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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपना शरीर क्षुधात व्याघ्री को समर्पण करने पर प्रवाहित निजी रक्त से इस स्तोत्र को लिखा। मातृचेट को महाराजा कनिष्क ने अपनी सभा में निमंत्रित करने पर उन्होंने वार्धक्य के कारण अपनी असमर्थता एक काव्यात्मक पत्रद्वारा निवेदित की। 185 श्लोकों का यह संस्कृत पत्रकाव्य मूल रुप में अप्राप्य है किन्तु इसका तिबती अनुवाद सुरक्षित है। तिब्बत के तंजूर नामक ग्रंथालय में मातृचेट के नाम से, वर्णनार्हवर्णन, सम्यक्बुद्धलक्षणस्तोत्र, त्रिरत्नमंगलस्तोत्र, एकोत्तरीस्तोत्र, सुगतपंचत्रिरत्नस्तोत्र, त्रिरत्नस्तोत्र, मिश्रकस्तोत्र, चतुर्विपर्ययकथा, कलियुगपरिकथा, आर्यतारादेवीस्तोत्र, सर्वार्थसाधनास्तोत्ररत्न एवं मतिचित्रनीति नामक ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। इनके अतिरिक्त चतुःशतक और अर्घ्यशतक (श्लोकसंख्या 153) इन दो उत्कृष्ट स्तोत्रों के कारण बौद्ध जगत् में मातृचेट एक श्रेष्ठ स्तोत्रकार माने जाते हैं। अर्घ्यशतक के तिब्बती अनुवाद का पुनश्च संस्कृत रूपांतर किया गया, जिसका नाम है “शतपंचाशिका स्तोत्र"। गत शत वर्षों में एम्. ए. स्टील; ए. ग्रेन वेंडल; ए.वान. ले. काग; सिल्वाँ लेवी, राहुल सांकृत्यायन जैसे श्रेष्ठ गवेषकों ने मातृचेट की रचनाओं को प्रकाश में लाया। इनकी मूल संस्कृत रचनाएं अप्राप्य है, किन्तु तिब्बती चीनी आदि बाह्य भाषाओं में उनके अनुवाद सुरक्षित हैं। आर्यशूर :- यह एक ऐसे प्रतिभासम्पन्न बौद्ध पंडित थे जिन्होंने बोधिसत्त्व (अर्थात् भावी बुद्ध) की काव्यमय जन्मकथाओं को अपनी जातकमाला (या बोधिसत्त्वावदानमाला) में ग्रथित किया। इस ग्रंथ में 34 जातकों का संग्रह है। इनमें से कतिपय जातक पालि जातकों पर आधृत हैं। आर्यशूर की भाषाशैली अश्वघोष के समान परिष्कृत होने के कारण अश्वघोष और आर्यशूर को अभिन्न मानते हैं। इस ग्रंथ के तिब्बती और चीनी भाषा में अनुवाद हो चुके हैं। चीनी अनुवाद का समय ई. 90 से 12 वीं शती के बीच का माना जाता है। बुद्धघोषरचित पद्यचूडामणि नामक दस सर्गों का बुद्धचरित्रात्मक ग्रंथ सन् 1921 में कुप्पुस्वामी शास्त्री द्वारा प्रकाशित हुआ है। वैभाषिक आर्यचन्द्रकृत 'मैत्रेयव्याकरण' नामक ग्रंथ के तिब्बती, चीन आदि भाषाओं में अनुवाद सुरक्षित हैं। इसके चीनी अनुवाद से जर्मन तथा तोखारियन भाषा में अनुवाद हुए हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में भावी बुद्ध मैत्रेय के जन्म, स्वरूप और स्वर्गीय जीवन का वर्णन किया है। मद्धर्मपुण्डरीक (नामान्तर वैपुल्यसूत्रराज) :- ई. प्रथम शताब्दी में रचित महायान संप्रदाय का एक महनीय सूत्र ग्रंथ है। बौद्ध साहित्य में सूत्त शब्द का अर्थ सुत अथवा सूक्त है। "अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद् विश्वतोमुखम्" इस सुप्रसिद्ध कारिका में 'सूत्र' शब्द का जो पारिभाषिक अर्थ है, वह बौद्ध साहित्य में नहीं माना जाता। यह ग्रंथ परिवर्त नामक 27 विभागों में विभाजित है। एशिया तथा यूरोप की प्रायः सभी श्रेष्ठ भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। डॉ. राममोहन दास के हिन्दी अनुवाद तथा विशद भूमिका सहित राष्ट्रभाषा परिषद् (बिहार) द्वारा इसका प्रकाशन हुआ है। इसमें बुद्धभक्ति, उनकी मूर्ति तथा स्तूप की पूजा आदि की अपेक्षा योगिक क्रियाओं पर कम बल दिया जाता है। समीक्षकों की मान्यता है कि यह ग्रंथ भागवत संप्रदाय, वेदान्त दर्शन एवं भगवद्गीता से पूर्ण प्रभावित है। इसमें बुद्ध का वही रूप परिलक्षित होता है, जो भागवत संप्रदाय में श्रीकृष्ण का। शान्त, अद्भुत एवं भक्ति रस का इसमें पूर्ण परिपाक हुआ है। प्रज्ञापारमितासूत्र :- इस ग्रंथ में महायान संप्रदाय का दार्शनिक सिद्धान्त पक्ष प्रकाशित हुआ है। इसके शतसाहस्रिका, पंचविशतिसाहस्रिका, अष्टादशसाहस्रिका एवं दशसाहस्रिका, सार्धद्विसाहस्रिका तथा सप्तशतिका नामक विविध संस्करण उपलब्ध होते हैं। इनमें अष्टसाहस्रिका (27 परिवों में विभक्त) सर्वाधिक प्राचीन मानी जाती है और अन्य संस्करण इसी के विकसित एवं संक्षिप्त रूप माने जाते हैं। प्रज्ञापारमिता का वाच्य अर्थ है (प्रज्ञा = ज्ञान और पारमिता = पूर्णता अर्थात् शून्यता विषयक परिपूर्णज्ञान) । इन सूत्रों (अर्थात् सूक्तों) में षट् पारमिताओं (दान, शील, धैर्य, वीर्य, ध्यान एवं प्रज्ञा) की विवेचना हुई है। दशभूमीश्वरसूत्र :- बौद्ध परिभाषा में विविध "अवतंसकसूत्र" उपलब्ध होते हैं जिनमें गण्डव्यूह (महायान) सूत्र तथा दशभूमीश्वर (या दशभूमिक) सूत्र का अन्तर्भाव होता है। इसका वर्ण्य विषय है उन दश भूमियों की विवेचना, जिनके द्वारा सम्यक् संबोधि प्राप्त की जाती है। इसी के समान बोधिसत्व भूमियों का प्रतिपादन करनेवाला एक अन्य ग्रन्थ है जिसका नाम है "दशभूमिक्लेशच्छेदिकासूत्र"। इसका चीनी अनुवाद ई. प्रथम शती में हुआ। अवतंसक सूत्र के समान 'रत्नकूट' नामक सूत्र समुच्चयात्मक ग्रंथ महायान संप्रदाय में निर्माण हुए। इस सूत्रसमुच्चय में बृहत्सुखावतीव्यूह, अक्षोभ्यव्यूह, मंजुश्रीबुद्ध-क्षेत्र- गुणव्यूह, काश्यपपरिवर्त, अक्षयमतिपरिपृच्छा, उग्रपरिपृच्छा, राष्ट्रपालपरिपृच्छा आदि अनेक सूत्र उपलब्ध होते हैं। कारण्डकव्यूह सूत्र में पौराणिक पद्धति के अनुसार बुद्ध अवलोकितेश्वर की भक्ति का प्रतिपादन तथा मंत्र तंत्र का दर्शन मिलता है। “ॐ मणिपर्दो हुम्" इस प्रख्यात षडक्षरी बौद्ध मंत्र का प्रथम उल्लेख इसी ग्रंथ में मिलता है। लंकावतारसूत्र (या सद्धर्मलंकावतार सूत्र) में दश परिवारों में राक्षसराज रावण एवं तथागत के संवाद में शून्यवाद के प्रतिकूल विज्ञानवाद का प्रतिपादन किया है। इसमें मांसाहार के निषेध की चर्चा सर्वप्रथम हुई है। इस ग्रंथ में इस बात पर 202 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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