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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्वकौमुदी - - तीसरा अभय-दान है | जो एक जीवकी रक्षा करता है, वह भी जब सदाके लिए निर्भय हो जाता है तब सब जीवोंकी रक्षा करनेवालेकी तो बात ही क्या है । इस लिए अभयदान सब प्राणियोंको सब प्राणियोंको देना चाहिए । अभयदानका देनेवाला दूसरे दूसरे जन्ममें निर्भय होता है । सुमेरु पर्वत के बराबर सुवर्णदानसे, सम्पूर्ण पृथिवीके दानसे और गौ-दानसे जितना फल होता है उतना फल एक जीवकी रक्षा करनेसे होता है । इस विषयमें यमपाश चांडाल और भवदेव मल्हाद्दकी कथा प्रसिद्ध है । इसके सिवा अभयदानको - जीवदया को छोड़कर जो कुपात्रोंको दान देता है उसका दान करना व्यर्थ है । कुपात्रको दान देना मानों aat दूध पिलाना है । चौथा शास्त्र दान है | इससे कम का क्षय होता है । अपने । आप लिखकर वा लेखकोंसे लिखवा कर साधुओंको अथवा और पढ़नेवालोंको जो शास्त्रोंका देना तथा बाँचकर दूसरोंको सुनाना, इसको शास्त्रदान कहते हैं । शास्त्रदानका दाता दूसरे जन्ममें सम्पूर्ण शास्त्रोंका वेत्ता होता है और मोक्षके सुखको प्राप्त करता है । इस प्रकार मुनिराज से महाराज सोमप्रभने सब दानोंका स्वरूप और फळ सुनकर कहामुनिराज, मुझे भी जैन-व्रत दे दीजिए । मुनिराजने तब राजाको श्रावकों व्रत दिये । राजाने जैन होकर दानके सम्बन्धमें और भी कई जानने योग्य बातें मुनिराज से पूछ For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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