________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir SAPAGAPAGAPRASADAR सुरासुरैः // निर्विघ्नंक्रतुसंसियैत्वामहंगणपणे // 1 // // ॐ गणानांत्वा०॥१॥ स्मिनजोदर्शनशांत्याख्येकर्मणिगाणपत्येनत्वामहंणे // वृतोस्मि // कर्मणामुप |देष्टारसर्वकर्मविदुत्तमं // कर्मिणंवेदतत्वशंसदस्यत्वामहंणे॥ 1 // ॐ सदसस्प तिमद्भुतंग्रियमिंद्रस्यकाम्य॑म् // सुनिम्मेधार्मयासिषुःस्वाहा // १॥अस्मिनजो दर्शनशांत्याख्येकर्मणिसदस्यत्वेनत्वामहंणे // तृतोस्मि // ततश्चतुरोष्टौवाऋत्वि है। जोवृणुयात् // यज्ञादिकर्मकार्येषुऋत्विक्शकमखयथा // तथायज्ञादिकस्मि निऋत्विक्त्वंमेमखेभव // 1 // अस्मि० ऋत्विक्त्वेन त्वामहंणे॥ वृतोस्मि॥ // ततःसूक्तजपार्थेऋग्वेदादीन्वृणुयात् // ऋग्वेदःपद्मपत्राक्षोगायत्रःसोमदैवतः // // 1 काशीदीक्षितकृतरुद्रपद्धत्यादौगणपत्यदर्शनात् / 2 सदस्यवरणं हेमाद्रिमते॥ ASADANANADAGAGAORAOA000000 For Private and Personal Use Only