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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्युल्लताकी कथा । १२७ अशोक अपने घोडोंकी रखवालीके लिए एक नौकर की खोजमें था । यह बात समुद्रदत्तको मालूम हुई। उसने अशोकके पास आकर कहा- मैं तुम्हारे घोडोंकी रखवाली किया करूँगा । कहिए आप मुझे क्या नौकरी देगें ? नीतिकार कहते हैं - मनुष्य के पास जबतक धन रहता है तभीतक उसमें गुण और गौरव रहता है । और जहाँ वह याचक बना कि उसके गुण और गौरव सभी नष्ट हो जाते हैं । यही दशा समुद्रदत्तकी हुई । एक सेठका लड़का आज घोडोंकी सईसी करने पर उतारू हुआ । अस्तु । समुद्रदत्तकी बात सुनकर अशोकने उससे कहा- दिनमें दो बार भोजन और छह महीने में एक साफा, एक कम्बल, और एक जूता जोड़ा, तथा तीन वर्षमें इन घोड़ोंमेंसे तुम्हारे मनचाहे दो घोड़े, यह नौकरी तुम्हें मिलेगी । बोलो, मंजूर है ? समुद्रदत्तने अशोककी यह नौकरी स्वीकार करली | अब वह घोड़ोंकी बड़ी सम्हालसे रखवाली करने लगा । नीति कार कहते हैं -- नौकर आदमी तरक्कीके लिए स्वामीकी अधिक सेवा-शुश्रूषा करता है और मौके पर अपने प्राणोंकी भी परवा नहीं करता । सुखकी आशा से दुःख तक उठाता है । सचमुच नौकर से बढ़कर कोई मूर्ख नहीं है । समुद्रदत्त अशोककी लड़की कमलश्रीको प्रतिदिन अनेक प्रकार के मीठे मीठे फल-फूल और कंद ला- लाकर दिया करता था, और उसे अपना मनोहर गाना सुनाया करता था । For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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