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से मूलतः निरीश्वरवादी बौद्धधर्म की ईश्वरवादी धर्म में परिणति दिखाई देती है। बौद्धों के बुद्धेश्वरवाद या बुद्धभक्तिमार्ग का प्रचार भारत की अपेक्षा चीन, तिब्बत, जापान आदि देशों में अधिक हुआ। महावस्तु, ललितविस्तर, अश्वघोष का बुद्धचरित महाकाव्य तथा मातृचेट आदि महनीय लेखकों के साहित्य में अभिव्यक्त बुद्धभक्ति का विस्तार बौद्ध स्तोत्रकाव्यों में पर्याप्त मात्रा में दिखाई देता है। वें स्तोत्रकार तथा उनके स्तोत्रकाव्य अवश्य उल्लेखनीय हैं जैसे :स्तोत्रकार
स्तोत्रकाव्य नागार्जुन (शून्यवाद के प्रधान प्रतिष्ठापक) 1) चतुःस्तव 2) निरौपम्यस्तव, 3) अचिन्त्यस्तव । हर्षवर्धन (ई.7 वीं शती)
1) सुप्रभातस्तोत्र (श्लोक 24) 2) अष्टमहाश्रीचैत्यस्तोत्र । वज्रदत्त (ई.9 वीं शती)
लोकेश्वरशतक (फ्रेंच में अनुवादित) अमृतानंद
नेपालीय देवताकल्याण पंचविंशतिका । सर्वज्ञ मिश्र (काश्मीरवासी) (ई. 8 वीं शती) आर्यतारा-स्रग्धरास्तोत्र । (तारा अवलोकितेश्वर की स्त्री-रुप प्रतिमूर्ति हैं।) श्लोकसंख्या .
73, तारादेवी से संबंधित स्तोत्रों की कुल संख्या 96 बताई जाती है उनमें से 62
स्तोत्रों के तिब्बती अनुवाद हो चुके हैं। चन्द्रगोमी
तारासाधकशतक रामचन्द्र कविभारती (13 वीं शती)
भक्तिशतक नागार्जुन :- शून्यवादी स्तोत्रकारों में नागार्जुन का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावी था। उन्होंने बौद्ध संस्कृत साहित्य में भरपूर योगदान दिया है किन्तु इन की रचनाएँ भारत के बाहर चीन, मंगोलिया, तिब्बत आदि देशों में अनुवादरूप में अधिक प्रसिद्ध हैं। नागार्जुन का चरित्र एवं व्यक्तित्व एक विवाद्य विषय हुआ है। इनके द्वारा रचित ग्रंथों के नाम हैं : माध्यमिककारिका, दशभूमिविभाषाशास्त्र, महाप्रज्ञापारमितासूत्रकारिका, उपायकौशल्य, प्रमाणविध्वंसन, विग्रहव्यावर्तिनी, चतुःस्तव, युक्तिषष्टिका, शून्यतासप्तति, प्रतीत्यमुत्पादहृदय, महायानविंशक और सुत्तलेख। इन 12 रचनाओं में 'चतुःस्तव' ही एक मात्र स्तोत्र काव्य है, अन्य सभी माध्यमिकों के शून्यवाद से संबंधित महत्वपूर्ण दार्शनिक रचनाएं हैं। माध्यमिककारिका (श्लोकसंख्या 400) पर नागार्जुन ने स्वयं "अकुतोभया" नामक टीका लिखी थी, जिसका तिब्बती अनुवाद सुरक्षित है। आर्यदेव : आप नागार्जुन के प्रधान शिष्य एवं उत्तराधिकारी थे। किंवदन्ती के अनुसार अपना एक नेत्र किसी वृक्षदेवता को समर्पण करने के कारण इन्हें 'काणदेव' कहते हैं तथा भगवान् शिव को एक नेत्र समर्पण करने कारण इन्हें 'नीलनेत्र' कहते थे। कुमारजीव (ई. 5 वीं शती) (जो संस्कृत ग्रंथों के चीनी अनुवादक के नाते वाङ्मयीन क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं) ने इन के जीवनचरित का चीनी अनुवाद किया है। आर्यदेव की इन रचनाओं में चतुःशतक, माध्यमिक हस्तवालप्रकरण, स्खलितप्रमथन, युक्तिहेतुसिद्धि और ज्ञानसारसमुच्चय ये चार शास्त्रीय रचनाएं शून्यवादविषयक हैं और चर्यामेलापनप्रदीप, चितावरणविशोधन, चतुःपीठतंत्ररज, चतुःपीठसाधन, ज्ञानडाकिनीसाधन और एकद्रुमपंजिका ये छः रचनाएं तंत्रशास्त्र से संबद्ध हैं। भावविवेक :- इनकी 4 कृतियाँ प्रसिद्ध हैं : 1). माध्यमिककारिका व्याख्या, 2) मध्यमहृदयकारिका, 3) मध्यमार्थसंग्रह और 4) हस्तरत्न इनके चीनी और तिब्बती भाषाओं में सुनवादमात्र में विद्यमान हैं। चन्द्रकीर्ति :- (ई. छठवीं शती) रचनाएँ : 1) माध्यमिकावतार, 2) प्रसन्नपदा (नागार्जुन की माध्यमिककारिका की व्याख्या) 3) चतुःशतकटीका (आर्यदेवकृत चतुःशतक की टीका)। शान्तिदेव :- रचनाएं : 1) शिक्षासमुच्चय (कारिकासंख्या 27)। इस पर लेखक ने व्याख्या भी लिखी है। 2) सूत्रसमुच्चय
और 3) बोधिचर्यावतार जिस के 9 परिच्छेद हैं और जिस पर 11 टीकाएं लिखी गई। इन टीकाओं के केवल तिब्बती अनुवाद उपलब्ध हैं। बोधिचर्यावतार में शातिदेव की आत्यंतिक भावुकता का परिचय मिलता है। शान्तरक्षित :- ई. 8 वीं शती। तिब्बत में 'सम्मेविहार" नामक सर्व प्रथम बौद्धविहार की स्थापना करने का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है। इनकी एकमात्र रचना, तत्त्वसंग्रह है, जिस पर उनके शिष्य कमलशील ने टीका लिखी है। .. अश्वघोष के परवर्ती बौद्ध साहित्यिकों में आर्यदेव, नागार्जुन और कुमारलात प्रमुख माने जाते हैं। कुमारलात का समय ई. द्वितीय शती तथा निवासस्थान तक्षशिला माना जाता है। ये सौत्रान्तिक संप्रदायी थे। इनके कल्पनामंडतिका-दृष्टान्त-पङ्क्ति (नामान्तर कल्पनामंडतिका या कल्पनालंकृतिका) नामक ग्रन्थ में कविकल्पना से मंडित दृष्टान्तों एवं कथाओं का संग्रह मिलता है। इस ग्रंथ का चीनी भाषा में अनुवाद हो चुका है। डॉ. लूडर्स ने प्रस्तुत ग्रंथ का अनुवाद किया। प्राचीन काल में चीनी भाषामें इसका अनुवाद हो चुका है। डॉ. लूडर्सने प्रस्तुत ग्रंथ को प्रकाश में लाया।
कनिष्क के समय में मातृचेट नामक बौद्ध कवि ने 70 श्लोकों का एक बुद्ध स्तोत्र लिखा। कहते हैं कि मातृचेट ने
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 201
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