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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हमें नहीं। फिर भी युद्ध के कारण होने वाला नाश टालने के लिये कौरव हमें कम से क्रम पांच गाँव प्रदान तो करें" पाण्डवोंका यह सन्देश संजय ने धृतराष्ट्र को बता कर उसकी निन्दा की। उस रात धृतराष्ट्र को नींद न आने के कारण उन्होंने विदुरको बुलवाकर उनसे विदुरनीति का श्रवण किया। दूसरे दिन भरी सभा में संजयद्वारा धर्मराज का सन्देश कथन करने के उपरान्त भीष्म, द्रोण, विदुर, आदि सज्जनों ने दुर्योधन को समझाने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु वे उसमें असफल रहे । "" पाण्डवों की ओर से समझौते के लिये श्रीकृष्ण हस्तिनापुर में आये । परन्तु दुर्योधन के घर पर न रहते हुए वे विदुर के घर रुके। दुसरे दिन कौरवों की राजसभा में जा कर आपस में युद्ध न हो, इसलिये श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को आधा राज्य देने के बारों में युक्तियुक्त सुन्दर व्याख्यान दिया। श्रीकृष्ण के व्याख्यान के अनन्तर भीष्म, द्रोण, विदुर आदि ने दुर्योधन को समझाने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु दुर्योधन ने साफ कह दिया कि, "सुई की नोंक पर रह सके इतनी धरती भी पाण्डवों को नहीं दूँगा।" उसके बाद कुन्ती का कहना सुनकर श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से चले गये। कर्ण को पाण्डव पक्ष में लाने के लिये उन्होंने प्रयत्न किये। कौरवों के यहां का सारा वृतान्त सुना कर उन्होंने कहा कि "अब युद्ध अवश्यम्भावी है। यह सुनकर पाण्डव सेना के साथ कुरुक्षेत्र पर युद्ध के लिये सिद्ध हुए। यह देख कर कि "श्रीकृष्ण पाण्डवों की ओर गये है, दुर्योधन ने सेना को युद्ध के लिये प्रस्तुत होने की आज्ञा दे कर, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य आदि ग्यारह सेनापतियों की नियुक्ति की । भीष्म को सेनानायकत्व स्वीकार करने की प्रार्थना की। उस समय भीष्म ने कहा, “हे दुर्योधन, कौरव और पाण्डव मेरी दृष्टि में एक ही हैं। सो मैने निश्चय किया है कि मै पाण्डवों को हित की बातें सुनाऊंगा। किन्तु युद्ध तुम्हारे लिये ही करूंगा। इस में मेरी दो शर्तें होंगी। एक तो मै पाण्डवों का वध नहीं करूंगा और दूसरी यह कि "मेरा सदा द्वेष करने वाला कर्ण यदि युद्ध में भाग ले तो मै युद्ध नहीं करूंगा।" कर्ण ने यह सुन कर प्रतिज्ञा की कि, "जब तक भीष्म जीवित हैं, तब तक मै भी युद्ध नहीं करूंगा।" भीष्म के नेतृत्व में कौरवों की सेना भी कुरुक्षेत्र पर आ गयी। पाण्डवों की सेना में द्रुपद, विराट, धृष्टघुम्न आदि सात सेनापति थे, जिनमें धृष्टद्युम्न प्रमुख सेनापति था । धृष्ट सेनापति अर्जुन और उसके मार्गदर्शक श्रीकृष्ण थे दोनों ओर की सेनाओं को युद्ध के लिये देख कर बलराम ने धर्मराज से कहा, "इस युद्ध में तुम्हारी विजय होगी। भीम और दुर्योधन दोनों ही गदायुद्ध में मेरे प्रियः शिष्य है। कौरवों का विनाश में नहीं देख सकूंगा। इसलिये मै तीर्थयात्रा करने जा रहा हूं।" इतना कह कर वे चले गये। बाद में विदर्भ का राजा रुक्मी एक अक्षौहिणी सेना लेकर पाण्डवों की ओर आया। उसने अर्जुन से कहा, "यदि तुमको डर हो या मेरी सहायता की अपेक्षा हो तो मुझे कहना। मै अकेला ही तुम्हारे शत्रुओं का नाश करूंगा।" अर्जुन ने उत्तर दिया "मुझे न डर है और न तुम्हारी सहायता की अपेक्षा भी । तुम रहो या जाओ।" यह सुन कर रुक्मी ने दुर्योधन की ओर जाकर वैसा ही प्रस्ताव दिया। दुर्योधन से भी उसको वही उत्तर मिला। उसके बाद वह अपने देश की ओर चला गया। उपकथा 1 प्रह्लाद की सत्यनिष्ठा : प्रल्हाद के पुत्र विरोचन और अंगिरा ऋषि के पुत्र सुधन्वा के बीच जब कि वे एक कन्या स्वयंवर में वरण करने के हेतु से आये थे, विवाद हुआ कि, "दोनों में कौन श्रेष्ठ है।" इसमें यह निश्चित हुआ की, जो श्रेष्ठ माना जाएगा वह दूसरे के जीवन का अधिकारी होगा। अतः श्रेष्ठता निश्चित करने के लिये वे प्रह्लाद की ओर गये। प्रल्हाद ने कहा, "विरोचन, तेरी माता से इसकी माता श्रेष्ठ है। मुझसे इनके पिता अंगिरा श्रेष्ठ हैं। उसी प्रकार यह सुधन्वाभी तुझसे श्रेष्ठ है, अतः प्राण अब उसके हाथ है।" यह सुन कर सुधन्वाने उत्तर दिया, "हे प्रह्लाद, धर्म को साक्षी मान कर तुमने सत्य कथन किया, पुत्र प्रेम से झूट नहीं कहा, इस लिये अब मैं तुम्हारे पुत्र तुमको वापस दे रहा हूँ" । उपकथा 2 बैडालव्रत : एक बिलाव नदी पर तपश्चर्या का ढोंग रचा कर बैठा था। पक्षियों के पास आने पर भी वह उन्हें नहीं मारता था। यह देख कर चूहों ने अपने बालबच्चों की रक्षा करने के लिये उससे प्रार्थना की। हां ना कहते हुए उसने यह दायित्व स्वीकृत किया और चूहों पर हाथ साफ करना आरम्भ किया। यह बात चूहों के ध्यान में आते ही अंतिम दुष्परिणाम का विचार कर शेष चूहे भाग गये। 6 भीष्मपर्व 1 जनमेजय राजा के पूछने पर वैशम्पायन ऋषि आगे बताने लगे, दोनों सेनाओं के, कुरुक्षेत्र पर इकठ्ठा होने पर युद्ध-सम्बधी नियम निश्चित किये गये दोनों सेनाओं को युद्धार्थ सिद्ध देख कर व्यास महर्षि धृतराष्ट्र से बोले, "युद्ध देखने की अगर इच्छा हो तो कहो दिव्य दृष्टि-द्वारा संजय तुम्हें युद्ध की वार्ता सुनाएगा।" धृतराष्ट्र ने युद्ध का पूरा समाचार सुनने की अपनी इच्छा व्यक्त की। संजय बताने लगा सूर्योदय होते ही दोनों सेनाएं युद्ध हो गयी रणवाद्य बजने लगे। भीष्माचार्य ने सबके लिए उत्साहवर्धक भाषण दिया। श्रीकृष्ण की सूचना के अनुसार अर्जुन ने जयप्राप्ति के लिए भगवती की प्रार्थना की। भगवती ने इच्छानुसार वरप्रदान किया और अर्जुन ने रथ पर आरोहण किया। तदुपरान्त श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा पाण्डव पक्ष के सभी वीर योद्धाओं ने अपने-अपने 102 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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