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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी लिया । यह सुनकर साथियोंने उसे बड़ी शाबासी दी। रुद्रदत्त सोमाके साथ ब्याह करके भी अपनी पहली स्त्री कामलताके पास, जो एक वैश्या थी, जाने-आने लगा | कामलता बसुमित्रा कुटिनीकी लड़की थी। रुद्रदत्तका वृतान्त सुनकर सोमाने दुखित होकर कहा-यह मेरे काँका फल है। जो कर्म मैंने उपार्जन किये हैं वे बिना फल दिये नहीं छूट सकते । गुणपाल उसे दुखी देखकर बोला-पुत्री, अब बीती बात पर दुःख करना व्यर्थ है। यह कलियुग है, इसमें जो न हो, सो थोड़ा है । देख, चन्द्रमामें कलंक, कमलनालमें काँटे, समुद्रका पानी खारा, पंडितों में निर्धनता, इष्टजनका वियोग, सुन्दरतामें ऐब, धनिकोंमें कृपणता, और रत्नोंमें दोष, इत्यादि बातोंका होना यह कालका स्वभाव ही है। शुभ कार्यों में बड़े बड़े पुरुषोंको विघ्न-बाधाएँ आ जाती हैं, लेकिन जब दुष्ट लोग अन्यायमें प्रवृत्त होते हैं तब न जाने वे विघ्न-बाधाएँ कहाँ चली जाती हैं ? यह सुनकर सोमा बोली-पिताजी, मेरे मनमें इस बातका जरा भी दु:ख नहीं है कि यह विपत्ति मुझ पर क्यों आई। जुआरियोंका तो ऐसा स्वभाव ही होता है। नीतिकारोंने भी ऐसा ही कहा है-चोरमें सत्य नहीं होता, शूद्रमें पवित्रता नहीं होती, मदिरा पीनेवालोंमें हृदयकी पवित्रता नहीं होती, पर जुआरियोंमें ये तीनों बातें नहीं होती। __ दुष्ट मनुष्योंमें यह कुलीन है, यह गुणवान है, ऐसा समझ कर विश्वास नहीं करना चाहिए । मळयगिरिके चन्दनकी For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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