________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धीयते॥इतिदेवयाज्ञिकः॥ // ब्राह्मे // ॥शमीपलाशन्यग्रोधप्लक्षवैकंकतोद्भवा / / // अश्वत्थोदुंबरौविल्वश्चंदनःसरलस्तथा // 1 // शालश्चदेवदारुश्चखादिरश्चेतिया / शिकाः // // कर्मप्रदीपे॥ // नांगुष्ठादधिकाकार्यासमित्स्थूलतराक्कचित् // 2 नवियुक्तात्वचाचैवनसकीटानस्फाटिता // प्रादेशमात्रान्नाधिकानतथास्याद्विशा है खिका // नसपर्णासमित्कार्याहोमकर्मसुजानता // 2 // प्रागग्राःसमिधोग्राह्या / अखर्वानेत्रंफाटिताः॥ काम्येषुवश्यकर्मादौविपरीताजिघांसतः // 3 // विशीर्णा विफला-हस्वावक्राबहुशिखा कृशाः // दीर्घाः स्थूलाघुणैर्जुष्टाःकर्मसिद्धिविनाश काः॥४॥होतव्यामधुसपिभ्यदिनाक्षीरेणसंयुताः॥ प्रादेशमात्राःसमिधअशाखा पलाशिनीः॥५॥ ॥शंखः॥ ॥समितपुष्पकुशादीनिव्राह्मणः स्वयमाहरेत् // 1 नेत्रंजटामूलंचकथितं। 0 000000AGAO For Private and Personal Use Only