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राजकन्या से असंतुष्ट प्रधान ने उसे नीचा दिखाने के लिये, से त्रिपुरारि भगवान् शंकर का भी पौरुष आधा रह गया कालिदास को ही वर बनाना चाहा। तदनुसार दरबार में (अर्धनारी-नटेश्वर)। राजा ने इस पर प्रसन्न होकर महाकवि कालिदास अच्छे वस्त्र पहने हुआ तथा पण्डित-मण्डली ने घिरा को लक्ष सुवर्ण-मुद्राओं से पुरस्कृत किया। हुआ प्रविष्ट हुआ। कन्या ने यह जानकर कि वह महापण्डित
कालिदास कथा-4 (देशत्याग) कालिदास कविमण्डल में अपने शिष्यों के साथ उपस्थित है, उसका सुंदर रूप देखा सर्वश्रेष्ठ होते हए भी उनका वेश्यागमन ध्यान में रखते हुए तथा शिष्यों से बातचीत कर, उसकी परीक्षा ली। मोनी पण्डित राजा भोज मन में खिन्न थे। राजा का अभिप्राय जानकर को, जिसके रूप में कालिदास उपस्थित था, बडा विद्वान् जान कालिदास भी अपने प्रति अवज्ञा का अनुभव करते हुए कर, उसने अपने विवाह के लिये चुना।
राजसभा में उपस्थित नहीं हुए। तब भोज ने उन्हें बुलवाया ___परन्तु विवाह के पश्चात् शीघ्र ही भंडाफोड होकर यह सत्य तथा बड़े आदर से बैठाया। यह देख अन्य पण्डितों को ईर्ष्या उसने जाना कि कालिदास निरा मूर्ख है। विवाह होने से वह हुई। उन्होंने आपस में चर्चा कर अन्तःपुर की एक दासी को कुछ कर भी न पाई। अन्त में राजकन्या ने उसे काली की धन दान से संतुष्ट कर, उसके द्वारा कालिदास के रानी उपासना कर, विद्या प्राप्त करने को कहा। कालिदास भी उग्र लीलावती के साथ अवैध सम्बन्ध की झूठी वार्ता राजा तक तपस्या में जुट गया तथा देवी को प्रसन्न न होते देख अपना पहुंचा दी। राजा ने सत्य जानने के लिए स्वयं अस्वस्थ होने शीष देवी को अर्पण करने को सिद्ध हुआ। यह देख देवी का बहाना कर रानी से पथ्य-भोजन मंगवाया। रानी ने मूंग प्रसन्न हुई। उसने उसके सिर पर वरद-हस्त रखा। तब से दाल की खिचडी राजा के सम्मुख रखी। बिना छिलके की वह विद्वान् तथा प्रतिभासंपनन कवि हुआ और हुआ "कालिदास' मूंगदाल देख कर राजा ने कालिदास से पूछा- "मुद्गदाली के नाम से प्रसिद्ध ।
गदव्याली कवीन्द्र वितुषा कथम्"। कालिदास ने त्वरित उत्तर कालिदास कथा-2 (काव्य-रचना की प्रेरणा) कालीदेवी दिया- "अन्धोवल्लभसंयोगाज्जाता विगतकंचुकी' (अन्नरूप से कृपा-प्रसाद पाकर कालिदास जब घर लौटा, तब उसकी वल्लभ से मिलने के कारण यह विगतकंचुकी हुई है)। यह पत्नी ने उसे पूछा- “अस्ति कश्चिद् वाग्-विशेषः' (आपकी सुनकर रानी लीलावती मुस्कुराई। इससे राजा को अवैध संबंध वाणी में कुछ बदल हुआ)। प्रश्न सुन कर, जिसकी वाणी . के प्रति विश्वास हो गया तथा उसने कालिदास को अपना देवी के प्रसाद से पुनीत हुई थी उस कालिदास ने, धारावाहिक देश छोड जाने का आदेश दिया। कालिदास के चले जाने रूप से उस प्रश्न-वाक्य का एक-एक शब्द लेकर, उससे पर जब रानी को कारण ज्ञात हुआ, तो उसने तीन प्रकार से प्रारम्भ कर, दो महाकाव्य तथा एक खण्डकाव्य की रचना दिव्य कर अपनी शुद्धता राजा के सम्मुख सिद्ध की। तब करते हुए अपनी पत्नी को सुनाया। “अस्ति" शब्द से पश्चाताप से दग्ध राजा कालिदास के लिये विलाप करने लगे। कुमारसम्भव प्रारम्भ हुआ। “कश्चित्" शब्द से मेघदूत प्रारम्भ फिर उन्होंने अपनी सभा में समस्या रखकर उसकी पूर्ति के हुआ, तथा वाग्विशेष के "वाक्" से रघुवंश- महाकाव्य प्रसृत
लिये कविवृन्द को सात दिन का समय दिया। कविमण्डल हुआ। इस अद्भुत काव्यस्त्रोत तथा प्रवाह से राजपुत्री स्तिमित ने पूर्ति करने में अपने को असमर्थ पाकर नगरी छोड कर हो गई। परन्तु जिसकी प्रेरणा से उसे यह सिद्धि प्राप्त हुई अन्यत्र जाना निश्चित किया। कालिदास ने यह जान कर उनके थी उस अपनी पत्नी को, वह माता तथा गुरु मानने लगा। सम्मुख समस्या-पूर्ति कर दी। तब एक कवि ने राजा के पास इस नए रिश्ते से उसकी पत्नी बडी असंतुष्ट हुई तथा क्रोध वह समस्यापूर्ति रख उसे स्वयं की रचना बताया। किन्तु राजा से उसने शाप दिया कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के ही हाथों ने कालिदास की ही रचना जान कर उन्हें खोज निकाला तथा होगी। इस प्रकार भिशप्त होकर. कालिदास का जीवनप्रवाह स्वयं जाकर उन्हें वे सम्मानपूर्वक अपने साथ वापस ले आए। नए रूप से प्रसृत हुआ तथा उसका अधिकतर समय वेश्याओं कालिदास के पुनरागमन से राज-सभा काव्यगोष्ठी से पुनः के सहवास में बीतने लगा।
चमक उठी। कालिदास कथा-3 (वेश्यासक्ति) कालिदास की वेश्या कालिदास कथा-5 (एकशिलानगरी में) एक बार श्रीशैल -लंपटता के कारण राजा भोज की सभा के सभी पंडित उनसे से कोई ब्रह्मचारी राजसभा में आया। उसकी अल्प आयु देख घृणा करने लगे। राजा भी इससे बडे चिन्तित हुए। एक कर राजा प्रभावित हुए। उनकी क्या सेवा की जावे यह पूछा। समय सभा में बैठे राजा के मन में विचार आया- “यह ब्रह्मचारी ने कहा- “राजन्, हम वाराणसी जा रहे हैं। रास्ते प्रज्ञावान् कवि वेशागमन जैसा प्रमाद करता है, यह सर्वथा में मनोविनोद के लिये काव्यगोष्ठी के लिये आपके पण्डितवृंद अनुचित है"। कालिदास ने राजा का मानस जानकर कहा- . सपत्नीक हमारे साथ प्रस्थित हों"। राजा ने तदनुसार आदेश अनंग कामदेव की चंचलता से देवता भी प्रभावित हैं, फिर दिया। राजसभा के सभी पण्डित ब्रह्मचारी के साथ गए। मनुष्यों की क्या कथा। देखिये न, इस दहनशील कामविकार अकेले कालिदास नहीं गए। उन्हे कारण पूछने पर उन्होंने
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 293
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