________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दार्शनिक विचार प्रवाह तथा आचारधर्म से युक्त बौद्ध धर्म में अवान्तर मतभेदों के कारण दो प्रधान संप्रदाय यथावसर उत्पन्न हुए :
1) हीनयान और 2) महायान । हीनयान में बौद्धधर्म का प्राचीन रूप सुरक्षित रखने पर आग्रह है। महायान उदारमतवादी संप्रदाय है। इसी मत का प्रचार चीन, जापान, कोरिया आदि देशों में हुआ। बोद्धों का संस्कृत वाङ्मय महायानी पंडितों द्वारा ही निर्माण हुआ है। उनके काव्यों में उपरि निर्दिष्ट चार आर्यसत्यों एवं अष्टांगिक मार्ग का सर्वत्र यथास्थान प्रतिपादन हुआ है। अष्टशील :- प्रत्येक मास की अष्टमी, चतुर्दशी, पौर्णिमा और अमावस्या इन तिथियों को उपोषण और अष्टशीलों का पालन, आचार धर्म में आवश्यक माना गया है। पंचशील :- अहिंसा, अस्तेय, अव्यभिचार, असत्यत्याग, और मद्यत्याग इन गुणों को पंचशील कहते हैं। बौद्ध धर्म का इस पर विशेष आग्रह है। त्रिशरण :- बुद्ध, धर्म और संघ को शरण जाना। 'बुद्ध सरणं गच्छामि- इत्यादि 'त्रिशरण' के मंत्रों का त्रिवार उच्चारण किया जाता है।
१ जातक तथा अवदान साहित्य बौद्ध धर्म में नीतितत्त्व पर अधिक बल होने कारण, नैतिक आचार का परिचय समाज को देने के लिये कथा माध्यम का उपयोग किया गया। कथाओं से मनोरंजन के साथ नीति का बोध सरलता से दिया जाता है। इस कथा-माध्यम का उपयोग वेदों, ब्राह्मणों, उपनिषदों और विशेषतः पुराणों में प्रचुर मात्रा में हुआ है। बौद्ध वाङ्मय में इस प्रकार की नीतिपरक कथाओं को जातक और अवदान संज्ञा दी गई है। अवदान साहित्य में जातकों का भी अन्तर्भाव होता है। जातक का सर्वमान्य अर्थ है, बोधिसत्व की जन्मकथा। भगवान बुद्ध के पूर्वजन्मों से संबंधित घटनाओं द्वारा नीतितत्त्व का बोध देने का प्रयत्न जातक कथाओं में सर्वत्र दिखाई देता है। इस प्रकार की कथाएं पालि-साहित्य में प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। इन्हीं पालि जातकों तथा श्रुतिपरंपरागत जातको का संकलन कर, आर्यशूर ने जातकमाला (या बोधिसत्त्वावदानमाला) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। कुमारलात कृत 'कल्पनामण्डितिका' का भी स्वरूप इसी प्रकार का है। भगवान बुद्ध के पूर्वजन्मों से संबंधित नीति कथाओं की संख्या पांच सौ तक होती है। पुनर्जन्म और कर्मफल सिद्धान्त के अनुसार, शाक्यमुनि के रूप में जन्म लेने पूर्व, भगवान बुद्ध के राजा, सौदागर सज्जन, वानर, हाथी, इत्यादि अनेक योनियों में उत्पन्न हुए और उन जन्मों में उन्होंने क्षमा, वीर्य, दया, धैर्य, दान, सत्य, अहिंसा शांति आदि सद्गुणों का पालन किया ऐसा इन जातक कथाओं में बताया गया है। नीतिशिक्षात्मक कथाओं का दूसरा प्रकार है, अवदान कथा। जातक कथाएँ बुद्ध के विगत जीवन से संबंधित होती हैं, जब कि अवदान कथाओं में प्रधान पात्र स्वयं बुद्ध ही होते हैं। तीसरा प्रकार है 'व्याकरण', जिसमें भविष्य की कथा वर्तमान कर्मों की व्याख्या करती है। 'बौद्धसंस्कृत' में विरचित जातकों तथा अवदानों द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार सामान्य जनता में भरपूर मात्रा में हुआ। अवदान साहित्य अंशतः सर्वास्तिवादी तथा अंशतः महायानी है। इस साहित्य में उल्लेखनीय ग्रंथों में 1) यंदीश्वर या नंदीश्वर कृत अवदानशतक (ई-1-2 शती) 2) कर्मशतक 3) दसगुलम्, 4) दिव्यावदान, 5) कल्पद्रुमावदानमाला, 6) रत्नावदानमाला, 7) अशोकावदानमाला, 8) द्वाविंशत्यवदान, 9) भद्रकल्पावदान, 10) व्रतावदानमाला, 11) विचित्रकर्णिकावदान और 12) अवदानकल्पलताइस की रचना, औचित्यविचारचर्चा के लेखक सुप्रसिद्ध संस्कृत साहित्यिक क्षेमेन्द्र ने 11 वीं शती में की। क्षेमेन्द्र एक वैष्णव कवि थे। जातक एवं अवदान साहित्य अत्यंत प्राचीन होने के कारण तथा उनमें तत्कालीन समाजजीवन के अंग-प्रत्यंगों का वास्तव चित्रण होने के कारण, प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के जिज्ञासुओं के लिए यह एक अद्भुत भंडार है। प्राचीन शासनव्यवस्था, वाणिज्य, व्यापार, आचारविचार, रीति-रिवाज, सामाजिक आर्थिक व्यवस्था, विदेशों से संबंध इत्यादि विविध विषयों का ज्ञान नीतितत्त्वों के साथ इस साहित्य में प्राप्त होता है। एशिया और यूरोप के साहित्य को भी इन नीतिकथाओं ने प्रभावित किया है। बौद्ध संस्कृत वाङ्मय का परिशीलन करते हुए यह बात विशेष कर ध्यान में आती हैं कि यह सारा वाङमय बौद्धों के मूलभूत पालि वाङमय से अनुप्राणित और विदग्ध संस्कृत वाङ्मय से प्रभावित है। इस वाङ्मय के अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ मूल संस्कृत रूप में आज अप्राप्य हैं किन्तु चीनी, तिब्बती, जापानी इत्यादि भाषा में अनुवादरूप में सुरक्षित हैं और इस का व्यापक तथा गंभीर अध्ययन विदेश के विद्वानों ने अधिक मात्रा किया है।
चितवादी तथा अंशतक 3) दसगुलमा व्रतावदानमा
अवदानशतक (ई-1-
2
वदान, 9) भद्रकल्पावदान
साहित्यिक क्षेमेन्द्र न
ली समाजजीवन के
206 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
For Private and Personal Use Only