________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संशयतिमिरप्रदीप।
११३
धनुष का मनुष्यों का शरीर होता है " इत्यादि पदार्थों को उपर्युक्त कहावतों के विना सिद्ध कर देते तो अवश्य आप के कथन का हम भी सहर्ष अनुमोदन करते और अब भी यही कहना है कि यदि उक्त कहावतों के आश्रय को छोड़ कर हमारी लिखी बातो को सिद्ध कर बतावेगे तो बड़ा अनुग्रह होगा। अन्यथा अपने विकल्पों को छोड़ कर सीधे मार्ग में पांव रक्खो यह सब कहने का सार है।
दान विषय.
आहारशास्त्र भैषज्याऽभयदानानि सर्वतः ।
चतुर्विधानि देयानि मुनिभ्यस्तत्ववेदिभिः ॥ इस श्लोक के अनुसारजैन शास्त्रों में आहार, अभय, औषध, और शान इस प्रकार दान के चार विकल्प माने गये हैं। और वर्तमान में यदि किसी अंश में कुछ प्रचार भी है तो इन्हीं चार दानों का है। परन्तुराके नीचे कहते हैं किः
विचार्य युक्तितो देयं दानं क्षेत्रादिसंभवम् । योग्यायोग्यसुपात्राय जघन्याय महात्मभिः ॥ अर्थात्-मध्यमपात्र और जघन्यपात्रादिकों के लिये युक्ति
For Private And Personal Use Only