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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्णुश्रीकी कथा । देनेवाले आहार, औषधि, अभय और शास्त्र इन चार दानोंको या इनके फलोंको धन लेकर न बेचूंगा । यह कोरा जबाब पाकर राजा पिहिताश्रव मुनिके पास गया और उनसे बोला-भगवन, गृहस्थ लोग चार प्रकारका दान किस लिए दिया करते हैं ? मुनि बोले-राजन् , आहार दान देनेसे देहकी स्थिति बनी रहती है। इसलिए आहार दान दिया जाता है। यह दान सब दानोंमें मुख्य है । जिसने आहार-दान दिया, समझिए उसने सब दान दिये । लाखों घोड़ोंका दान, गौओंका दान, भूमिका दान, सोने और चांदीके वर्तनोंका दान, सम्पूर्ण पृथिवीका दान और देवांगनाओंके समान करोड़ों कन्याओंका दान भी अन्नदानकी बराबरी नहीं कर सकता । औषधिदानसे रोगका विनाश होता है। रोग नाश हो जानेसे ही जप, तप, संयम आदि किये जा सकते हैं। इससे कर्मोंका क्षय होकर मोक्षकी प्राप्ति होती है। इस कारण मुनि तथा और और रोगियोंके लिए औषधि-दान देना चाहिए । आचार्योंने कहा है-रोगीको औषधि देना चाहिए, नहीं तो शरीर नष्ट हो जायगा और शरीर नष्ट होजानेपर ज्ञान नहीं रहेगा और ज्ञानके बिना मुक्ति नहीं हो सकती। रेवती श्राविकाने महावीर भगवानको औषधिदान दिया था, उसके फलसे उसने तीर्थकरगोत्र नामकर्मका बन्ध किया। इसलिए औषधिदान भी देना योग्य है । For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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