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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी - समान चमकते हुऐ लोहेकी निकली । तब राजाने उस चुगलखोरकी और देखा और कहा- क्योंरे दुष्ट ! मेरे सामने भी इतनी भारी झूठ ? राजाको तब बड़ा क्रोध आया । वह कहने लगा- दुष्टों का यह स्वभाव ही होता है जो वे दूसरोके अवगुणों को ही कहा करते हैं, चाहे दूसरोंमें अवगुण हों या न हों। राजाको क्रोधित देखकर मंत्रीने कहा- महाराज, राजाको समझदार लोग सब देवोंका अंश मानते हैं । इसलिए राजाको देवकी तरह मानकर उसके सामने झूठ कभी न बोलना चाहिए । यह सत्य है, पर इस चुगलखोरने जो आपसे कहा है, इसका कारण है । इसलिए इस पर आप क्रोध न करें । जो कुछ भी इसने कहा है वह सब सत्य है । यह सुनकर राजा बोला - यह कैसा सत्पुरुष है जो कि अपनी बुराई करनेवाले पर भी दया दिखलाता है । धिक्कार है इस चुगलखोरको जो ऐसे उपकारीकी भी बुराई करता है । राजाने फिर मंत्री से पूछा- यदि सचमुच तुम्हारी तलवार काटकी थी तो वह लोहकी कैसे हो गई ? मंत्रीने तब अपना सब वृत्तान्त सुनाकर कहा - महाराज, लोहे के हथियार न रखनेका मेरा नियम है । पर देव- गुरु धर्मका जो मुझे दृढ़ श्रद्धान था, उसके पुण्य प्रभावसे यह काठकी तलवार भी लोकी हो गई । इसके लिए आप मुझे क्षमा करें। यह सुनकर सब लोगोंने मंत्रीकी बड़ी प्रशंसा की और पूजी की । For Private And Personal Use Only VAARA
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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