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श्रीवीतरागाय नमः ।
सम्यक्त्व -कौमुदी |
दर
ज गत् के प्रभु श्रीवर्धमान जिनेन्द्रको नमस्कार कर मैं सम्यक्त्वकौमुदी नामक ग्रन्थको इसलिए बनाता हूँ कि जिससे जीवोंको सम्यक्त्व गुणकी प्राप्ति हो ।
समस्त शास्त्रोंके सागर गौतम गणधरकी और सर्वज्ञ भगवान्के मुखारविन्दसे निकली हुई सरस्वती देवीकी मैं स्तुति करता हूँ ।
संपूर्ण शास्त्रोंके पारगामी गुरुओंकी शुद्ध मन-वचन-कायसे भक्ति करता हूँ, जिनके प्रसादसे हृदयकी सब जड़ता मिट जाती है ।
जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्र में मगध नामका देश है । इस देशमें इन्द्रपुरी के समान राजगृह नगर है । इस नगरमें कई बड़े विशाल जिनमन्दिर थे । उनमें हर समय उत्सव हुआ करता था । यहाँके श्रावक जिनधर्मके अनुसार चारित्रका पालन करते थे और आनन्दके साथ रहते थे। राजगृहके राजा श्रेणिक थे। इनके दरबार में देश देशान्तरोंके राजा रहा करते
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