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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया था। तब रानी गंगादेवी अपने पति के साथ गई थी। इन्होंने अपने पराक्रमी पति की विजय यात्राओं का वर्णन उक्त महाकाव्य में किया है। यह कात्य अधूरा है और 8 सर्गों तक ही प्राप्त होता है। गंगाधर- इस नाम के चार लेखक हुए (1) बिल्हण के "विक्रमांकदेवचरित" के अनुसार, ये कर्ण के दरबार में कवि थे। इनके अनेक श्लोक श्रीधर कवि ने अपने "सदुक्तिकर्णामृत" में उद्धृत किये हैं। (2) माध्यंदिन शाखा के एक स्मार्त पंडित। इन्होंने कात्यायनसूत्र पर टीका तथा “आधानपद्धति" आदि ग्रंथ लिखे हैं। (3) 15 वीं शताब्दी के एक ज्योतिषी, जो श्रीशैल के पश्चिम में संगेर नामक ग्राम में रहते थे। "चांद्रमान" नामक तांत्रिक ग्रंथ के लेखक। (4) मुहूर्तमार्तडकार नारायण के पुत्र । गोत्र-कौशिक, शाखा-वाजसनेयी। निवास-घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र) के उत्तर में टापर नामक ग्राम। आपने "ग्रहलाघव" पर "मनोरमा" नामक टीका लिखी है। (5) वृत्तधुमणिकार गंगाधर- तंजावर के राजा व्यंकोजी के अमात्य । रचना-भोसल-वंशावलि। राजपुत्र शाहजी की प्रशस्ति ।। गंगाधर कविराज- समय- सन् 1798-1885। मुर्शिदाबाद (बंगाल) के निवासी। व्यवसाय-वैद्यक। कृतियां :- दुर्गवध (काव्य), लोकालोकपुरुषीय (काव्य), हर्षोदय (चित्रकाव्य) और छन्दोनुशासन। (व्याकरण विषयक) :- धातुपाठ, गणपाठ (मुग्धबोध), शब्द-व्युत्पत्तिसंग्रह, पाणिनीय अष्टाध्यायी की वृत्ति और कात्यायन-वार्तिक-व्याख्या । (टीकाएं) :- अमरुशतक-टीका, पदांकदूत-विवृति और कौमारव्याकरण टीका। (काव्यशास्त्रीय)प्राच्यप्रभा (अग्निपुराण पर आधारित अलंकार-विषयक ग्रंथ), छन्दःपाठ व छन्दःसार। (नाटिका)- तारावती- स्वयंवर। (वैद्यक विषयक)- जल्पकल्पतरु, पंचनिदानव्याख्या, नाडीपरीक्षा, राजवल्लभकृत "द्रव्यगुण" की व्याख्या, आयुर्वेद-संग्रह, आयुर्वेद-परिभाषा, भैषज्य-रसायन और मृत्युंजय-संहिता। गंगाधरभट्ट- वल्लभ-संप्रदाय के मूर्धन्य विद्वान। भागवत की महापुराण के पक्ष में लघु-कलेवर-ग्रंथकारों में से एक। रचना का नाम- "दुर्जन-मुख-चपेटिका"। इनकी "चपेटिका" पर पंडित कन्हैयालाल द्वारा "प्रहस्तिका" नामक विस्तृत व्याख्या लिखी गई जो प्रकाशित भी है। गंगाधर शास्त्री- वाराणसी-निवासी। समय- ई.19 वीं शती। कृतियां हैं- "हंसाष्टकम्" तथा "अलि-विलास-संल्लापम्" ये दोनों दार्शनिक स्तोत्र हैं। गंगाधरेन्द्र-सरस्वती- रचनाएं- स्वाराज्यसिद्धिः (मुद्रित), वेदान्तसिद्धान्तसूक्तिमंजरी और सिद्धान्तचन्द्रिकोदय। गंगानन्द कवीन्द्र- समय ई. 16 वीं शती का आरंभ। मैथिल पंडित। अपने काव्यों की रचना इन्होंने बीकानेर में रह कर की थी। कवीन्द्र की रचनाएं हैं- 1. वर्णभूषणम् (काव्य-शास्त्र का ग्रंथ), 2. काव्यडाकिनी (इसमें काव्य दोषों का विवेचन किया गया है), 3. भृगदूतम् (दूतकाव्य) एवं 4. मन्दारमंजरी (रूपक)। गंगाप्रसाद उपाध्याय- इनका जन्म उत्तर प्रदेश के नरदइ ग्राम में दि. 6 सितंबर 1881 ई. को हुआ था। इन्होंने प्रयाग से अंग्रेजी और दर्शन में एम. ए. किया था। आप कई विषयों व भाषाओं के पंडित तथा अंग्रेजी व हिन्दी में अनेक ग्रंथों के लेखक थे। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं- फिलॉसाफी ऑफ दयानंद, ऐतरेय व शतपथ ब्राह्मण के हिन्दी अनुवाद, मीमांसा-सूत्र व शाबर-भाष्य का हिन्दी अनुवाद आदि। आप आर्य समाजी थे। आपका आर्योदय नामक संस्कृत काव्य भारतीय संस्कृति का काव्यात्मक इतिहास माना जाता है। गंगाराम दास- बंगाली। “शरीर-निश्चयाधिकार" नामक आयुर्वेद विषयक ग्रंथ के लेखक। गंगासहाय (पं)- समय- 1811-1889 ई.। बूंदी के महाराव रामसिंह के समय में सेखावाटी से आये हुए गंगासहाय दर्शन व प्राच्य विद्या के विद्वान थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें से प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं : परमेश्वर-शतक (काव्य) व न्याय-प्रदीप। गंगासहाय- भागवत की आधुनिक टीकाओं में मान्यताप्राप्त टीका "अन्वितार्थ-प्रकाशिका" के प्रणेता। इन्होंने टीका के उपोद्घात में अपना पूरा परिचय निबद्ध किया है। तदनुसार ये पाटण नामक स्थान के निवासी थे। यह स्थान, पांडुवंशीय तौमर अनंगपाल के वंशज मुकुंदसिंह के शासन में था। माता-लक्ष्मी, जो बचपन में ही चल बसीं। पिता-पंडित रामधन । इन्हींसे आपने सकल शास्त्रो एवं भागवत का अध्ययन किया। अनेक राजदरबारों से इनका समय-समय पर. संबंध रहा । बूंदी-नरेश रामसिंह के यहां आप अनेक वर्षो तर अमात्य-पद पर कार्यरत रहे, वृद्धावस्था प्राप्त होते ही इन्होंने अमात्य-पद छोड दिया और भागवत के अनुशीलन में संलग्न हुए। इन्होंने प्राचीन टीकाओं का अध्ययन किया किंतु अन्वयमुखेन सरलार्थ-दीपिका व्याख्या न मिलने पर, इन्होंने स्वान्तःसुखाय "अन्वितार्थ प्रकाशिका" का प्रणयन किया। उस समय (1955 विक्रमी- 1898 ई.) आपकी आयु 60 वर्ष से अधिक थी। भागवत में प्रयुक्त प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध सभी प्रकार के छंदों का लक्षणपूर्वक निर्देश संभवतः गंगासहाय ने ही पहली बार किया है। गंगेश उपाध्याय (गंगेरी उपाध्याय)- समय ई. 13 वीं शती। प्रसिद्ध मैथिल नैयायिक आचार्य गंगेश उपाध्याय, न्याय-दर्शन के अंतर्गत नव्यन्याय नामक शाखा के प्रवर्तक हैं। इन्होंने "तत्त्व-चिंतामणि" नामक युगप्रवर्तक ग्रंथ की रचना कर संस्कृत आरामय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 307 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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