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जिन्होंने संस्कृत पुस्तकका सम्पादन और अनुवादके संशोधन में मुझे बड़ी सहायता दी है ।
मूल पुस्तक में एक-दो प्राकृत गाथाएँ तथा संस्कृत श्लोक ऐसे आये हैं कि वे प्रयत्न करने पर भी समझमें न आ सके। हो सकता है कि उनका पाठ बहुत अशुद्ध हो । इसलिए वे छोड़ दिये गये हैं । समझदार पाठक उन्हें समझने का यत्न करें।
अन्तमें मैं 'हिन्दी - जैनसाहित्यप्रसारक कार्यालय के मालिकोंका अत्यंत आभारी हूँ कि जिन्होंने मेरी इस अनुवादित पुस्तकको प्रकाशित कर मेरा उत्साह बढ़ाया और मेरे प्रथम प्रयत्नको सफल किया ।
ता० २०-८-१५ ई० }
विनीत-तुलसीराम काव्यतीर्थ ।
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