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जगन्नाथ - जन्म- सन् 1758 में, गुजरात के न्हानी बोइऊ आसफखां की प्रेरणा से इन्हें अपने यहां बुलाया और ग्राम में। आशुकवि। भावनगर के राजा बख्तसिंह के राजकवि।। "पंडितराज" की उपाधि देकर इन्हें सम्मानित किया। शाहजहाँ बडोदा-नरेश के द्वारा भी सम्मानित । मूर्तिकला, संगीत, चित्रकला की मृत्यु के बाद ये एकाध वर्ष के लिये प्राण-नारायण के तथा नृत्य में प्रवीण। आपकी अनेक कृतियों में प्रसिद्ध हैं- पास गए होंगे और फिर वहां से आकर अपनी वृद्धावस्था नागरमहोदय, श्रीगोविन्दरावविजय, रमा-रमणांधिसरोजवर्णन मथुरा में बिताई होगी। (विष्णुस्तुति) । वृद्धवंशवर्णन, 1912 में भावनगर से प्रकाशित) पंडितराज की रचनाएं- रसगंगाधर, चित्रमीमांसाखण्डन, तथा सौभाग्यमहोदय (नाटक)।
गंगालहरी, (या पीयूषलहरी), अमृतलहरी, करुणालहरी (या जगन्नाथ - समय- 18 वीं शताब्दी। जयपुरनिवासी गणितज्ञ।। विष्णुलहरी), लक्ष्मीलहरी, सुधालहरी, आसफ-विलास (शाहजहां "सिद्धान्त-सम्राट्” तथा “सिद्धान्त-कौस्तुभ' नामक दो के मामा आसफखां का चरित्र- आख्यायिका के माध्यम से। ज्योतिर्गणित विषयक ग्रंथों के रचयिता।
यह ग्रंथ अपूर्ण है), प्राणाभरण (कामरूप नरेश प्राण-नारायण जगन्नाथ - अरविन्दाश्रम के शिष्य। माताजी की फ्रान्सीसी की प्रशस्ति), जगदाभरण (उदयपूर के राजा जगत्सिंह का भाषा में रचित नीतिकथाओं का संस्कृत अनुवाद (मूल पुस्तक
वर्णन), भामिनीविलास (फुटकल पद्यों का का संग्रह), "बेलजिस्तृवार" कथामंजरी के नाम से प्रकाशित) अन्य रचनाएं
मनोरमाकुचमर्दन (व्याकरण विषयक टीका-ग्रंथ, भट्टोजी दीक्षित श्रीमातुः सूक्तिसुधा। (माताजी की फ्रान्सीसी सुभाषितों का
के मनोरमा-ग्रंथ का खंडन), यमुनावर्णनचंपू, अश्वधाटी पण्डितराज प्रासादिक अनुवाद) और अग्निमंत्रमाला- वेदों के अग्निविषयक शतक (अनुपलब्ध) आदि। मंत्रों पर अरविंदमतानुसार भाष्य।
बादशाह शाहजहां की लावण्यवती मानसकन्या लवंगी और जगन्नाथ तर्कपंचानन - समय - ई. 18 वीं शताब्दी। जगन्नाथ पण्डित की प्रणय-कथा बहुत प्रसिद्ध है। वंगप्रदेश-वासी। विलियम जोन्य की सूचना पर हिंदू न्यायविधान जगन्नाथ मिश्र - ई. 18 वीं शती। बंगाल के निवासी। पर “विवादभंगार्णव"- ग्रंथ लिखा। अंग्रेज न्यायाधीशों को कृति-छन्दःपीयूष। न्यायदान के कार्य में इस ग्रंथ का बहुत उपयोग हुआ। जगन्नाथशास्त्री - समय 1897 ई.। प्रतापगढ़ के राजपण्डित । जगन्नाथ दत्त - ई. 19-20 शती। बंगाल के निवासी। कृति- इन्होंने हरिभूषणकाव्य, उत्सवप्रतान, काव्य-कुसुम इत्यादि कृतियों चिकित्सारत्न।
की रचना की। अनेक संस्कृत पत्र-पत्रिकाओं में भी आपकी जगन्नाथ पंडितराज - आन्ध्र प्रदेश के मुंगुज नामक ग्राम रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। में जन्म। समय- 1590 से 1665 ई.। एक महान् काव्यशास्त्री जगन्मोहन - चौहानवंशीय राजा बैजल के आदेश पर इन्होंने व कवि। इनका युगप्रवर्तक ग्रंथ "रसगंगाधर" है, जो भारतीय ___देशालिविवृति" की रचना की। इसमें समकालीन 56 राजाओं आलोचना-शास्त्र की अंतिम प्रौढ रचना मानी जाती है। पंडितराज का चरित्र-वर्णन तथा ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख होने तेलंग ब्राह्मण तथा मुगलबादशाह शाहजहां के सभा-पंडित थे। से, तत्कालीन इतिहास पर प्रकाश पडता है।। इन्हें शाहजहां ने ही "पंडितराज' की उपाधि से विभूषित किया ___ जग्गू शिंगरार्य- जन्म- सन् 1902 में। मृत्यु-सन् 1960 में। था। इनके पिता का नाम पेरूभट्ट (या पेरमभट्ट) और माता यदुशैलपुर (मेलकोटे) के निवासी। कृतियां-युवचरित (नाटक), का नाम लक्ष्मी था।
पुरुषकार-वैभवस्तोत्र, अन्योक्तिमाला, ऋतुवर्णन, ग्रन्थिज्वर- चरित, ___ इसी प्रकार पंडितराजकृत "भामिनीविलास" से ज्ञात होता वेदान्तविचारमाला और शिबिवैभव (नाटक) । इनमें से शिबिवैभव है (4-45) कि इन्होंने अपनी युवावस्था दिल्लीश्वर शाहजहां को छोड अन्य सभी रचनाएं अप्रकाशित हैं। के आश्रय में व्यतीत की थी। ये 4 राजपुरुषों के आश्रय में जग्गू श्रीबकुलभूषण - जन्म 1902 में। पूर्ण नाम- जग्गू रहे। वे हैं- जहांगीर, जगसिंह, शाहजहां व प्राण-नारायण। अलवारैय्यंगार। पिता-श्रीनारायणार्य। पितामह- महाकवि जग्गू पंडितराज ने प्रारंभ के कुछ वर्ष जहांगीर के आश्रय में बिताये। श्रीशिंगरार्य। कुलनाम-बालधन्वी, गोत्र कौशिक। इनके चाचा 1627 ई. के बाद ये उदयपुर नरेश जगत्सिंह के यहां चले मैसूर महाराज के राजपण्डित थे। आप यदुगिरि (मैसूर) की गए। कुछ दिन वहां रहे और उनकी प्रशंसा में “जगदाभरण' संस्कृत महापाठशाला में साहित्य के अध्यापक रहे। 17 वें की रचना की। 1628 ई. में जगत्सिंह गद्दी पर बैठे। शाहजहां वर्ष से संस्कृत रचना प्रारंभ।। भी 1628 ई. में ही गद्दी पर बैठे थे। कृतिया- (नाटक)- अद्भुतांशुक, मंजुलमंजीर, प्रतिज्ञाकौटिल्य, कुछ दिनों बाद शाहजहां ने उन्हें अपने यहां बुला लिया। संयुक्ता, प्रसन्नकाश्यप, स्यमंतक, बलिविजय, अमूल्यमाल्य, किन्तु कुछ विद्वानों के मतानुसार इन्हें जगत्सिंह के यहां से अप्रतिमप्रतिम, मणिहरण, प्रतिज्ञाशान्तनव, नवजीमूत, यौवराज्य, आसफखां ने (काश्मीर के सूबेदार के मामा) अपने पास वीरसौभद्र, अनंगदा (महाकाव्य) अद्भुतदूत (प्रकाशित) तथा बुलाया और ये उसी के आश्रय में रहे तथा शाहजहां ने अप्रकाशित काव्य- करुणरस- तरंगिणी, शृंगारलीलामृत और
324 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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