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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवद्गीता आध्यात्मिक विषयों में सभी दृष्टि से परिपूर्ण उपनिषद् है। इसके प्रत्येक अध्याय की पुष्पिका में "योगशास्त्र" शब्द आता है। अर्थात् भगवद्गीता योगशास्त्र परक है। इसमें योग शब्द का प्रयोग 80 स्थानों पर हुआ है; जिनमें अधिकतर वह कर्मयोग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। भगवद्गीता में ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग और राजयोग का प्रतिपादन हुआ है। इनमें मुख्य प्रतिपाद्य योग के विषय में मतभेद है। लोकमान्य तिलकजी ने अपने प्रख्यात प्रबन्ध "गीतारहस्य" में गीता में कर्मयोग का ही प्राधान्य होने का प्रतिपादन किया है। म. गांधी गीता को अनासक्ति योग परक मानते हैं। शंकराचार्य ज्ञानयोग परक कहते हैं और ज्ञानेश्वर जैसे विद्वान संत भक्तियोग पर बल देते हैं। गीता के छटे अध्याय में योगशास्त्र के क्रियात्मक अंग का उपदेश हुआ है। इनके अतिरिक्त अध्यात्मयोग, साम्ययोग, विभूतियोग इत्यादि योगों का प्रतिपादन गीता में मिलता है। १ "बौद्ध जैन योग" बौद्ध वाङ्मय में भी एक पृथक् सा योगशास्त्र प्रतिपादन हुआ है जिसका स्वरूप पातंजल योगपद्धति से मिलता जुलता है। गुह्यसमाज नामक बौद्ध ग्रंथ में उस योग का विवरण हुआ है। बौद्ध योगाचार्य "षडंग योग' मानते है। उनमें प्राणायाम प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के साथ अनुमति का अन्तर्भाव है। अनुमति का अर्थ है किसी भी ध्येय का अविच्छिन्न ध्यान जिससे प्रतिभा की उत्पत्ति होती है। जैन वाङ्मय में कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्र सूरि का योगशास्त्र अथवा अध्यात्मोपनिषद् सुप्रसिद्ध है। इसके 12 प्रकाशों में से चतुर्थ से 12 वे प्रकाश तक योगविषयक प्रतिपादन आता है। चतुर्थ प्रकार में बारह भावनाएँ, चार प्रकार के ध्यान, और आसनों के बारे में कहा गया है। पांचवें प्रकाश में प्राणायाम के प्रकारों और कालज्ञान का निरूपण है। छठे प्रकरण में परकाय-प्रवेश पर प्रकाश डाला है। सातवें में ध्याता, ध्येय, धारणा और ध्यान के विषयों की चर्चा है। आठवें से ग्यारहवें प्रकाशों में क्रमशः पदस्थ ध्यान, रूपस्थ ध्यान, रूपातीत ध्यान और शुक्ल ध्यान का स्वरूप समझाया है। बारहवें प्रकाश में योग की सिद्धि का वर्णन आता है। इस ग्रंथ पर स्वयं ग्रंथकार ने वृत्ति लिखी है जिसका श्लोक परिमाण है बारह हजार। दूसरी प्रसिद्ध टीका है इन्द्रनन्दीकृत योगिरमा । योगविषयक चर्चा में मंत्रयोग, लययोग और हठहोग की भी चर्चा होती है। मंत्रों के जप से साधक की अन्तःस्थ शक्ति उबुद्ध होती है और वह अन्त में महाभाव समाधि की अवस्था में जाता है, यह मंत्रयोग का अभिप्राय है। लययोग के अनुसार अन्नमय, प्राणमय, मनोमय इत्यादि जीव के पंचकोशों का आवरण, बिंदुध्यान की साधना के द्वारा शिथिल होकर, कुलकुण्डलिनी शक्ति के उत्थान के कारण वह सहस्रार चक्रस्थित शिवतत्त्व में विलीन होता है। इसी को महालय समाधि कहते हैं। 10 "हठयोग" हठयोग का प्रतिपादन घेरण्डसंहिता (घेरण्डाचार्यकृत) और हठयोग-प्रदीपिका (आत्मारामकृत) इन दो ग्रंथों में सविस्तर हुआ है। मत्स्येन्द्रनाथ और गोरक्षनाथ को हठयोग के प्रमुख आचार्य माना गया है। शैव सम्प्रदाय, नाथ संप्रदाय एवं बौद्ध योगाचार संप्रदाय में हठयोग की साधना पर बल दिया गया है। . गोरक्षनात कृत सिद्धिसिद्धान्त-पद्धति में हठयोग का स्वरूप बताया है : हकारः कीर्तितः सूर्यः ठकारश्चन्द्र उच्यते। सूर्याचन्द्रमसोर्योगाद् हठयोगो निगद्यते।। अर्थात् ह = सूर्यनाडी (दाहिनी नथुनी) और ठ = चंद्रनाडी (बायी नथुनी) से बहने वाले श्वासवायु के ऐक्य को हठयोग कहते हैं। यह क्रिया अत्यंत कष्टसाध्य है। पातंजल योग शास्त्र के समान हठयोग शास्त्र की भी विशिष्ट परिभाषा है। यहां हम घेरण्डसंहतिा के अनुसार कुछ महत्वपर्ण परिभाषिक शब्दों का विवरण देते हैं, जिससे हठयोग का स्वरूप अंशतः स्पष्ट होगा। शोधनकर्म = धौती, बस्ति, नेति, नौली, त्राटक और कपालभाति । इन क्रियाओं को शोधनक्रिया या षक्रिया कहते हैं। धौति = (चार प्रकार) अन्तधोति, दन्तधौति, हृद्धौति और मूलशोधन । अन्तधोति = (चार प्रकार) वात्यसार, वारिसार, वह्निसार और बहिष्कृत (या प्रक्षालन) दन्तधौति = (4 प्रकार) दन्तमूल, जिह्वामूल, कर्णरन्ध्र और कपालरन्ध्र । हृद्धौति = (3 प्रकार) दण्ड, वमन और वस्त्र । बस्ति = दो प्रकार जल और शुक्ल। कपालभाति = (3 प्रकार) वातक्रम, व्युत्क्रम और शीतक्रम। नेति, नौली और त्राटक के प्रकार नहीं हैं। नामय इत्यादि जीव के पंचकी मंत्रयोग का अभिप्राय है की अन्तःस्थ शक्ति 148 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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