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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्युल्लता की कथा । १३३ अशोकने समुद्रदत्त को वे दोनों घोड़े दे दिये और शुभ मुहूर्तमें उसके साथ कमलश्रीका विवाह भी कर दिया । व्याह कुछ दिनों बाद अशोकने समुद्रदत्तको बिदा किया । अपने मित्रों और कमलश्रीको लेकर समुद्रदत्त रवाना हुआ । इसके पहले कि समुद्रदत्त समुयात्रा करे, अशोकने आकर जहाज मल्लाहों से कहा - समुद्रदत्तके पास दो घोड़े हैं, सो तुम अपने किरायेके बदले में उससे दोनों घोड़ोंको माँगना | मल्लाहोंने कहा - पर यह हो कैसे सकता हैं ? जो हमारा बाजिबी किराया होगा, हम तो वही लेंगे और ज्यादा मिल भी कैसे सकता है ? अशोक बोला- तुम्हें इससे क्या मतलब ? तुम माँगना तो सही ! मल्लाहोंने कहा- अच्छी बात है । इसके बाद अशोक कमलश्रीको कुछ उपदेश देकर अपने घर लौट आया । समुद्रदत्त अपने मित्रोंके साथ समुद्र के किनारे पर आया । उसने देखा समुद्र बड़ी शोभाको धारण किये हुए है । चारों ओर उसमें तरंगे उठ रहीं हैं, तेर रहे फेन-पिण्ड द्वारा वह चन्द्रमाकी शोभाको धारण कर रहा है, उसमें मगर, घड़याल और बड़े बड़े मच्छ इधर से उधर दौड़े लगा रहे हैं । वह इस समय ठीक ऐसा मालूम पड़ता है जैसे मलयकालके मेघ उमड़ रहे हों । समुद्रदत्तने मल्लाहों से जहाजका किराया पूछा । उन्होंने वे दोनों घोड़े माँगे । उनकी यह धीठता देखकर समुद्रदत्तको For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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