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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब उल्लेख किया है। इससे उनके कल्हण के पिता होने में किसी (बंगाल) के निवासी। व्यवसाय से वैद्य। पिता-कवि कर्णपूर । भी प्रकार का संदेह नहीं रह पाता। माता-कौसल्या। कृतियां "काव्यचन्द्रिका" और "चिकित्सा कल्हण ने चंपक के अनुज कनक का भी उल्लेख किया रत्नावली"। है जो हर्ष के कृपापात्रों में से थे। उन्होंने परिहारपुर को कनक कविचन्द्र द्विज - असम नरेश महाराज शिवसिंह (1714-1744) का निवास स्थान कहा है और यह भी उल्लेख किया है कि के आश्रित कवि। कृतियां-धर्मपुराण का अनुवाद (ई. 1735 जब राजा हर्ष बुद्ध प्रतिमाओं का विध्वंस कर रहे थे तब में) और कामकुमार हरण, नाटक (ई. 1724-31 के बीच)। कनक ने अपने जन्मस्थान की बुद्धप्रतिमा की रक्षा की थी। कविचूडामणि चक्रवर्ती - भागवत की केवल वेदस्तुति पर (राजतरंगिणी 7/1097) । कल्हण के इस कथन से यह निष्कर्ष ___ "अन्वयबोधिनी" नामक सफल सार्थक टीका के प्रणेता। अपनी निकलता है कि इनका जन्मस्थान परिहारपुर था और ये स्वयं इस टीका के अंत में आपने केवल इतना ही परिचय दिया बौद्धधर्म का आदर करते थे। कल्हण शैव थे। इस तथ्य है कि वे ब्राह्मण वर्ण तथा वृंदावन निकुंज के वासी थे। की पुष्टि "राजतरंगिणी" की प्रत्येक तरंग में अर्धनारीश्वर शिव इनके समय का ठीक पता नहीं चलता। किन्तु इनकी टीका की वंदना से होती है। कल्हण का वास्तविक नाम कल्याण अन्वयबोधिनी बहुत पुरानी मानी जाती है। अष्टटीका भागवत था और वे अलकदत्त नामक किसी व्यक्ति के आश्रय में में वह प्रकाशित भी हो चुकी है। रहते थे। इन्होंने सुस्सल के पुत्र राजा जयसिंह के राज्यकाल कवितार्किक - ई. 16-17 वीं शती। नोआखाली में भुलुया में (1127 से 1159 ई.) “राजतरंगिणी" का प्रणयन किया के राजा लक्ष्मण-माणिक्य के पुरोहित। पिता वाणीनाथ । था। इस महाकाव्य का लेखन दो वर्षों में (1148 से 1150 रचनाएं-कौतुकरत्नाकर (प्रहसन) और जामविजयम् (काव्य)। ई.) हुआ था। शैवमतानुयायी होते हुए भी कल्हण बौद्ध धर्म "जामविजयम्" में कच्छ के जामवंश का वर्णन है। यह के अहिंसा तत्त्व के पूर्ण प्रशंसक थे। इन्होंने बौद्धों की काव्य 7 सर्गों का है। उदारता, अहिंसा व भावनाओं की पवित्रता की अत्यधिक कवितार्किकसिंह - वेदान्तचार्य। पिता- वेंकटाचार्य। गोत्रप्रशंसा की है। राजा के गुणों की ये बोधिसत्व से तुलना कौशिक । रचना-आचार्यविनयचम्पू, इसमें वेदांतदेशिक (14 वीं करते हैं। (राज 1/34, 1/138)। "श्रीकण्ठचरित' में कल्हण शती) का चरित्र निवेदित किया है। की प्रशस्ति प्राप्त होती है। (25/78, 25/79 व 25/80) । कल्हण की एकमात्र रचना "राजतरंगिणी' ही प्राप्त होती कवि परमेष्ठी - नामान्तर कवि परमेश्वर। पम्प, नयसेन, है। इसमें उन्होंने अत्यंत प्राचीन काल से लेकर 12 वीं अग्गल, कमलभव, गुणवर्म द्वितीय, पार्श्वपण्डित, गुणभद्र, जिनसेन शताब्दी तक काश्मीर का इतिहास अंकित किया है और आदि कनड एवं संस्कृत कवियों द्वारा उल्लिखित । ऐतिहासिक शुद्धता एवं रचनात्मक साहित्यिक कृति, दोनों ग्रंथ-वागर्थसंग्रह। आवश्यकताओं की पूर्ति की है। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों का कवि मदन - ई. 17 वीं शताब्दी। “घटखर्पर" नामक काव्य विवरण, कई स्रोतों से ग्रहण कर, उसे पूर्ण बनाया है। कल्हण का समस्या के रूप में उपयोग करते हुए काव्य रचना की का व्यक्तित्व, एक निष्पक्ष व प्रौढ ऐतिहासिक का है। राजतरंगिणी जिसका नाम है "कृष्णलीला"। . के प्रारंभ में उन्होंने यह विचार व्यक्त किया है कि "वही कविराज - कीर्तिनारायण और चन्द्रमुखी का पुत्र । वनवासी गुणवान कवि प्रशंसा का अधिकारी है, जिसकी वाणी, अतीत का के कदम्ब राजाओं का राजकवि। पिता वहीं पर सेनापति । चित्रण करने में घृणा या प्रेम की भावनाओं से मुक्त और राजा का नाम कामदेव। समय 12 वीं शती का उत्तरार्ध । निश्चित होती है। ("श्लाघ्यः स एव गुणवान् रागद्वेष बहिष्कृता। वक्रोक्ति-निपुणता के लिए प्रसिद्ध है। रचनाएँ पारिजातहरणम् भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती" -11 1/7)। कल्हण 10 सर्गों का काव्य। इन्द्रोद्यान से श्रीकृष्ण द्वारा पारिजात का ने इतिहास के वर्णन में इस आदर्श का पूर्णतः पालन किया हरण इस काव्य की कथा वस्तु है। श्लिष्ट शब्दावली के है। कवि के रूप में उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रखर है। उन्होंने अभाव में यह काव्य मधुरता से पूर्ण है। संभवतः कवि की स्वयं को इतिहासवेत्ता न मान कर, एक कवि के रूप में ही प्रथम रचना है। दूसरे काव्य राघवपाण्डवीयम् में रामायण तथा प्रस्तुत किया है। वे कहते हैं अमृत का पान करने से केवल भारत की कथा श्लेषमय रचना द्वारा वर्णित है। पीने वाला ही अमर होता है, किन्तु सुकवि की वाणी, कवि कविराज - इन्होंने छत्रपति शिवाजी द्वारा मिर्जा राजा जयसिंह एवं वर्णित पात्रों, दोनों के ही शरीर को अमर कर देती है। को फारसी में लिखे गए महत्त्वपूर्ण पत्र का संस्कृत में अनुवाद (राज 1/3)। इनके उत्कृष्ट कवित्व ने ही काश्मीर के इतिहास किया है जिसकी श्लोक संख्य 60 है। को प्रकाशित किया है। कवि राम - ई. 17 वीं शती । “दिग्विजयप्रकाश" के रचयिता। कविचन्द्र - ई. 17 वीं शती। कुलनाम-दत्त। दीर्घाङ्क ग्राम कवि वाचस्पति - ई. 11 वीं शती। बंगाल निवासी। राजा 288 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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