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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण - 6 सांख्य योग दर्शन 1 "सांख्य दर्शन" सांख्य शब्द संख्या शब्द से निष्पन्न होता है; जिसके दो अर्थ होते हैं। 1) गिनती और 2) विवेकज्ञान । महाभारत में ___ "संख्या प्रकुर्वते चैव प्रकृति च प्रचक्षते। तत्त्वानि च चतुर्विंशत् तेन सांख्यं प्रकीर्तितम्" ।। इस श्लोक में संख्यादर्शन के कारण अर्थात् सृष्टितत्त्वों की संख्यात्मक (या गणनात्मक) चर्चा होती है इस लिये सांख्य इसे माना गया है। सांख्यदर्शन में 24 प्रकार के प्रकृति के मूलतत्त्व, 5 प्रकार की अविद्या, 28 प्रकार की अशक्ति, 17 प्रकार की अतुष्टि, इत्यादि संख्यात्मक पद्धति से तत्त्वों की चर्चा हुई है। "संख्या'' शब्द का दूसरा अर्थ है विवेकज्ञान । अचेतन प्रकृति और चेतन पुरुष तत्त्व में अभिन्नता मानना यही अविवेक है। इसी अविवेक या अज्ञान के कारण पुरुष (अर्थात जीव) जन्म-मरण के चक्र से मुक्त नहीं हो पाता। प्रकृति-पुरुष की पृथक्ता का ज्ञान ही विवेकज्ञान है। इसी से अपवर्ग या मोक्ष की प्राप्ति होती है; इस सिद्धान्त का आग्रह पूर्वक प्रतिपादन "सांख्य दर्शन नाम का कारण माना जाता है। सांख्यकारिका के रचयिता ईश्वरकृष्ण ने तथा श्रीशंकराचार्य ने इस दर्शन का निर्देश “तन्त्र" शब्द से किया है। परंतु प्रसिद्ध तंत्रशास्त्र या तंत्रविद्या से इसका कोई संबंध नहीं। यह एक स्वयंपूर्ण और ऐतिहासिक दृष्टि से अतिप्राचीन शास्त्र है। अथर्ववेद, तथा कठ, प्रश्न, श्वेताश्वतर, मैत्रायणी आदि उपनिषदों में सांख्य दर्शन की परिभाषा का दर्शन होता है। भारतीय परंपरा में, "ज्ञानं च लोके यदिहास्ति किंचित्। सांख्यागतं तच्च मतं महात्मन्" ।। (संसार में जो कुछ तत्त्वज्ञान विद्यमान है वह "सांख्य" से आया है।"- इस महाभारत के वचनानुसार इसी दर्शन को अग्रस्थान दिया जाता है। महाभारत तथा कुछ स्मृति, ग्रन्थों में कपिलप्रभृति 26 सांख्याचार्यों के नाम मिलते हैं, उनमें सनत्, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार, भृगु, शुक्र, काश्यप, पाराशर, गौतम, नारद, अगस्त्य, पुलस्त्य इत्यादि नाम अन्यान्य संदर्भो में भी प्रसिद्धिप्राप्त हैं। भारतीय परंपरा के अनुसार महर्षि कपिल सांख्यदर्शन के प्रवर्तक माने जाते हैं। श्रीमदभागवत में कपिल (कर्दम देवहृती के पुत्र) को भगवान विष्णु का पंचमावतार कहा है। उपनिषद में भी "कपिलऋषि" का उल्लेख मिलता है। ___मॅक्समूलर, कोलबुक, कीथ जैसे पाश्चात्य विद्वान कपिल को ऐतिहासिक पुरुष मानने को तैयार नहीं है। उनका मतखंडन गावें नामक पाश्चात्य पंडित ने ही किया है। ऐतिहासिक चर्चा के अनुसार सांख्य पद्धति के विचार का आरंभ ई. पू. 9 वीं शती में माना जाता है। ईश्वरकृष्ण ने अपनी सांख्यकारिका के अंत में इस शास्त्र की परंपरा बतायी है : "पुरुषार्थज्ञानमिदं गुह्यं परमर्षिणा समाख्यातम्। स्थित्युत्पत्तिप्रलयाश्चिन्त्यन्ते यत्र भूतानाम् ।। एतत् पवित्रमग्रयं मुनिरासुरयेऽनुकम्पया प्रददौ। आसुरिपि पंचशिखाय तेन च बहुधा कृतं तंत्रम्।। __ शिष्यपरम्परयागतमीश्वरकृष्णेन चैतदायर्याभिः। संक्षिप्तमार्यमतिना सम्यग् विज्ञाय सिद्धान्तम्।।" अर्थात् - मोक्ष पुरुषार्थ विषयक यह गुह्य पवित्र ज्ञान “परमश्रेष्ठ ऋषि कपिल ने प्रथम प्रतिपादन किया। इस में भूतमात्रों की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय का कथन किया है। (कपिल) मुनि ने आसुरि को, और आसुरि ने पंचशिख को यह ज्ञान बड़ी कृपा से प्रदान किया। आसुरि के बाद जो शिष्यपरंपरा निर्माण हुई, उसके द्वारा ईश्वरकृष्ण को इसका ज्ञान हुआ जिसने उसे आर्याओं में संक्षिप्त रूप में ग्रंथित किया। इस प्रकार कपिल ऋषि इस दर्शन के (अथवा भारतीय दार्शनिक परंपरा के) "आदिविद्वान्' माने जाते हैं। तत्त्वसमास और सांख्यसूत्र नामक कपिल की दो रचनाएं सांख्य दर्शनविषयक शास्त्रीय ग्रंथों में प्रथम ग्रंथ माने जाते हैं। सांख्यसूत्र के छह अध्याय और सूत्रसंख्या 537 है। इसके पंचम और छठे अध्यायों में परमतखंडनपूर्वक स्वमत प्रतिपादन किया है। आसुरिकृत कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है किन्तु प्राचीन ग्रन्थो में इनके सिद्धान्तों के उल्लेख हुए हैं। पंचशिख का षष्टितन्त्र ग्रंथ प्रसिद्ध है। चीनी ग्रंथों के अनुसार यह ग्रंथ षष्टिसहस्र (साठ हजार) श्लोकात्मक माना जाता है। ईश्वरकृष्णकृत “सांख्यकारिका” इस दर्शन का सर्वमान्य प्रामाणिक ग्रंथ है। सांख्य दर्शन की चर्चा में इसी ग्रंथ की आर्याएं संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 139 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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