SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आन्दोलन के प्रभाव से संस्कृत में भी लेखन प्रारंभ। लिखे। वे हैं :- 1. अमरकोशोद्घाटनम, 2. निपाताव्ययोपसर्गवृत्ति, रचनाएं-सत्याग्रहगीता, उत्तरसत्याग्रहगीता। (राष्ट्रीय आन्दोलन की 3. गणवृत्ति, 4. अमृततरंगिणी (अथवा कर्मयोगामृततरंगिणी) घटनाएं इनमें वर्णित है। विचित्रपरिषद्यात्रा, शंकरजीवनाख्यानीयम्, और 5. निघण्टुटीका। वेदभाष्यकार देवयज्वाचार्य ने प्रमाणरूप रामदासचरितम्, तुकारामचरितम्, मीरालहरी, श्रीज्ञानेश्वरचरितम्, में अनेक बार क्षीरस्वामी का निर्देश किया है। ये तंत्रशास्त्र कथामुक्तावली, कटुविपाक (नाटक), महास्मशानम् (नाटक), के ज्ञाता तथा आयुर्वेद के पंडित थे। वनौषधिवर्ग पर इन्होंने कथापंचकम्, ग्रामज्योति (दोनों पद्यात्मक कथा) और मायाजालम् टीका लिखी है। (आख्यायिका)। क्षुर - ई. 12 वीं शती। सायणाचार्य अपने तैत्तिरीय भाष्य स्वयं क्षमाजी द्वारा किये गए अंग्रेजी अनुवादसहित प्रकाशित में भट्ट भास्कराचार्य के साथ आचार्य क्षुर का पांच बार 5 काव्य हैं : रामदासचरितम्, तुकारामचरितम्, ज्ञानेश्वरचरितम्, उल्लेख करते हैं। क्षुर-भाष्य अनुपलब्ध है। मीरालहरी और शंकरजीवनाख्यानम् (इसमे इनके पिताजी का क्षेमकीर्ति · ई. 14 वीं शती। गुरुनाम-विजयचन्द्र सूरि जो चरित्र चित्रित है)। जगच्चन्द्र सूरि के शिष्य थे। गुरुभ्राता वज्रसेन और पद्मचन्द्र। क्षारपाणि - आत्रेय पुनर्वसु के छठवें शिष्य तथा आयुर्वेदाचार्य। समय ई. 13 वीं शती। ग्रंथ-बृहत्कल्पवृत्ति (मलयगिरिकृत इन्होंने कायचिकित्सा पर ग्रंथ लिखा जो "क्षारपाणितंत्र" के बृहत्कल्प की अपूर्ण वृत्ति को पूर्ण करने का श्रेय) । पीठिकाभाष्य नाम से विख्यात है। यह आज उपलब्ध नहीं किन्तु अन्य की 606 गाथाओं से आगे के संपूर्ण भाष्य (लघुभाष्य) की ग्रंथकारों ने इसके श्लोक उदधृत किये हैं। वृत्ति के कर्ता। क्षितीशचन्द्र चट्टोपाध्याय (डॉ.) - जन्म सन 1896 में, क्षेमीश्वर - समय 10 वीं शती। "नैषधानंद" व "चण्डकौशिक" जोडासांको (कलकत्ता) में। शास्त्री तथा विद्यावाचस्पति । सन् । नामक दो नाटकों के प्रणेता। राजशेखर के समसामयिक कवि । 1949 में डी.लिट,। आशुतोष महाविद्यालय में दो तीन वर्षों कनोजनरेश महीपाल के आश्रय में रह कर "चण्डकौशिक" तक अध्यापन। फिर 35 वर्षों तक कलकत्ता वि.वि. में नाटक की रचना की। इनके नाटकों की साहित्यिक दृष्टि से तुलनामूलक भाषाशास्त्र विभाग में अध्यापन । वेद तथा व्याकरण विशेष महत्त्व नहीं है। के विशेषज्ञ। आप होमियोपेथी के ज्ञाता थे और रोगियों की क्षेमेन्द्र - सिंधु के पौत्र, प्रकाशेन्द्र के पुत्र, "दशावतारचरित" निःशुल्क चिकित्सा करते थे। पिता- शरच्चन्द्र। माता- नामक महाकाव्य के प्रणेता। इन्होंने काव्यशास्त्र एवं काव्य-सृजन गिरिबालादेवी। कृतियां "अन्धैरन्धस्य यष्टिः प्रदीयते (एकांकी) दोनों ही क्षेत्रों में समान अधिकार से अपनी लेखनी चलाई और षष्ठीतंत्र नामक गद्य उपन्यास। सुरभारती, मंजूषा तथा है। ये काश्मीर के निवासी थे। लोगों को चरित्रवान बनाने कलकत्ता ओरिएंटल जर्नल का सम्पादन। संस्कृत साहित्य परिषद् के हेतु इन्होंने रामायण व महाभारत का संक्षिप्त वर्णन अपनी की पत्रिका का सात वर्षों तक सम्पादन। बंगला तथा अंग्रेजी __"रामायणमंजरी" व "महाभारतमंजरी” में किया है। इनका में अनेक अनुसन्धानात्मक ग्रंथ लिखे हैं। इनके द्वारा संपादित रचनाकाल 1037 ई. है। इन्होंने राजा शालिवाहन (हाल) के पत्रिकाओं में "मंजूषा" का विशेष स्थान है। इनके अधिकांश सभापण्डित गुणाढ्य के पैशाची भाषा में लिखित अलौकिक निबंध इसी पत्रिका में प्रकाशित हुए। व्याकरण शास्त्र की ग्रंथ का "बृहत्कथामंजरी' के नाम से संस्कृत पद्य में अनुवाद इनकी ज्ञानगरिमा, "मंजूषा" से ही प्रकट हुई। इनका. जीवन किया है। इनकी दूसरी कथा कृति “बोधिसत्त्वावदानकल्पलता" है। वृत्तान्त "मंजूषा" के अंतिम अंक में प्रकाशित हुआ है। इनकी (1052 ई.)। इसमें भगवान् बुद्ध के प्राचीन जीवन संबद्ध शैली व्यंगप्रधान थी। आपने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कथाएं पद्य में वर्णित हैं। “दशावतार-चरित" में इन्होंने स्वयं कथाओं-कविताओं के समान ही अन्य कवियों की रचनाओं को "व्यासदास" लिखा है। (10-14)। प्रसिद्ध आचार्य के भी संस्कृत अनुवाद किये और उन्हें पत्र पत्रिकाओं में छपवाया। अभिनवगुप्त इनके गुरु थे जिनका उल्लेख "बृहत्कथामंजरी" क्षीरसागर वा. का. - ई. 20 वीं शती। "नाट्ये च दक्षा में है (19-37) ये काश्मीर के दो नृपों- अनंत (1018 से वयम्" नामक प्रहसन के प्रणेता।। 1063 ई.) व कलश (1063 से 1089 ई.)- के शासनकाल क्षीरस्वामी - समय ई. 1080 से 1130 ई.। पिता भट्ट में विद्यमान थे। अतः इनका समय 11 वीं शताब्दी है। ईश्वरस्वामी। संभवतः काश्मीरवासी। कठशाखा के अध्येता। इन्होंने "औचित्यविचारचर्चा", "कविकंठाभरण" व "तिलक" क्षीरस्वामी ने पाणिनीय धातुपाठ के औदीच्य पाठ पर "क्षीरतरंगिणी' नामक 3 काव्यशास्त्रीय ग्रंथ लिखे हैं। इन्हें साहित्यशास्त्र के नामक वृत्तिग्रंथ लिखा। इसका रोमन लिपि में प्रथम प्रकाशन औचित्यसंप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है। इनके नाम पर करने का श्रेय जर्मन पण्डित लिबिश को है। दूसरा सुधारित 33 ग्रंथ प्रचलित हैं जिनमें 18 प्रकाशित व 15 अप्रकाशित संस्करण पं. युधिष्ठिर मीमांसक ने देवनागरी में प्रकाशित किया। हैं। प्रकाशित ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं : रामायणमंजरी, क्षीरस्वामी ने "क्षीरतरंगिणी" के अतिरिक्त पांच ग्रंथ और महाभारतमंजरी, बृहत्कथामंजरी, दशावतारचरित (1066 ई.), संस्कृत वाङ्मय कोश- ग्रंथकार खण्ड/305 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy