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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन विविध प्रमाणों से अतिप्राचीन काल से भारत में नाट्यवाङ्मय तथा नाट्यकला का विकास और विस्तार हुआ था, यह तथ्य सिद्ध होता है। इस विषय के अंगों एवं उपांगों की शास्त्रीय चर्चा भी संसार के इस प्राचीनतम राष्ट्र में अतिप्राचीन काल से शुरु हुई दिखाई देती है। भरत का नाट्यशास्त्र भरताचार्य कृत नाट्यशास्त्र यह ग्रंथ भारतीय नाट्यशास्त्रीय वाङ्मय में अग्रगण्य और परम प्रमाणभूत याने "पंचम वेद" माना गया है। भरत के आविर्भाव का काल निश्चित नहीं हैं। यूरोपीय विद्वानों में हेमन के मतानुसार भरत इसा पूर्वकालीन हैं। रेनॉड के मतानुसार ईसा की प्रथम शती, पिशल के मतानुसार ईसा की छठी या सातवीं शती, श्री प्रभाकर भांडारकर के मतानुसार ई. 4 थी शती और हरप्रसाद शास्त्री के मतानुसार ईसापूर्व दूसरी शती में नाट्यशास्त्रकार भरत का आविर्भाव माना गया है। इस प्राचीन नाट्यशास्त्रकार ने अपने पूर्ववर्ती, शिलाली, कृशाश्व, धूर्तिल, शाण्डिल्य, स्वाति, नारद, पुष्कर आदि शास्त्रकारों का नामोल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त अभिनवभारती (भरतनाट्यशास्त्र की टीका) में सदाशिव, पद्म और कोहल का उल्लेख आता है। धनिक के दशरूपक में द्रुहिण और व्यास के नाम मिलते हैं और शारदातनयकृत भावप्रकार में आंजनेय का निर्देश हुआ है। ये सारे नाम पुराणों, सूत्रग्रंथों और वैदिक संहिताओं में यत्र तत्र मिलते हैं। ___ भरत के नाट्यशास्त्र में संगीत, नृत्य, शिल्प, छन्दःशास्त्र, विविध भाषा प्रयोग, रंगभूमि की रचना, नट, श्रोतागण, इत्यादि नाट्यकलाविषयक विविध विषयों का विवेचन हुआ है। मातृगुप्त, भट्टनायक, शंकुक (9 वीं शती) और अभिनवगुप्त (ई. 10 वीं शती) इन विद्वानों ने नाट्यशास्त्र पर टीकाएं लिखी हैं। अग्निपुराण (अ. 337-341) में नाट्यविषयक जो भी जानकारी दी गई है, उसका आधार भरतनाट्यशास्त्र ही माना जाता है। नाट्य की कथारूप उपपत्ति भरतमुनि ने नाट्य के उदगम की उपपत्ति कथारूप में बताई है। तदनुसार त्रेतायुग में कामक्रोधादि विकारों से त्रस्त इन्द्रादि देवता ब्रह्माजी के पास जाकर स्त्री-शूद्रादि अज्ञ लोगों का मनोरंजन करने वाले दृश्य और श्राव्य क्रीडासाधन की याचना करने लगे। ब्रह्माजी ने उनकी बात मानकर, चतुवर्ग और इतिहास से सम्मिलित "पंचम वेद" अर्थात् नाट्यवेद निर्माण किया है। "जग्राह पाठ्यमृग्वेदात् सामभ्यो गीतमेव च। यजुर्वेदादभिनयान् रसानाथवर्णादपि ।।" इस वचन के अनुसार, ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से नृत्यादि अभिनय और अथर्ववेद से रस लेकर ब्रह्माजी ने उन देवताओं की अपेक्षा पूरी की। ब्रह्मा के आदेश से विश्वकर्मा ने रंगशाला बनाई। अपने सौ पुत्रों की सहायता से, शिवजी से ताण्डव, पार्वती से लास्य और विष्णु भगवान् से नाट्यवृत्तियाँ प्राप्त कर, इन्द्रध्वज महोत्सव के अवसर पर, भरतमुनि ने प्रथम नाट्यप्रयोग किया जिसमें देवताओं की विजय और असुरों की पराजय दिखाई गई थी। अपने नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में नाट्यप्रयोग की यह अद्भूत उपपत्ति भरत मुनि ने दी है। इसी अध्याय में नाट्य की व्याख्या बताई है। ___ "योऽयं स्वभावो लोकस्य सुखदुःखसमन्वितः। सोऽङ्गाद्यभिनयोपेतः नाट्यमित्यभिधीयते ।। (नाट्यशास्त्र 1-119) अर्थात् इस संसार में व्यक्त हुआ, मानवों का सुखदुःखात्मक स्वभाव, जब अंगादि अभिनयों द्वारा प्रदर्शित होता है, तब उसे नाट्य कहते हैं। पाश्चात्य विचार पाश्चात्य विद्वानों ने भारतीय नाटक की उत्पत्ति के विषय में विविध प्रकार की उपपत्तियाँ देने का प्रयास किया है। श्री वेबर और विंडिश का मत है कि भारत में नाटकों का प्रादुर्भाव यूनानी नाटक से हुआ है। भारत में रहे हुए यूनानी शासकों ने अपनी राजसभाओं में यूनानी नाटकों का अभिनय कराया होगा। उनके प्रभाव से भारतीय साहित्यिकों ने संस्कृत भाषा में नाटक रचना की होगी। ई. पू. प्रथम शताब्दी में यूनानी शासक भारतीय जीवन में सम्मिलित होने लगे थे। बादशाह सिकन्दर नाटकों में विशेष रुचि रखता था। उसके विजित देशों में सर्वत्र यूनानी नाटकों का अभिनय हुआ होगा। उस प्राचीन काल में उज्जयिनी और अलेक्जेंड्रिया में व्यापार होता था। संस्कृत नाटक में "यवनिका" (या जवनिका) शब्द का प्रयोग मिलता है। यह शब्द यूनानी प्रभाव का द्योतक है, क्यों कि यह यवन (अर्थात यूनानी) शब्द से व्युत्पन्न हुआ है। भारतीय और यूनानी नाटक में वस्तुसाम्य पाया जाता है। दोनों में राजा का एक युवती से प्रेम, उसमें अनेक विघ्न और अंत में सुखदायक मिलन, अभिज्ञान, प्रयोग, डाकुओं द्वारा नायिका का अपहरण, समुद्र में जहाज टूटने से नायिका का विपत्तिग्रस्त होना आदि बातें दोनों देशों के नाटकों में पाई जाती हैं। 214/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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