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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अद्दास सेठकी कथा | सुबुद्धि मंत्री और सुवर्णखुर चोरको बड़ा क्रोध आया । राजाने कहा- ये सब बातें मैंने भी प्रत्यक्ष देखी हैं । इस बातको सब लोग जानते हैं कि मेरे पिता पद्मोदयने मुझे राज्य देकर दीक्षा ली और वे मुनि हो गये। यह कुंदलता पापिनी है जो सेठकी बातोंको झूठी बतला रही है । मैं सबेरे ही इसको दंड दूँगा | चोरने सोचा- इस स्त्रीका स्वभाव नीच हैं, जो यह जिसके प्रसादसे जी रही है उसके विरुद्ध बात कहती है । ५७ २ – मित्र श्री की कथा | D पने सम्यक्त्व प्राप्त होनेके कारणको कह कर अईदासने मित्र श्री नामकी अपनी दूसरी स्त्रीसे कहा- प्रिये, अब तुम अपने सम्यक्त्व प्राप्त होने के कारणको बतलाओ । मित्रश्रीने तब यों कहना आरंभ किया मगधदेशमें राजगृह नामका नगर है । वहाँ संग्रामशूर नामका राजा था । कनकमाला उसकी रानीका नाम था । उसी नगर में वृषभदास नामका एक सेठ रहता था । वह सम्यग्दृष्टि था, बड़ा धर्मात्मा था और पात्रोंको दान देना, गुणोंमें अनुराग करना, सबके साथ सुख भोगना, शाखका For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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