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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप । और पुष्पमाला की विधि प्राचीन तथा शास्त्रानुसार प्रतीति होती है । मैं जहां तक इस विषय को अनुसंधान करता हूं तो इसके अवतरण का कारण यह शात होता है जिस तरह हरित फल पुष्पादिको को सचित्त होने से उनका चढ़ाना अनुचित समझा गया उसी तरह इसे भी अनुचित समझा है। यदि वास्तव में हमारा यह अनुसन्धान ठीक निकला तो अवश्य कहूंगा कि यह कार्य शास्त्रविरुद्ध होने से अनुचित है । जरा शास्त्रों के ऊपर ध्यान देना चाहिये । शास्त्रों के देखे विना किसी विषय का छोड़ना तथा स्वीकार करना ठीक नहीं है। प्रश्न-पहले तो जिनभगवान् को पुष्पमाल चढ़ा देना फिर उसे ही न्यौछावर करना, यह क्या जिनभगवान् का अविनय नहीं है ? दूसरे, जब वह एक वक्त चढ़ चुकी फिर उसके ग्रहण करने का हमें अधिकार ही क्या है ? किन्तु उसके ग्रहण करने से उल्टा आस्रव कर्म का बन्ध होता है ऐसा अमृतचन्द्राचार्य ने तत्वार्थसार में लिखा है। तथाहिःचैत्यस्य च तथा गन्धमाल्यधूपादिमोषणम् । अतितीब्रकषायत्वं पापकर्मोपजीवनम् ।। परुषासावादित्वं सौभाग्यकरणं तथा। अशुभस्येति निर्दिष्टा नाम्न आस्रवहेतवः ।। अर्थात्-जिनभगवान् सम्बन्धी गन्ध, माल्य, और धूपादि द्रव्यों का चुराना, अत्यन्त तीवकषाय का करना, हिंसा के कारणभूत पापकर्मों से जीविका का निर्वाह करना, कठोर और नहीं सहन करने के योग्य बचनों का बोलना, इत्यादि For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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