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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - संशयतिमिरप्रदीप। दिया जाता फिर उपालम्भ क्यों न दिया जाय । हां उमास्वामि ने चावलों के पुष्पों का चढ़ाना लिखा है परन्तु उसका यह तात्पर्य नहीं है कि उसके एकअंश को माना जाय और एक का सर्वथा परिहार ही करदिया जाय । जव उमास्वामि के बचनों को मानते हो तो, उनके लिखेऽनुसार मानना चाहिये। एकही के बचनों में कमी वेशी करना ठीक नहीं है। एकान्त इसे नहीं कहते हैं किन्तु आचार्यों के बचनों को नहीं मानना यही एकान्त का स्वरूप है। अनेकान्त के मानने वाले यह कभी नहीं कह सकते कि आचार्या के बचना में प्रमाणता तथा अप्रमाणता भी है यह कहना विल्कुल जिनमतसे विरुद्ध है । इसलिये जिन मत के सिद्धान्तानुसार अनेकान्त के मानने वालों को जिस तरह जिन भगवान की आशा है उसी तरह उसे माननी चाहिये। -*-*-*--*-*-EDIES-*-*-*-*-*-*--- J. कलश कारिणी चतुर्दशी भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी के दिन जिनभगवान का अभिषेकसवत्र होता है। अभिषेक होने के बाद कितनी जगहँ तो जिनभगवान् के चरणों पर चढ़ी हुई पुष्पमाला को न्योछावर कर के उसे श्रावक लोग स्वीकार करते हैं । और कितनी जगहँ उक्त पुष्पमाला की विधि की तरह जलके भरे हुवे कलश को करते है इस तरह पृथक् २ क्रियायें होती है । परन्तु शास्त्रों का पर्यालोचन करने से कलश सम्बन्धी विधि मनमानी मालूम पड़ती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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