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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "सब मिल कर पहले इस भीम को नष्ट करों'। तत्काल उसके चौदह भाई भीम पर टूट पड़ें। उनमें से आठ भाइयों का भीम ने वध किया और शेष भाग गये। इतने में भगदत्त हाथी पर सवार भीम पर चढ़ आया। तब घटोत्कच ने उसका प्रतिकार किया। घटोत्कच अपनी मायावी पद्धति से युद्ध करने लगा, तब “अब शाम होनेको है। इस समय इस दुष्ट निशाचर के साथ युद्ध खेलने से जय कदापि होने वाली नहीं है। हम थक गये हैं। पांडवों के शस्त्रास्त्रों से हम घायल भी हुए हैं। इसी लिए कल ही युद्ध करें।" इस प्रकार भीष्माचार्य ने द्रोणाचार्य तथा दुर्योधन से सलाह करके युद्ध स्थगित रखने का आदेश दिया। 5) पांचवे दिन का प्रारंभ भीष्म और भीम के युद्ध से हुआ। भीम ने भीष्माचार्य पर शक्ति चलायी। भीष्म ने तीर चला कर वह शक्ति तोड डाली। इतने में भीम ने धनुष्य-बाण उटाया, वह भी भीष्म ने तोड डाला। वह देख कर सात्यकि भीष्म पर तीर चलाने लगे। भीष्म ने उसके सारथी को मार डाला। तब घोडे-सात्यकि के रथको ले कर दूर भाग खड़े हुए। उसके बाद भीष्म ने पांडवों की सेना के कई वीरों का नाश किया। सात्यकि पुनः तीर चलाते हुए आ पहुंचा तब दुर्योधन ने उसके प्रतिकार में दस हजार रथ भिजवाये। उन सबका नाश सात्यकि ने किया। तब बडे क्रोध से भूरिश्रवा सात्यांक पर चढ आया। सात्यकि के दस पुत्र उससे युद्ध करने लगे। उनका वह युद्ध बहुत समय तक चलता रहा। अंत में भूरिश्रवा ने सात्यकि के दसों पुत्रों के धनुष्यों को और बाद में उनके मस्तकों को काट डाला। वह देखकर सात्यकि भूरिश्रवापर बड़े क्रोध से चढ आया। उन दोनों में भयानक युद्ध हुआ। दोनों ने एक दूसरे के घोडे मार डाले और हाथ में ढाल-तलवार लेकर युद्ध करने लगे। तब भीम ने सात्यकि को और दुर्योधन ने भूरिश्रवा को अपने रथपर बिठा लिया। इसी समय जब भीष्म ने पांडवों की सेना का अत्यधिक संहार किया तब अर्जुन युद्ध करने सामने प्रस्तुत हुआ। तब दुर्योधन ने पचीस हजार रथियों को उसके प्रतिकार में भिजवाया। अर्जुन-द्वारा उनका संहार होते-होते सूर्यास्त के कारण नियमानुसार युद्ध स्थगित कर दोनों सेनाएं शिबिर में वापस लौटीं। 6) छठे दिन भीम ने द्रोणाचार्य पर आक्रमण किया। द्रोणाचार्य ने भीम पर नौ तीर छोडे। प्रत्युत्तर में भीम ने द्रोणाचार्य का सारथी मारा। तब घोडे का लगाम पकड कर रथ चलाना और साथ युद्ध करना दोनों काम साथ साथ करते हुए द्रोणाचार्य ने पांडवों की सेना का बहुत ही विध्वंस किया। उसी तरह भीष्म ने भी भयंकर विध्वंस किया। भीम और अर्जुन ने भी कौरवों की सेना की वही दुर्गति की। अनन्तर भीम कौरव की सेना की सीमा तोड कर घुस पडा। उसको जिंदा पकड़ने के हेतु बहुत वीर उसे घेर कर युद्ध करने लगे। तब भीमसेन हाथ में गदा उठा कर अपने रथ से नीचे उतर पडा। उसने अपनी गदा से उस सारी सेना का नाश किया। भीम को कौरवों की सेना में घुसते देख कर उसकी सहायता के लिए धृष्टद्युम्न दौड पड़ा। उसने भीम को अपने रथ पर बिठा लिया और प्रमोहनास्त्र का प्रयोग कर के कौरव सेना को मोहित कर दिया। वह देख कर द्रोणाचार्य ने प्रज्ञास्त्र का प्रयोग कर के प्रमोहनास्त्र को असफल कर दिया। इसी तरह अभिमन्यु और विकर्ण, दुःशासन और केकय देश के पांच वीर, दुर्योधन और द्रौपदी के पांच पुत्रों में युद्ध हुआ। इस समय भीष्म उत्तर दिशा की ओर पांडव सैन्य का और अर्जुन दक्षिण की ओर कौरव सैन्य का विध्वंस कर रहे थे। सूर्यास्त के समय दुर्योधन ने भीम पर आक्रमण किया। भीम ने उसके रथ के घोडे मारे, और तीरों से दुर्योधन को मूर्च्छित गिरा दिया। भीष्म ने पांडव सैन्य का बहुत विध्वंस किया। भीमबाणों से लहुलुहान दुर्योधन भीष्म के पास पहुंच गया। भीष्माचार्यने उसे औषधि दे दी जिससे दुर्योधन के शरीर के सारे व्रण दुरुस्त हो गये। 7) सातवें दिन कौरवों ने मंडलव्यूह और पांडवों ने वज्रव्यूह की रचना की। युद्ध करते करते भीष्म का रथ धर्मराज के रथ के निकट आ गया। दोनों ने एक दूसरे पर सैकडों बाण छोडे। इतने मे भीष्म ने धर्मराजा के रथ के घोडे मारे। तब उसने नकुल के रथ का सहारा लिया। उन्होंने अपनी सारी सेना को आदेश दिया कि सब मिल कर भीष्म को नष्ट करें। वह सुनकर पांडवों की सेना भीष्म के इर्द-गिर्द इकट्ठा होकर युद्ध करने लगी। भीष्म के बाणों से पांडवों की सेना के सिर ताडवृक्ष के फल के समान टप् टप् टूट नीचे गिरने लगे। द्रोणाचार्य ने भी पांडवों की सेना का भारी विध्वंस किया। 8) आठवें दिन भीष्म के बाणों से पाण्डव सैन्य का बहुत ही नाश होने लगा। तब धर्मराज ने पूरी सेना को भीष्म पर चढ़ जाने की आज्ञा दी। भीष्म की सहायता के लिए दुर्योधन अपने बंधुओं समेत पहुँच गया। तब भीम ने भीष्माचार्य के सारथी को मार कर सुनाभ आदि धृतराष्ट्र के 3 पुत्रों का संहार किया। दुःखित हो कर दुर्योधन भीष्माचार्य के पास जा कर कहने लगा कि भीम अब हमारे सर्वनाश पर तुला हुआ है। भीष्म कहने लगे, "पहले तूने हमारी एक भी नहीं सुनी। भीम तुम से अब किसी को जिंदा नहीं रखेगा। युद्ध के सिवा अब कोई चारा नहीं है।" आगे चल कर युद्ध में अलम्बुष राक्षस ने अर्जुन के पुत्र इरावान् का वध किया। ऐरावत नाग की पुत्रवधू विधवा हुई। क्यों कि गरुड ने उसका पति मार डाला था। उसके पुत्रहीन होने से ऐरावत ने अर्जुन के द्वारा पुत्र उत्पन्न करवा लिया था। उसका नाम इरावान् था। अलम्बुष राक्षस के हाथों उसका वध होते देख कर 104 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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