमुच्चय-वृत्ति, (3) न्यायप्रवेश, (4) हेतुचक्रडमरु, (5) ऐतिहासिक विषयों पर इन्होंने अनेक मौलिक शोधनिबंध लिखे हैं। प्रमाणशास्त्र-न्यायप्रवेश, (6) आलम्बनपरीक्षा, (7) दिव्य आंगिरस- ऋग्वेद के दसवें मंडल का 107 वां सूक्त आलम्बनपरीक्षावृत्ति, (8) त्रिकालपरीश्रा और (9) मर्मप्रदीपवृत्ति इनके नाम पर है। दक्षिणा की महिमा है सूक्त का विषय । 336 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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