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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के अधिक भोग देख कर मन में ईर्ष्या निर्माण होती है और पुण्य की समाप्ति होते ही पृथ्वी पर आना पड़ता है।" यह सुन कर मुद्गल ऋषि ने देवदूत को जाने के लिये कहा और उन्होंने योग, वैराग्य, ज्ञान आदि साधनों से मुक्ति प्राप्त की। 4 विराटपर्व अज्ञातवास के लिये पाण्डव विचार कर रहे थे। तब धर्मराज कहने लगे, "हम राजा विराट के यहां एक वर्ष तक रहेंगे। धौम्य ऋषि हमारे अग्निहोत्र, दास दासी आदि ले कर राजा द्रुपद के यहां जायें और इन्द्रसेनादिक हमारे रथ ले कर द्वारका जायें।" तत्पश्चात् राजा के यहां रहने की पद्धति की पूर्ण जानकारी धौम्य ऋषि ने पाण्डवों को दी। द्रौपदीसहित पाण्डव अन्यान्य नाम लेकर अलग अलग काम के लिये राजा विराट के यहाँ आये। आते समय उन्होंने अपने शस्त्र विराटनगर के बाहर एक बड़े शमी वृक्ष पर रखे। धर्मराज कंक का नाम धारण कर विराट के सदस्य के नाते रहने लगे। भीम बल्लव नाम धारण करके विराट की पाकशाला का प्रमुख बन गये। द्रौपदी सैरन्ध्री नामसे राजा विराट की पटरानी सुदेष्णाकी दासी बन गयी। सहदेव तन्तिपाल नाम धारण कर कोषाध्यक्ष बना। अर्जुन ने बृहन्नला नाम धारण कर राजकन्या को संगीत सिखाने का कार्य स्वीकारा । नकुल ग्रन्थिक नाम से अश्वशाला का अध्यक्ष हो गया। चार मास के पश्चात् विराट नगरी में देवता के उत्सव के निमित्त एक मेला भरा था जिसमें सैकड़ों मल्ल उपस्थित हुए थे। उनमें से जीमूत नामका एक महान् मल्ल था जिसके साथ युद्ध करने के लिये कोई भी तैयार नहीं था। तब विराट की आज्ञा ले भीम ने उसके साथ मल्लयुद्ध कर उसका नाश किया। उसके नाश के कारण लोग आनन्दित हुए। दस मास होने के पश्चात् विराट के सेनापति तथा श्यालक कीचक ने एक समय द्रौपदी को देखा। उसके सौन्दर्य पर वह मोहित हुआ। सुदेष्णा की संमति से वह द्रौपदी की मिन्नत करने लगा। परन्तु द्रौपदी ने उसका तिरस्कार किया। कीचक ने सुदेष्णा की अनुमति से एक षडयंत्र रचा। सुदेष्णा ने द्रौपदी को मदिरा लाने के लिये कीचक ने यहां आग्रह करके भेज दिया। द्रौपदी घर में आते ही मदोन्मत्त कीचक ने उसका हाथ पकड लिया। तत्काल द्रौपदी ने अपना हात छुडा कर कीचक को नीचे ढकेल दिया और वह दौडती हुई राजसभा में आ धमकी। उसके पीछे कीचक भी आया और उसने द्रौपदी को नीचे गिरा कर लाथ मारी। रोते रोते द्रौपदी ने राजा की और राजसभा के लोगों की निन्दा की। विराट राजा ने कहा, “वहां तुम्हारा क्या हुआ यह मैं नही जानता। सो मै इस बात में क्या कर सकता हूँ?" विराट का यह कहना सुनकर वह रानी सुदेष्णा के पास गयी। उसका सारा कथन सुनकर सुदेष्णा ने कहा, "यदि तू कहेगी तो मै उसे सजा दूंगी।" तब द्रौपदी ने उत्तर दिया "नहीं, आप कुछ भी न करें। मेरे पति गांधर्व हैं, वे उसका बदला लेंगे। उसकी मृत्यु का समय समीप आया है।" रात के समय द्रौपदी भीम के पास गयी। विराट राजा के लिये चन्दन उगाल कर हाथों को जो घट्टे पड़ गये थे वे द्रौपदी ने भीम को दिखलाये और वह रोने लगी। उसके हाथ अपने मुंह पर रखकर भीम भी कुछ समय के लिये रोया। उसके पश्चात् द्रौपदी ने उससे कहा, "मुझे पीडा पहुंचाने वाला नीच कीचक यदि जीवित रहेगा तो मै प्राण त्याग करूंगी।" यह सुन कर भीम ने उसे कीचक के वध की एक युक्ति बतायी। द्रौपदी ने वह मान ली और वह स्वस्थान आई। दूसरे दिन कीचक राजगृह में आकर द्रौपदी से कहने लगा “कल भरी सभा में मैने तुझे लाथ मारी किन्तु तुझे छुडाने के लिये कोई नहीं आया, इसका विचार कर। सेनापति होने के कारण मत्स्य देश का वास्तव राजा मै ही हूं। विराट केवल नामधारी राजा है। इसलिये तू मेरा कहना मान। मै तेरा दास हूं।" तत्पश्चात् द्रौपदी ने कहा, "यह बात किसी को भी ज्ञात नहीं होनी चाहिये। अपने यहां जो नृत्यशाला है वहां रात के समय संपूर्ण अंधकार रहता है। उस समय तू वहां आ जा जिससे यह बात मेरे गन्धर्व पति को भी ज्ञात न होगी।" दोनों की यह बात पक्की हो कर कीचक वहां से गया। द्रौपदी ने यह संकेत भीम को बताया। भीम रात के अंधकार में वहां कीचक के पहले ही छुप कर बैठ गया। कीचक के वहां आते ही भीम ने उसको मार डाला। द्रौपदी ने यह बात पहरेदारों से कही। अनन्तर कीचक का शव स्मशान की ओर ले जाते समय कीचक भाइयों ने उस भीड में द्रौपदी को देखा। तत्काल उन्होंने कीचक के शव के साथ द्रौपदी को बांधकर ले चले। द्रौपदी जोर जोर से चिल्लाने लगी। यह सुनकर भीम ने अपना वेष बदल कर एक वृक्ष उखाडा और उसने कीचक के सभी भाइयों को मार डाला और द्रौपदी को मुक्त किया। इस तरह भीम ने स्वयं कीचक और उसके 105 भाइयों को याने 106 कीचकों को नष्ट किया। पाण्डवों की खोज के लिये दुर्योधन ने गुप्त दूत भेजे थे परन्तु वे पाण्डवों का पता नहीं लगा सके। किन्तु कीचक का वध गंधर्वो ने किया यह बात दूतों ने दुर्योधन को कही। यह सुनकर कोई कहने लगा, "दूसरे अच्छे दूत भेज दें।" कोई कहता था, "बहुधा पाण्डवों का विनाश हुआ होगा।" कौरवसभा में उस समय त्रिगत देश का राजा सुशर्मा उपस्थित था। उसके कहने का आशय था, "कीचक का नाश हो गया है इसलिये आज तक उसने जो हमें पीडा और दुःख दिया है उसका बदला हम लें। मै मत्स्य देश पर दक्षिण की ओर से चढाई करूंगा। तुम सब उत्तर प्रदेश से आवो।" उसका वह कहना कर्ण को पसन्द आया। उसके अनुसार राजा सुशर्मा ने दक्षिण की ओर से चढाई करके विराट के गोधन का अपहरण किया। 100/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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