________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सेना में हल्ले-गुल्ले की आवाज श्रीकृष्ण को सुनाई दी। वहां माध देश का दंडधार, हाथी र सवार होकर सेना का विध्वंस कर रहा था। श्रीकृष्ण ने तत्काल अर्जुन के रथ को उस तरफ मोड दिया। तब दंडधार ने श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों पर तीर चलाकर बड़े जोर से गर्जना की। इतने में अर्जुन ने अपने तीरों से उसका धनुष्य, उसके दोनों हाथ और मस्तक तोड कर उसका नाश किया और हाथी को भी मार डाला। वह देख कर उसका भाई दंड अर्जुन पर चढ़ आया। उसका भी सिर अर्जुन ने काटा, और दक्षिण दिशा में जाकर संशप्तकों का नाश करने का अपना काम शुरु किया। इधर पांड्य राजा द्वारा कर्ण की सेना का नाश देख कर, अश्वत्थामा उसका प्रतिकार करने लगा। उस समय अश्वत्थामा ने बाणों की घोर वृष्टि की। उन सभी बाणों को पांड्य राजा ने वायव्यास्त्र चला कर उडा दिया। अश्वत्थामा ने उसके रथ के घोडे मारे। तब वह एक हाथी पर सवार होकर युद्ध करने लगा। तब अश्वत्थामा ने अपने बाणों से उस हाथी को तथा पांड्य राजा को भी यम-सदन पहुंचा दिया। इधर नकुल और कर्ण में युद्ध छिडा। उस युद्ध में कर्ण ने नकुल के घोडे और सारथी का नाश किया। तब नकुल भागने लगा। कर्ण ने उसके गले में धनुष्य डाल कर उसे पकड लिया, और उससे कहा, "तू हम लोगों से युद्ध करना छोड दे। तेरे लिए हम लोग भारी है।'' इतना कह कर कुन्ती को दिए वचन के अनुसार कर्ण ने उसे छोड़ दिया और वह फिर से पांडव-सेना का नाश करने लगा। यह युद्ध दोपहर में हुआ।
दूसरी तरफ धर्मराज और दुर्योधन के बीच युद्ध होता रहा, जिसमें धर्मराज के बाणों से दुर्योधन मूर्च्छित पडा। तब भीम कहने लगा, "इसे मारने की मेरी प्रतिज्ञा है, आप इसे न मारें।" इतने में कृपाचार्य को दुर्योधन की सहायता में आते देख भीम गदा लेकर उनकी सेना पर टूट पड़ा। वह युद्ध तीसरे प्रहर हुआ।
शाम को कर्ण को आगे करके कौरवों का सैन्य युद्ध में जब पहुंच गया तब अर्जुन ने बाणों की वृष्टि से आसमान को आच्छादित किया। तब कर्ण ने अस्त्र के प्रयोग से अर्जुन के बाणों को तोड कर उसी अस्त्र से पांडव-सेना का विध्वंस शुरू किया। यह देखकर अर्जुन ने अपने अस्त्र से उस अस्त्र का नाश करके कौरव सेना का विनाश किया। 17) सत्रहवे दिन सबेरे कर्ण ने दुर्योधन से कहा, "आज अर्जुन का वध किये बिना मैं वापस नहीं लौटूंगा। यद्यपि अर्जुन के धनुष्य से भी प्रभावी मेरा धनुष्य है तब भी उसका सारथ्य श्रीकृष्ण कर रहे हैं और अगर शल्य मेरा सारथ्य कर सके तो अर्जुन का नाश करने में मैं अवश्य सफल हंगा"। यह सुनकर दुर्योधन शल्य से कर्ण का सारथ्य करने की प्रार्थना करने लगा। उसपर शल्य बहुत ही क्रुद्ध हुआ और दुर्योधन से बोला, "मैं एक क्षत्रिय कुलोत्पन्न राजा हूँ और तू मुझे सूत का सारथ्य करने का आग्रह कर रहा है। यह अपमान मैं कदापि सहन करने वाला नहीं हूं। ऐसा ही अगर चलने वाला है तो मैं अपने घर लौट चला जाता हूँ।” तब दुर्योधन ने उसकी बडी प्रशंसा की और कहा, “ यह प्रथा है कि श्रेष्ठ कनिष्ठ का सारथ्य करे। शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया उस समय उनका सारथ्य प्रत्यक्ष ब्रह्मदेव ने किया था। तुम कृष्ण से भी बढ़ कर कुशल सारथी हो, तुम अगर कर्ण का सारथ्य करो तो कर्ण निश्चय ही विजय प्राप्त करेंगा।" शल्य ने कहा, "सबके सामने तृ मुझे कृष्ण से भी बढ़ कर मान रहा है, इससे में बहुत ही संतुष्ट हो गया है। मै कर्ण का सारथ्य अवश्य करूंगा। लेकिन कुछ भी सुना कर उसे अपमानित करता जाऊंगा। उसे वह सब सहना पडेगा। "वह शर्त दयोधन और कर्ण दोनों को मंजूर होते ही शल्य सारथ्य करने रथ पर सवार हुआ और कर्ण भी युद्ध के लिए प्रस्तुत हुआ।
जब कर्ण अर्जुन का नाश करने की डींगे मारने लगा, तब उसका युद्धोत्साह कम करने के लिए, शल्य ने कर्ण की मनमानी निंदा करना शुरू किया। इस लिए कि (उद्योग पर्व में) शल्य ने धर्मराज को आश्वासन दिया था कि मैं कर्ण का तेजोभंग करता रहंगा, तदनुसार उसने किया। शल्य की बातें सुन कर कर्ण तमतमा उठा। वह देख कर उसे और चिढ़ाने के लिए शल्य ने उसे एक कहानी सुनाई। एक धनी वैश्य समुद्र के तट पर रहता था। उसके अनेक पुत्र थे। वे प्रतिदिन तरह-तरह के पक्वान खाकर बची खुची जूठन एक कौए को देते रहते थे। उनकी जूठन खा-खाकर वह कौआ उन्मत्त हो गया। वह समझने लगा कि "कोई भी पक्षी मेरी बराबरी नहीं कर सकेगा। "एक दिन समुद्र के तट पर अनेक हंस पहुंच गए। वैश्य के पुत्रों ने कौए से कहा, "तू तो सभी पंछियों में श्रेष्ठ है। कौए को वह बात सही लगने लगी और वह हंसों के साथ उडने की बाते करने लगा। हंस बोले, "तू हमारे साथ कैसे उड़ सकेगा?" कौआ बोला, “उडने के एक सौ एक प्रकारों की जानकारी मैं रखता हूं और हर एक प्रकार से मैं सौ योजन दूर उड जा सकता है।" एक हंस बोला, “सर्व साधारण पंछियों के समान मै भी उडना जानता हूं।" अनन्तर दोनों उडने लगे। समुद्र पर दूर तक उडने पर कौआ थक गया। जहां-तहां पानी का फैलाव और उतरने कहीं कोई पेडपौधा न देखकर वह बहुत ही घबरा गया। आगे उससे नहीं उडा गया। वह समुद्र की लहरों में डूबने लगा। तब हंस ने उस पर दया की और यह उड़ने का कौनसा प्रकार है? इस प्रकार का नाम क्या है? आदि बातें कह कर हंस ने उसे अपनी पीठ पर उठा लिया और समुद्र के तट पर ला छोड़ दिया।
प्रस्तुत कथा सुनाकर शल्य कर्ण से बोला, "उस कौए के समान तू कौरवों की जूठन पर पुष्ट हुआ है और गर्व से फूलकर अर्जुन को जीत लेने की इच्छा व्यक्त कर रहा है। अरे, उत्तर गो-ग्रहण के समय जब अकेला अर्जुन हाथ आ गया था तब 112 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
For Private and Personal Use Only