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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 "सांख्य और योग" योगदर्शन में सांख्य दर्शन के कुछ सिद्धान्तों का स्वीकार हुआ है, यथा-प्रधान का सिद्धान्त, तीन गुण एवं उनकी विशेषताएं, आत्मा का स्वरूप एवं कैवल्य (अन्तिम मुक्ति में आत्मा की स्थिति)। सांख्य और योग दोनों दर्शनों में आत्मा की अनेकता मानी है। सांख्यदर्शन में ईश्वर को स्थान नहीं है, किन्तु योग दर्शन में ईश्वर (पुरुष-विशेष) का लक्षण बताया है और उसका ध्यान करने से चित्तवृत्ति का निरोध अर्थात् समाधि-अवस्था प्राप्त करने की सूचना दी है- (ईश्वरप्रणिधानाद्वा)। परंतु योगदर्शन में ईश्वर को विश्व का स्रष्टा नहीं कहा है। प्रणव (ओंकार) ही ईश्वर का वाचक नाम है जिसका जप (चित्तवृत्तिनिरोधार्थ) करना चाहिए। सांख्य एवं योग दोनों का अंतिम प्राप्तव्य है कैवल्य। किन्तु सांख्य, सम्यक्ज्ञान के अतिरिक्त कैवल्यप्राप्ति का अन्य उपाय नहीं कहता। सांख्य का मार्ग केवल बौद्धिक या ज्ञानयोगात्मक है, किन्तु योगदर्शन में इस विषय में एक विशद अनुशासन की अर्थात् यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि इन आठ अंगों की यथाक्रम व्यवस्था बतायी है। कैवल्य प्राप्ति के लिए पुरुष, प्रकृति एवं दोनों की भिन्नता को भली भांती समझ कर, चित्तवृत्तियों के निरोध के लिए विविध प्रकार की साधना करने पर योग दर्शन का आग्रह है। चित्तवृत्तियों के निरोध के लिए पातंजल योगदर्शन के समाधिपाद में नौ सूत्रों द्वारा उपाय बताये हैं जैसे:1) अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः (1-14)। 2) ईश्वर-प्रणिधानाद् वा (1-27)। 3) तत्प्रतिषेधार्थम् एकतत्त्वाभ्यासः (1-36) 4) प्रच्छर्दन-विधारणाभ्यां वा प्राणस्य (1-38) 5) विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनसः स्थितिनिबन्धनी (1-39)। 6) विशोका वा ज्योतिष्मती (1-40)। 7) वीतरागविषयं वा चित्तम् (1-41)। 8) स्वप्ननिद्राज्ञानालंबं वा (1-42) और 9) यथाभिमतध्यानाद् वा (1-43)। साधनपाद में भी तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान, ध्यान, योगांगानुष्ठान, प्रतिपक्षभावन, इत्यादि साधनाएं तथा उसके फल बताये हैं। 5 संयम योगदर्शन के विभूतिपाद में धारणा, ध्यान और समाप्ति इन तीनों की एकत्र साधना को “संयम" कहा है। जैसे :परिणामत्रय-संयम (3-17)। प्रत्यय-संयम (3-19)। कायरूपसंयम (3-21)। कर्मसंयम (3-23)। मैत्र्यादि संयम (3-24)। 'बलसंयम (25)। सूर्यसंयम- (27)। चंद्रसंयम (28)। धृवसंयम -(29) । नाभीचक्रसंयम -(30)। कण्ठकूपसंयम- (31)। कूर्मनाडीसंयम - (32)। मूर्धज्योतिसंयम- (33)। प्रातिभज्ञानसंयम (35)। स्वार्थसंयम- (36)। श्रोत्राकाशसंयम- (42)। काथाकाशसंबंध संयम-(43)। महाविदेहासंयम (44)। स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्वसंयम- (45)। इन्द्रियावस्थासंयम -(48)। सत्त्व-पुरुषान्यताख्यातिसंयम -(50)। क्षणक्रमसंयम -(53)। इन विविध प्रकार के संयमों में निपुणता आने पर साधक को जिन सिद्धियों की प्राप्ति होती है, उनका निर्देश यथास्थान किया है। इन सभी प्रकार के संयमों में निपुणता के कारण जो सिद्धियां प्राप्त होती है, उनका स्वरूप ज्ञानमय बतलाया है, याने योगी को विविध प्रकार का अतीन्द्रिय ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति इन संयमसिद्धयों के रूप में प्राप्त होती है जैसे :(1) परिणाम त्रयसंयमात्अतीत-अनागतज्ञानम्। (2) संस्कार-साक्षात्करणात पूर्वजातिज्ञानम्। (3) भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्। (4) चन्द्रे (संयमात्) ताराव्यूहज्ञानम्। (5) ध्रुवे (संयमात्) तद्गतिज्ञानम्। (6) नाभिचक्रे (संयमात्) कायव्यूहज्ञानम्। (7) हृदये (संयमात्) चित्तसंविद् । (8) स्वार्थसंयमात् पुरुषज्ञानम्। (9) क्षणक्रमसंयमात् विवेकजं ज्ञानम्। (10) तज्जयात् (अर्थात् संयमजयात्) प्रज्ञालोकः इत्यादि। द्वितीयपाद में ही "अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरागः (35)। सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाकलाश्रयत्वम्-(36)। अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम् -(37)। ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः-(38)। अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथंतासंबोधः (39)। शौचात् स्वांगजुगुप्सा परैरसंसर्गः-(40)। सत्त्वशुद्धि सौमनस्य एकाग्रता-इन्द्रियत्रय- आत्मदर्शन-योग्यत्वानि च - (41)। संतोषाद् अनुत्तम सुखलाभः (42)। कायेन्द्रियसिद्धिः अशुद्धिक्षयात् तपसः (43)। स्वाध्यायाद् इष्टदेवतासंप्रयोगः (44) और समाधिसिद्धिः ईश्वरप्रणिधानाद्(45)। इन सूत्रों द्वारा यमों और नियमों से भी विविध प्रकार की सिद्धियों का लाभ बताया है। "समाधिसिद्धिः ईश्वरप्रणिधानाद्" इस सूत्र में ईश्वरप्रणिधान से समाधिसिद्धि अर्थात् योग की अंतिम अवस्था की प्राप्ति होती है, यह उद्घोषित करते हुए पतंजलि 144/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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