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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 "इतिहास विषयक अवान्तर वाङ्मय'' भारत के इतिहास विषयक वाङ्मय का मूलस्रोत अन्य विषयों के समान वेदों एवं पुराणों में मिलता है। तथापि रामायण और महाभारत को ऐतिहासिक वाङ्मय के आदि ग्रंथ कहना उचित होगा। काव्यात्मक इतिहास वर्णन करने की यह आर्य परंपरा संस्कृत वाङ्मय के क्षेत्र में अविरत चल रही है। नवशिक्षित समाज में यह भ्रम फैला है कि संस्कृत वाङ्मय में इतिहास विषयक जानकारी देने वाले ग्रंथों का प्रमाण नहीं के बराबर है। परंतु तथ्य तो यह है कि प्राचीन भारत के केवल इतिहास का ही नहीं अपि तु सम्पूर्ण प्राचीन संस्कृति का आकलन संस्कृत वाङ्मय के अध्ययन से ही हो सकता है। "इतिहास-पुराणाभ्यां वेदं समुपद्व्हयेत्' इत्यादि आदेश यही सूचित करते हैं। प्राचीन मनीषी इतिहास के अध्ययन को वेदाध्ययन के समान महत्त्व देते थे। छान्दोग्य उपनिषद में इतिहास पुराण ग्रंथों को "पंचम वेद" कहा है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में भी इतिहास के अध्ययन का महत्त्व प्रतिपादन किया है। मुसलमानी शासन के प्रदीर्घ काल में इस राष्ट्र में सर्वकष विध्वंस होता रहा; जिसमें अन्य संस्कृत ग्रंथों के साथ इतिहास विषयक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का भी विध्वंस हुआ होगा। तथापि सम्प्रति उपलब्ध इतिहास विषयक ग्रंथों की संख्या उपेक्षणीय नहीं है। रामायण महाभारत के पश्चात् इतिहास विषयक जो महत्त्वपूर्ण काव्यात्मक ग्रंथ मिलते हैं, उनकी संक्षिप्त नामावली निम्न प्रकार है: इतिहास ग्रंथ लेखक समय हर्षचरित बाणभट्ट ई.7 वीं शती हम्मीर वंशकाव्य नयचंद्रसूरि ई. 10 वीं शती राजतरंगिणी कल्हण ई. 10 व 12 वीं शती विक्रमांकदेवचरित बिल्हण ई. 10 व 12 वीं शती कुमारपालचरित जयसिंहसूरि ई. 10 व 12 वीं शती नवसाहसांकचरित पद्मगुप्त पृथीराज विजय जयानक कीर्तिकौमुदी सोमेश्वर रामचरित संध्याकरनंदी बल्लालचरित आनंद भट्ट प्रबन्धचिन्तामणि मेरुतुंग चतुर्विंशतिप्रबन्ध राजशेखर रघुनाथाभ्युदय गंगाधर सालुवाभ्युदय रघुनाथ डिंडिम कम्परायचरित गंगादेवी । इत्यादि इस प्रकार से ऐतिहासिक महत्त्व के विविध काव्यग्रंथ भारत के अन्यान्य प्रदेशों निर्माण हुए। उन ग्रंथों का निर्देश प्रस्तुत कोश में यथास्थान हुआ है। मुसलमानी शासनकाल में फारसी को राजभाषा का महत्त्व प्राप्त होने के कारण उस भाषा में इतिहास विषयक सामग्री अधिक मात्रा में मिलना स्वाभाविक है; परंतु उस काल में भी संस्कृत वाङ्मय की स्त्रोतस्विनी खंडित नहीं हुई थी। उस काल के कुछ ग्रंथों का ऐतिहासिक महत्त्व उपेक्षणीय नहीं है। इन इतिहास विषयक काव्यों के रचयिता प्रायः राजाश्रित विद्वान होते थे। भारत में दीर्घकाल तक मुसलमानों का आधिपत्य रहा। उस काल में मुसलमान शासनकर्ताओं के विषय में कुछ स्तुतिपर संस्कृत ग्रंथ लिखे गये जिनमें तत्कालीन इतिहास का कुछ अंश व्यक्त हुआ है। मुसलमान सुलतानों एवं बादशाहों के आश्रित इतिहास लेखकों ने अपनी भाषा में तत्कालीन ऐतिहासिक वृतान्त भरपूर प्रमाण में लिख रखा है। उस वृत्तान्त के पूरक ग्रंथों में कुछ उल्लेखनिय संस्कृत ग्रंथ निम्न प्रकार हैं। असफलविलास : ले. पंडित राज जगन्नाथ। ई. 17 वीं शती। विषय : आसफखान नामक सरदार (जो जगन्नाथ पंडित का मित्र था) का गुणवर्णन । __ जगदाभरण : ले. पंडितराज जगन्नाथ। विषय : दाराशिकोह का गुणवर्णन सूक्तिसुन्दर : ले. सुन्दरदेव। ई. 17 वीं शती। इस सुभाषित संग्रह में अकबर, मुज़क्करशाह, निजामशाह, शाहजहां इत्यादि मुसलमान शासकों की स्तुति के श्लोक संगृहीत किए हैं। सर्वदेशवृत्तान्तसंग्रह : ले. महेश ठक्कुर। दरभंगा निवासी। जहांगीर बादशाह का चरित। बिरुदावली : ले. अज्ञात। विषय : जहांगीर बादशाह का चरित्र । संस्कृत कङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 125. For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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