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सम्यक्त्व-कौमुदी
लगा, दोनों वार सामायिक करने लगा, भूमि पर सोने लगा
और छह छह आठ आठ उपवास करने लगा । लोग इसको ऐसा ज्ञानी ध्यानी देखकर मानने लगे-इसकी पूजा-प्रतिष्ठा करने लगे। सो ठीक ही है, नीच मनुष्य भी उत्तम पुरुषोंकी संगतिसे पूज्य हो जाता है । गंगाके किनारेकी धूलको भी लोग पूजने लगते हैं। - एक दिन कुन्तल कौशाम्बीमें आकर नरदेव चैत्यालयमें ठहरा और मेरी आखें आगई हैं, ऐसा बहाना कर उसने आखों पर कपड़ा बाँध लिया। जब लोग उसे आहारके लिए कहते तब वह उनसे कहता कि मेरी आखोंमें बड़ी पीड़ा है। मैं आहार न करूँगा-उपसा ही रहूँगा । क्योंकि जिसकी आखोंमें, पेटमें और सिरमें पीड़ा हो, जिसको ज्वर आता हो और जिसके फोड़ा-फुसी हो गये हों, तो ऐसे लोगोंको लंघन करना परमौषध है । जब सूरदेव पूजाके लिए मंदिरमें आया तो उसने मालीसे पूछा-यह कौन है ? माली बोलायह महा तपस्वी ब्रह्मचारी है । इसकी आखोंमें बड़ी पीड़ा है । यह सुनकर सूरदेव उस कपटीके पास गया और वन्दना कर उसने कहा-महाराज, कृपाकर आप मेरे यहीं पारण किया करें तो अच्छा हो । मैं आपकी आखोंकी भी दवा करूँगा। दवाईके बिना आपकी आखें अच्छी न होंगी । उस मायावीने तब कहा-सेठजी, ब्रह्मचारियोंको किसीके घरमें रहना ठीक नहीं है-उनका तो ऐसी निराकुल जगहमें रहना ही
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