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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरमदीप। प्रश्न यह बात कितनी जगहँ कही गई है कि हम शास्त्रों के अनुसार तथा आचा के अनुसार चलते हैं यदि मानलिया जाय कि किसी जैन ग्रन्थ में कोई यह लिख देता कि प्रतिमाओं को नग्न रहने से एक तरह का विकार पैदा होता है इसलिये वस्त्र पहराना चाहिये अथवा इसी तरह और कोई अनुचित बात लिखी जाती तो वे तुम्हारे कथनानुसार प्रमाण मानी जा सकती थी? फिर तो यो कहना चाहिये कि आप लोग एक तरह से "लकीर के फकीर" अथवा "बाबा वाक्यं प्रमाणम्" इसी कहावत के चरितार्थ करने वाले हैं। उत्तर-महोदय ! जो कुछ भी कहो हम कभी उसे बुरी नहीं कहने के हैं केवल हम तो इस बात की परीक्षा करनी है कि यथार्थ तत्व क्या है ? जैन शास्त्रों के सम्बन्ध में जो कुछ अनुचित कल्पना करें वे कभी ठीक नहीं मानी जा सकती। पहले एक दो ग्रन्थों में कभी कोई अनुचित बात बताई होती तो फिर यह भी हम ठीक मान लेते कि प्रतिमाओं को वस्त्रों का पहराना भी ठीक है । विना आधार के असंभाव्य कल्पनाओं के सम्बन्ध में इस तरह का उद्गार निकालना अनुचित है । यह तो हमें निश्चय है कि आप “ लकीर के फकीर ” अथवा “ बाबा वाक्य प्रमाणं " इन लोकोक्ति का स्पर्श भी नहीं करेंगे परन्तु यदि साथही"कन्द मूल के परमाणु मात्र मैतथाजलकी विन्दु में असंख्य जीवों का निवास है । स्वर्ग नर्क कोई पदार्थ विशेष है। दो दो अथवा इन से भी अधिक चन्द्र सूर्यो का इस भूमंडल में आवास है । पांच सो For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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