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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन्दनश्री की कथा । ७३ इन बातोंसे सेठने उसे धर्मात्मा समझ पूछा- आपने जन्मभर के लिए ब्रह्मचर्य व्रत लिया है या कुछ समय के लिए ? ब्रह्मचारी ने कहा - यद्यपि मैंने ब्रह्मचर्य व्रत कुछ ही समयahके लिए लिया है, तथापि मेरी रुचि स्त्रियोंमें नहीं है । क्योंकि स्त्रियाँ भयंकर विषके समान होती हैं । देखिए, महादेव के गलेमें कालकूट विष भरा है, पर महादेव उससे विचलित नहीं हुए; लेकिन स्त्रीसे उन्हें भी विचलित हो जाना पड़ा। इसीलिए कहते हैं स्त्रियाँ विषसे भी बढ़कर विष है । यह सुनकर सेठने कहा- मेरे घरमें एक ब्राह्मणकी लड़की है । आप उसके साथ विवाह करें तो अच्छा हो । आप श्रावक हैं, इसलिए मैं आपके साथ उसको ब्याह दूँगा । सेठकी बात सुनकर ब्रह्मचारी बोला - विवाह करनेसे मनुष्यको संसारमे फँसना पड़ता है, इसलिए मैं विवाह नही करता- मुझे ब्याहसे मतलब नहीं। एक और भी बात है, यदि मैं विवाह करलूँ तो जो कुछ मैंने लिखा-पढ़ा है वह सब स्त्रीके सम्पर्क से चला जायगा | क्योंकि स्त्रीके सेवनसे सिद्ध अंजन, मंत्र, तंत्र, कला, कौशल आदि सब गुण नष्ट हो जाते हैं । निदान सेठने बड़े आग्रहसे ब्रह्मचारीका सोमाके साथ विवाह कर दिया । विवाहके बाद दूसरे दिन ही रुद्रदत्त विवाह - कंकन पहिने जुआखानेमें पहुँचा और अपने साथी जुआरियोंसे कहने लगा- मैंने जो तुम्हारे सामने प्रतिज्ञा की थी आज वह पूरी हो गई । मैंने सोमाके साथ विवाह कर For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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