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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। क्षुरं च र्कत्तरी कर्चसप्तकं घर्षणोपलम् । निधाय पूर्णकुंभारे पुष्पगन्धाक्षतान्क्षिपेत् ॥ मात्रकस्थितपुत्रस्य सधौतोऽग्रे स्थितः पिता । शीतोष्णजलयोः पात्र सिञ्चयेद्युगपजलैः ॥ निशामस्तु दधि क्षित्वा तज्जलश्चशिरोरुहान् । सव्यहस्तेन संसेच्य प्रादक्षिण्येन घर्षयेत् ॥ नवनीतेन संघृष्य क्षालयेदुष्णवारिणा । मंगलकुंभनारेण गन्धोदकेन सिञ्चयेत् ॥ ततो दक्षिणकेशेषु स्थानत्रयं विधीयते । प्रथमस्थानके तत्र कर्त्तनविधिमाचरेत् ।। शालिपात्रं निधायाग्रे खदिरस्य शलाकया । पञ्चदर्भः सपुष्पैश्च गन्धद्रव्यैः क्षुरेण च ॥ वामहस्तेन केशानां वत्तिं कृत्वा च तत्पिता। अंगुष्टाङ्गुलिभिश्चैतान् धृत्वा हस्तेन कतयेत् ॥ अर्थात्-मुंडन ( चौलकर्म) सर्व जातियों के बालकों में होता है । इसलिये पुष्टि और बल के देने वाले मुंडन विषय को आज शास्त्रानुसार लिखता हूँ । गृहस्थ लोगों को यह चौल कर्म पहले, तीसरे, पांचवे, वा सातवें वर्ष शास्त्रों के अनुसार करना चाहिये। विशेष यों है-पहले जिस बालक का चौल कर्म होना है उसे शुभदिन में और शुभ नक्षत्र में सुगन्ध जल से स्नान कराकर वस्त्र भूषण से अलंकृत करना चाहिये । जिस तरह For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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