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इन्हें सामवेद की जैमिनीय शाखा, जैमिनीय ब्राह्मण तथा 1) ज्ञानसागर - जैनधर्मी बृहत्तपागच्छ के रत्नसिंह के शिष्य । जैमिनियोपनिषद् ब्राह्मण का भी रचयिता माना जाता है। इनके ग्रंथ-विमलनाथचरित। साम्यतार्थ, खंभात में सं. 1517 में अतिरिक्त जैमिनिकोशसूत्र, जैमिनिनिघंटु, जैमिनिपुराण,
रचित, शाष्टराज सेठ की प्रार्थना पर। पांच सर्ग, गद्य रचना । ज्येष्ठमाहात्म्य, जैमिनिभागवत, जैमिनिभारत, जैमिनिसूत्र, अन्य रचना-शान्तिनाथचरित। भाषा और शैली आकर्षक । जैमिनिसूत्रसारिका, जैमिनिस्तोत्र आदि अनेक ग्रन्थों का भी। ज्ञानसुंदरी - 19 वीं शती। कुम्भकोणम् की प्रख्यात नर्तकी। रचयिता इन्हें बताया जाता है।
नृत्य गीत तथा वक्तृत्व में अत्यंत निपुण। मैसूर राज्य से धर्मराज युधिष्ठिर के यज्ञ के ऋत्विज और जनमेजय के कविरत्नम् उपाधि से सत्कार हुआ था। रचना - हालास्यचम्पू सर्पसत्र के उद्गाता का नाम भी जैमिनि ही था।
6 स्तबकों का काव्य । विषय-मीनाक्षी-सुन्दरेश विवाह प्रसंग जोशी लक्ष्मणशास्त्री (तर्कतीर्थ) - वाई (महाराष्ट्र) के
का वर्णन, कुम्भकोणम् से मुद्रित। निवासी, महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध सामाजिक एवं सांस्कृतिक नेता। ज्ञानेन्द्रसरस्वती - सिद्धान्तकौमुदी की तत्त्वबोधिनी नामक सुप्रसिद्ध रचना - 1) धर्मकोश (व्यवहारकाण्ड) 3 भाग, 2) धर्मकोश व्याख्या के लेखक। गुरु-वामनेन्द्र सरस्वती। शिष्य-नीलकण्ठ (उपनिषत्काण्ड) 4 भाग। गुरु- केवलानन्द सरस्वती, जो स्वयं
__ वाजपेयी। भट्टोजी दीक्षित के समकालीन- वि.सं. 1550-1600 महान् वैदिक कोशकार थे।
टी. गणपति शास्त्री (म.म.) - 20 वीं शती का पूर्वार्ध । जोशी ग. गो. - रचना - काव्य-कुसुमगुच्छ। इसमें महाराष्ट्र भास नाटक चक्र के प्रकाशन से विशेष प्रख्यात। अपनी के अर्वाचीन श्रेष्ठ संस्कृत पण्डित म. म. वासुदेव शास्त्री रचना अर्थचित्र मणिमाला में त्रिवांकुरनरेश (केरलवासी) अभ्यंकर की स्तति है।
विशाखरामवर्मा का स्तवन अलंकारों के उदाहरणार्थ किया है। ज्ञानकीर्ति - ई. 17 वीं शती। यति वादिभूषण के शिष्य । अन्य रचनाएं - भारतेतिहास और माधवीवसन्त-नाटकम् । अकछरपुर (बंगाल) के निवासी। बंगाल के महाराजा मानसिंह टैगोर सुरेन्द्रमोहन - काव्य- व्हिक्टोरियामाहात्म्यम्। ई. स. के प्रधान अमात्य नानू के आग्रह से, यशोधरचरित महाकाव्य 1898। अन्य रचना- प्रिन्स पंचाशत् (प्रिन्स ऑफ वेल्स की का निर्माण 1659 में किया।
स्तुति)। "राजा" और "सर" उपाधियों से विभूषित । ज्ञानभूषण (भट्टारक) - ज्ञानभूषण नामक चार प्रधान आचार्य ठाकुर ओमप्रकाश शास्त्री - ई. 20 वीं शती। हरियाणा भट्टारक हुए। उनमें विमलेन्द्रकीर्ति के शिष्य भट्टारक ज्ञानभूषण में अध्यापक । “क्षमाशीलो युधिष्ठिरः" नामक रूपक के प्रणेता । अधिक प्रसिद्ध हैं। गुजरात निवासी। मूर्तिप्रतिष्ठापक । गोलालारीय डड्डा - चित्तोड़ निवासी। पिता-श्रीपाल । जाति-प्राग्वाट (पोरवाड)। जाति। द्रविडदेश महाराष्ट्र और राजस्थान कार्यक्षेत्र। समय- समय- ई. 11 वीं शती। ग्रंथ "पंचसंप्रह" जो प्राकृत पंचसंग्रह वि.सं. 1500-1562। प्रतिष्ठाचार्य। रचनाएं-आत्मसंबोधनकाव्य,
का अनुवादसा लगता है। अमितगति ने डड्डा के "पंचसंग्रह" ऋषिमण्डलपूजा, तत्त्वज्ञानतरंगिणी व पूजाष्टक-टीका, का आधार लेकर एक और पंचसंग्रह रचा है। पंचकल्याणकोद्यापनपूजा, नेमिनिर्वाणकाव्य पंचिका टीका, भक्तामरपूजा,
डांगे सदाशिव अंबादास - मुंबई विश्वविद्यालय के संस्कृत श्रुतपूजा, सरस्वतीपूजा, सरस्वतीस्तुति, शास्त्रमंडलपूजा, आदिनाथ फाग, परमार्थोपदेश आदि। इनके
विभागाध्यक्ष। रचना-भावचषकः रुबाइयों का संस्कृत पद्यों एवं अतिरिक्त कुछ हिन्दी रचनाएं भी प्राप्य हैं।
हिंदी गद्य में अनुवाद। ज्ञानविमलसूरि - तपागच्छीय जैन विद्वान्। अपरनाम
डाऊ, माधव नारायण - दारव्हा (विदर्भ) के निवासी नवविमलगणि । वीर-विमल-गणि के शिष्य । समय- ई. 17-18
वकील। रचनाएं- विनोदलहरी। विषय- हरि-हर तथा उमा-रमा वीं शती। ग्रंथ :- प्रश्नव्याकरण-सुखबोधिकावृत्ति । तरसिपुर में
का परिहासगर्भ संवाद। इनमें सामान्य व्यक्तिजीवन के सुखदुख सुखसागर के सहयोग से लिखित । (वि.सं. 1783) । ग्रंथमान
का हृदयस्पर्शी चित्रण करते हुए कवि ने सांसारिक जीवन को 7500 श्लोक।
सुखी बनाने के लिये परस्पर आचारात्मक उपाय बताये हैं।
इनका विनोद उच्च कोटि का तथा विद्वज्जनों का मन प्रसन्न ज्ञानश्री - बंगाल निवासी। ई. 10 वीं शती। विक्रमशील मठ के द्वारपण्डित। "वृत्तिमालाश्रुति" के रचयिता।
करने वाला है। इस पर इनके चचेरे भाई की टीका है।
डेग्वेकर पांडुरंग शास्त्री - पुणे निवासी। मृत्यु दिनांक ज्ञानश्री - ई. 14 वीं शती। बौद्धाचार्य। माधवाचार्य ने
24-11-1961 को। पंढरपुर में व्याकरण, न्याय व वेदान्त के सर्वदर्शनसंग्रह में इनका उल्लेख किया है। ये क्षणिकवाद के
अध्यापक। हर्षदर्शन नाटक और कुरुक्षेत्र (काव्य) के प्रणेता । पुरस्कर्ता थे। इन्होंने कार्यकारणभावसिद्धि, क्षणभंगाध्याय,
मनोबोधः (समर्थ रामदासस्वामी कृत) का समवृत अनुवाद । व्याप्तिचर्चा, भेदाभेदपरीक्षा, अनुपलब्धिरहस्य, अपोहपकरण, ईश्वरदूषण, योगनिर्णय, साकारसिद्धि आदि ग्रंथ लिखे हैं। कुछ
ढुण्डिराज - ज्योतिष शास्त्र के आचार्य । पाथपुरा के निवासी । विद्वानों के अनुसार ये काश्मीर निवासी थे।
पिता- नृसिंह दैवज्ञ। गुरु- ज्ञानराज। समय ई. 16 वीं शती।
330/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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