________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org संस्कार ORORSCORPOR00000000 शूद्रानीतेः क्रयक्रीतैः कर्मकुर्वन्वजत्यधः॥१॥ ॥वायुपुराणे॥ ॥कंडनंपेष भास्कर णंचैवतथैवोल्लेखनंतथा // सकृदेवपितॄणांस्याद्देवानांतत्रिरुच्यते॥ ॥कात्याय: नः॥योनार्चषिजुहोत्यग्नौव्यंगारिणचमानवः॥ मंदाग्निरामयावीचदरिद्रश्चैवजायते | तस्मात्समि होतव्यंनासमिढेकथंचन // नवस्त्रवायुनाकुर्यात्पाणिशूर्पनुवादिभिः // 2 // नकुर्यादग्निधमनंनकुर्याद्वयजनादिना ॥मुखेनैवधमेदग्निमुखदेशायजायत / / // 3 // अंधोबुधःसधूमेतुजुहुयाद्योहुताशने // यजमानोभवेदंधःसपुत्रइतिचश्रुतिः // मात्स्ये // // होमादिग्रहपूजायांशतमष्टोत्तरंभवेत् // अष्टाविंशतिरष्टौवा / / यथाशक्तिविधीयते // छंदोगपरिशिष्टे // यन्नाम्नास्वशाखायांपारक्यमविरोधि / यत् // विहद्भिस्तदनुष्ठेयंअग्निहोत्रादिकर्मवत् // 1 बव्हल्पंवास्वगृह्योक्तंयस्यकर्म / प्रकीर्तितं // ततस्यतावशिास्त्रार्थेकृतेसवैकृतंभवेत् // २॥प्रयत्तमन्यथाकुर्याद्यदिमो | // 6 // For Private and Personal Use Only