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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४ संशयतिमिरप्रदीप | श्री आराधना कथा कोष में - तदागोपालकः सोऽपि स्थित्वा श्रीमज्जिनाग्रतः । भोः सर्वोत्कृष्ट ! मे पद्मं ग्रहाणेदमिति स्फुटं ॥ उक्ता जिनपादाब्जो परिक्षिप्त्वाशु पङ्कजम् । गतो मुग्धजनानां च भवेत्सत्कर्म शर्मदम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थात् - किसी समय कोई गोपालक जिनभगवान् के आगे खड़ा होकर हे सर्वोत्तम ! मेरे इस कमल को खोकार करो। ऐसा कह कर उस कमल को जिन भगवान् के चरणों पर चढ़ा करके शीघ्र चला गया। ग्रन्थकार कहते हैं कि उत्तम कर्म मूर्खपुरुषों को भी अच्छे फल का देने वाला होता है। श्री इन्द्रनन्दि पूजासार में लिखा है : एनोबन्धान्धकूपप्रपतितभुवनोदञ्चनप्रौढ रज्जुः श्रेयः श्रीराजहंसौ हरिण विश्रुहप्रोल्लसत्कन्दवल्लिः । स्फारोत्फुल्लभासं नयनषडयनश्रेणिपेया विधेयात् पुष्पस्रग्मञ्जरी नः फलमलद्यु जिनेन्द्राङ्गि दिव्याङ्गि पस्था || इसी तरह कथाकोष, व्रतकथाकोष, संहिता, प्रतिष्ठा पाठादि अनेक शास्त्रों में पुष्पादिकों को चरणों पर चढ़ाना लिखा हुआ है । उसे न मान कर उल्टा दोष बताना अनुचित है । ' प्रश्न- चिवर्णाचार किनका बनाया हुआ है ? उत्तर - सोम सेनाचार्य का । For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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